कहानी – माँ

इस भाँति तीन दिन गुजर गये। संध्या हो गयी थी। तीन दिन की जागी आँखें जरा झपक गयी। करुणा ने देखा, एक लम्बा-चौड़ा कमरा है, उसमें मेजें और कुर्सियाँ लगी हुई हैं, बीच में ऊँचे मंच पर कोई आदमी बैठा हुआ है। करुणा ने ध्यान से देखा, प्रकाश था। पूरा पढ़ें...

कहानी – माँ

कहानी – पूस की रात

चिलम पीकर हल्कू फिर लेटा और निश्चय करके लेटा कि चाहे कुछ हो अबकी सो जाऊंगा, पर एक ही क्षण में उसके हृदय में कम्पन होने लगा. कभी इस करवट लेटता, कभी उस करवट, पर जाड़ा किसी पिशाच की भांति उसकी छाती को दबाये हुए था. पूरा पढ़ें...

कहानी – पूस की रात

कहानी – ईदगाह

प्रेमचंद के माँ के गुजर जाने के बाद उनकी दादी ने उनका पालन पोषण किया था. इसी रिश्ते को भावनात्मक रूप में पिरोकर प्रेमचंद ने दादी-पोते के रिश्ते पर यह खूबसूरत कहानी को लिखे है. आइए आपको ईदगाह पर ले चलते है. पूरा पढ़ें...

कहानी – ईदगाह

लाल पान की बेगम

सुनते ही बिरजू की माँ का चेहरा उतर गया। लगा, छाते की कमानी उतर गई घोड़े से अचानक। कोयरीटोले में किसी ने गाड़ी मँगनी नहीं दी! तब मिल चुकी गाड़ी! जब अपने गाँव के लोगों की आँख में पानी नहीं तो मलदहियाटोली के मियाँजान की गाड़ी का क्या भरोसा! न तीन में न तेरह में! क्या होगा शकरकंद छील कर! रख दे उठा के! ...यह मर्द नाच दिखाएगा। बैलगाड़ी पर चढ़ कर नाच दिखाने ले जाएगा! चढ़ चुकी बैलगाड़ी पर, देख चुकी जी-भर नाच... पैदल जानेवाली सब पहुँच कर पुरानी हो चुकी होंगी। पूरा पढ़ें...

लाल पान की बेगम

कहानी – ठेस

बिना मजदूरी के पेट-भर भात पर काम करने वाला कारीगर। दूध में कोई मिठाई न मिले, तो कोई बात नहीं, किंतु बात में जरा भी झाल वह नहीं बर्दाश्त कर सकता। पूरा पढ़ें...

कहानी – ठेस

जब दिल ना लगे दिलदार, गाँव की गलियों में आ जाना. .!!

इस दुनियाँ (अभी हमारी दुनिया भारतवर्ष से बाहर नहीं गई है) में दो तरह के लोग होते है. एक गाँव में रहने वाले और दूसरे शहर में रहने वाले. जहां शहर में सभी सुख - सुविधाएं आसानी से उपलब्ध होती हैं वहीं गाँव में कई मूलभूत सुविधाएं अपनी अस्तित्व तलाश रही होती है. पूरा पढ़ें...

जब दिल ना लगे दिलदार, गाँव की गलियों में आ जाना. .!!