कहानी – काबुलीवाला by Rabindranath Tagore

काबुलीवाला रबीन्द्रनाथ टैगोर की ऐसी कहानियों में से एक है जिनको आप जब भी पढ़ेंगे आपकी आँखें नाम हो जाएगी. एक बच्ची और काबुली बेचने वाले के बीच जो करुण रिश्ता है उसको शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता. उसे आप आँखें मूंदकर बस महसूस करना चाहते है. पूरा पढ़ें...

कहानी – काबुलीवाला by Rabindranath Tagore

कहानी – विद्रोही

पाँच साल की होगी। बचपन का वह दिन आज भी आँखों के सामने है, जब तारा एक फ्रॉक पहने, बालों में एक गुलाब का फूल गूंथे हुए मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी। पूरा पढ़ें...

कहानी – विद्रोही

कहानी – संवदिया

हरगोबिन को अचरज हुआ - तो, आज भी किसी को संवदिया की जरूरत पड़ सकती है! इस जमाने में, जबकि गांव गांव में डाकघर खुल गए हैं, संवदिया के मार्फत संवाद क्यों भेजेगा कोई? पूरा पढ़ें...

कहानी – संवदिया

राम प्रसाद बिस्मिल की कविताएँ

राम प्रसाद बिस्मिल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे. उन्होंने सन् 1916 में 19 वर्ष की आयु में क्रान्तिकारी मार्ग में कदम रखा था. 11 वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया. पूरा पढ़ें...

राम प्रसाद बिस्मिल की कविताएँ

सुमित्रानंदन पंत जी की कविता ‘आते कैसे सूने पल’

1961 में 'पद्मभूषण' की उपाधि से विभूषित, जीवन-पर्यन्त रचनारत, अविवाहित पंत जी के ह्रदय में नारी और प्रकृति के प्रति आजीवन सौन्दर्यपरक भावना रही. हिंदी साहित्य पंत जी के रचनाओं से हमेशा सुशोभित होता रहेगा. आइए यहाँ आज उनके रचित कविता आते कैसे सूने पल पढ़ते है. पूरा पढ़ें...

सुमित्रानंदन पंत जी की कविता  ‘आते कैसे सूने पल’

कहानी – कफ़न

मेरी औरत जब मरी थी, तो मैं तीन दिन तक उसके पास से हिला तक नहीं; और फिर मुझसे लजाएगी कि नहीं? जिसका कभी मुँह नहीं देखा, आज उसका उघड़ा हुआ बदन देखूँ! उसे तन की सुध भी तो न होगी? मुझे देख लेगी तो खुलकर हाथ-पाँव भी न पटक सकेगी! पूरा पढ़ें...

कहानी – कफ़न

रामधारी सिंह ‘दिनकर ‘ की कविताएं

'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने गये। 24 अप्रैल 1974 को वो इस भूलोक को हमेशा के लिए त्याग दिए. आइए आज उनके द्वारा रचित कुछ बेहद ज़रूरी कविता पढ़ते है. . . . पूरा पढ़ें...

रामधारी सिंह ‘दिनकर ‘ की कविताएं

कहानी – एक आदिम रात्रि की महक

करमा अपने हाथ का बना हुआ हलवा-पूरी उस छौंड़ी को नहीं खिला सका। एक दिन कागज की पुड़िया में ले गया। लेकिन वह पसीने से भीग गया। उसकी हिम्मत ही नहीं हुई। पूरा पढ़ें...

कहानी – एक आदिम रात्रि की महक

कहानी – दिल की रानी

तैमूर ने कितनी मुहब्बत से हबीब के सफर की तैयारियाँ की। तरह-तरह के आराम और तकल्लुफ की चीजें उसके लिये जमा कीं। उस कोहिस्तान में यह चीजें कहाँ मिलेंगी। वह ऐसा संलग्न था, मानों माता अपनी लड़की को ससुराल भेज रही हो। पूरा पढ़ें...

कहानी – दिल की रानी

कहानी – माँ

इस भाँति तीन दिन गुजर गये। संध्या हो गयी थी। तीन दिन की जागी आँखें जरा झपक गयी। करुणा ने देखा, एक लम्बा-चौड़ा कमरा है, उसमें मेजें और कुर्सियाँ लगी हुई हैं, बीच में ऊँचे मंच पर कोई आदमी बैठा हुआ है। करुणा ने ध्यान से देखा, प्रकाश था। पूरा पढ़ें...

कहानी – माँ