गोधरा ट्रेन हादसा और गुजरात दंगे की पूरी कहानी

एक समाज के तौर पर हम हमेशा हर चीज के लिए तैयार रहते हैं। लेकिन एक ऐसी भी चीज है जिसके लिए हम तैयार नहीं रहते क्योंकि हमें एक समाज के तौर पर यह नहीं पता होता है कि ये कब कहाँ और कैसे होगा। और उस चीज का नाम है – दंगा। यह एक ऐसा शब्द है जो कभी भी किसी सभ्य समाज को आगे की तरफ नहीं बढ़ने देगा। दंगा चाहे राजनितिक हो, सांप्रदायिक हो या फिर किसी और तरह का हो। एक समाज इसके लिए कभी भी स्वीकृति नहीं देगा। दंगे की वजह कुछ भी रहे, मरती इंसानियत ही है। आज हम ऐसे ही एक दंगे की बात करेंगे जो हुआ था भारत के सबसे पश्चिमी राज्य गुजरात में और साल था 2002। इस घटना को सही तरह से जानने के लिए आपको इस वीडियो को पूरा देखना होगा ताकि आप समझ सकें कि यह किस प्रकार से फैला और इसके दोषी कौन है।

शुरुआत कब, कैसे और क्यों हुई?

यह पूरा वाकया शुरू करने से पहले मैं एक बात साफ कर रहा हूँ कि मैं आपको वही सब बात आगे बताऊंगा जो कि पब्लिक डोमेन में है। मैं यहां किसी भी सम्प्रदाय का पक्षधर नहीं हूँ। मैं सिर्फ उन बातों को ही रखूँगा जो उन दिनों घटी।

जैसा कि हम सभी को पता है कि अयोध्या में मंदिर-मस्जिद का विवाद सालों से चला आ रहा है। कितने ही हिन्दू और मुस्लिम धार्मिक संगठन इससे जुड़े हुए हैं और समय-समय पर अपनी बात रखते रहे हैं। ऐसा ही एक आयोजन फरवरी 2002 में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा किया गया था। उस आयोजन का नाम दिया गया – पूर्णाहुति महा यज्ञ। इसमें भाग लेने के लिए लगभग पुरे देश से रामभक्त पहुंचे थे। जिन्हें आम शब्दों में “कारसेवक” कहा जाता है। कारसेवक कर शब्द से बना है। संस्कृत के इस शब्द का हिंदी में मतलब होता है हाथ और सेवक कहते हैं बिना मेहनताना लिये काम करने वाले को। मतलब कारसेवक का शाब्दिक अर्थ होता है – स्वेक्षा भाव से सेवा करने वाला। इस प्रकार से जो भी लोग देशभर से उस यज्ञ में पहुंचे उन्हें कारसेवक कहा गया। यज्ञ समाप्त होने के बाद 25 फरवरी 2002 को एक ट्रेन साबरमती एक्सप्रेस अयोध्या से अहमदाबाद के लिए निकली। इसके बोगी नंबर S-5 और S-6 में खासकर के सिर्फ कारसेवक ही बैठे हुए थे। अमूमन भारत में लम्बी दुरी की ट्रेन लेट ही रहती है। उस दिन भी थी। जिस ट्रेन को चार बजे सुबह में अहमदाबाद पहुँच जाना था वो ट्रेन साढ़े छः बजे गोधरा से एक स्टेशन पहले दाहोद रेलवे स्टेशन पर रुका हुआ था।

जब गोधरा में ट्रेन जलायी गयी थी तब मंज़र कुछ ऐसा था

दाहोद से ट्रेन खुली और सुबह के 7:43 बजे गोधरा स्टेशन पर रुकी। यहाँ ट्रेन अपने आप नहीं रुकी थी बल्कि चेन पुलिंग करके इसको रोका गया था। और यह चेन पुलिंग एक बार नहीं बल्कि कई बार किया गया था। ऐसा एक रिपोर्ट में पता चला जो उस ट्रेन के ड्राइवर ने बताया। यह ट्रेन पूरी तरह से स्टेशन पर नहीं बल्कि आउटर पर खड़ी थी। आउटर वो होता है जहाँ से प्लेटफॉर्म शुरू होने वाला होता है। वहाँ आउटर के पास बस्ती थी जो मुस्लिम बहुल आबादी का था। अचानक से लगभग 2000 की संख्या में लोग वहाँ पहुंचे और खास तौर पर उसी दोनों डिब्बे S-5 और S-6 को निशाना बनाया। पत्थर फेंके गए, घरेलु हथियार से हमला किया गया और उस दोनों बोगी को आग के हवाले कर दिया गया। इस भयावह आगजनी में कुल 59 लोगों के मौके पर ही मौत हो गयी और 50 के आस पास बुरी तरह से या तो आग में झुलस गए या फिर हमले में घायल हो गए। मरने वालों में 22 पुरुष, 27 महिला और 10 बच्चे थे। यहाँ से एक समीकरण तो साफ हो गया था कि अगर मुस्लिम समुदाय ने हिन्दू समुदाय पर हमला किया है तो यह साम्प्रदायिक ही होगा।

इस भयानक हादसे के बाद साबरमती एक्सप्रेस अहमदाबाद स्टेशन पर शाम साढ़े चार बजे पहुंची। वहाँ उन लाशों को उनके परिजन तक नहीं बल्कि अहमदाबाद स्थित विश्व हिन्दू परिषद के कार्यालय में ले जाय गया। इन लाशों को शहर के बीचों-बीच से ले जाया गया था। इससे जनाक्रोश और भड़क उठा। रॉड और लाठी से लैस कारसेवकों ने नारेबाजी शुरू कर दी – ‘खून का बदला खून।’

अब अहमदाबाद और आस पास के क्षेत्रों के कारसेवक जमा होने लगे। अहमदाबाद से 50 कार सेवक स्पेशल बस में सवार होकर शाम साढ़े 6 बजे मोदासा के वड़ाग्राम में पहुंचे। 500 लोगों की भीड़ ने कारसेवकों की अगवानी की। कारसेवकों ने भीड़ को साबरमती एक्सप्रेस में अटैक के बारे में बताया। रात साढ़े नौ बजे तक देखते ही देखते भीड़ हजारों में पहुंच चुकी थी। हालात पर काबू पाने में वहां मौजूद पुलिस काफी नहीं  थी। और अब छिटफुट दंगे की खबर लॉकर पुलिस चौकियों में आनी शुरू हो गयी थी।

दंगों के वक़्त पुरे राज्य की हालात कमोबेश ऐसी ही थी

अब रात से सुबह हो गयी थी और तारीख थी 28 फरवरी। यहाँ तमाम संगठन के नेताओं ने गोलबंदी की और 28 फरवरी और 1 मार्च को गुजरात बंद का एलान कर दिया। इसमें तमाम संगठनों के नेता शामिल थे जिसकी अगुवाई विश्व हिन्दू परिषद कर रहा था। राज्य के खुफिया ब्यूरो ने गृह सचिव और सभी पुलिस कमिश्नर, सभी एसपी को रिपोर्ट भेजी। वीएचपी ने गुजरात बंद बुलाया है जरुरी निगरानी रखी जाए।

शवों को लेकर मोटरों का काफिला सुबह आखिरकार अहमदाबाद के सोला सिविल अस्पताल पहुंच गया। सोला अस्पताल के बाहर वीएचपी और आरएसएस कार्यकर्ताओं की भीड़ पहले से ही जमा थी। सोला सिविल अस्पताल के बाहर तैनात पीसीआर वैन ने शहर के पुलिस कंट्रोल रुम को संदेश भेजा। अबतक आरएसएस के 3000 सदस्यों की भीड़ सोला अस्पताल के इर्द गिर्द जमा हो गई। सोला अस्पताल के करीब भीड़ जमा होने लगी और यह भीड़ बेकाबू होती जा रही थी। यहाँ से अब कभी भी हिंसा भड़क सकती है, यह साफ हो गया था।

10 शवों को लेकर अंतिम यात्रा रामोल जनतानगर से लेकर हटकेश्वर श्मशान घाट तक निकाली गई। अंतिम यात्रा में 6 हजार लोग एक साथ थे। अंतिम यात्रा को पूरे शहर में घुमाया गया। भीड़ अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसायटी, नरोदा पाटिया और नरोदा गाम के करीब बेकाबू होने लगी। और यह बेकाबू भीड़ अब काबू में नहीं आने वाली थी।

इन दोनों को गुजरात दंगा के चेहरे के रूप में / पोस्टर बॉय के तौर पर जाना जाता है

गुजरात दंगा शुरू हो चूका था। अब यह विशुद्ध रूप से सांप्रदायिक दंगा का रूप ले चूका था। एक हफ्ते तक अहमदाबाद, गांधीनगर, गोधरा, मेहसाणा, हिम्मतनगर, वडोदरा, सूरत, भरुच जैसे प्रमुख शहरों समेत यह दंगा पुरे राज्य में फ़ैल चूका था। हालांकि छिटपुट घटना की ख़बरें मार्च के महीने तक आती रही। जब यह दंगा थमा तो इसके परिणाम ने किसी को भी हैरान नहीं किया क्योंकि यह तो अनुमानित ही था। इस दंगे में 790 मुस्लिम और 254 हिन्दुओं की मौत हो चुकी थी। यह ऑफिसियल डाटा है लेकिन बाकी सोर्सेज की माने तो मरने वालों की सख्या 2000 के करीब थी और 2500 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इस दंगा में वो सब कुछ हुआ जो एक दंगा में होता है। मसलन मास मर्डर, मास रेप, घर जलाना, गाडी फूंकना और ऐसे ही कई उत्पात।

गोधरा ट्रेन हादसे की वजह क्या थी?

इस सवाल का जवाब, सिद्धा नहीं बल्कि टेढ़ा है। पक्का नहीं हो पाया है अबतक कि ये आखिर हुआ कैसे। लेकिन सोर्स ने दो तरह की कहानियों का सहारा लिया हैं।

पहली कहानी: पहली कहानी यह है कि जब 27 फरवरी की सुबह ट्रेन दाहोद स्टेशन पर रुकी थी तब S-5 या S-6 बोगी में एक चाय वाले ने घुसने की कोशिश की। वो मुस्लिम था जिसे कारसेवकों ने बोला कि हम तुम्हारे हाथ का चाय नहीं पिएंगे और उसको ट्रेन से उतार दिया। इसी का बदला लेने के लिए वो आगे गोधरा स्टेशन पर अपने लोगों को बुला लिया और कारसेवकों पर हमला करवा दिया, जो बाद में सांप्रदायिक दंगा का रूप ले लिए।

दूसरी कहानी: पहली कहानी कितना झूठ और कितना सच है इसका कुछ भी पता नहीं चलता लेकिन जो दूसरी कहानी है उसके अनुसार यह एक पाकिस्तानी इंटेलिजेंस एजेंसी आईएसआई के द्वारा करवाया गया हमला था जिसे पूरी प्लानिंग से अंजाम दिया गया और इसके लिए लोकल मुसलामानों को धर्म के नाम पर बरगलाया गया। जिसमें वो आसानी से फंस गए और अपने ही देशवासियों को आग के हवाले कर दिया। ट्रेन के ड्राइवर ने जांच कमिटी को यह भी बताया कि उस दिन ट्रेन को पाँच से छः पार चेन पुलिंग किया गया। जांच में एक और बात का पता चला कि उस दिन ट्रेन में 60 लीटर से ज्यादा किरोसिन का तेल रखा गया था, जिसका इस्तेमाल ट्रेन को जलाने के लिए किया गया।

इस दौरान सरकार की क्या स्थिति रही ?

निःसंदेह ही यह अब तक के हुए भयानक खून-खराबों में से एक था जिसमें लोग अपनों को अपनी आंखों के सामने जिन्दा जलते हुए देख रहे थे। 27 फरवरी की ही शाम को प्रदेश के तात्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी शाम 4:30 बजे गोधरा पहुंचे और वहां जली हुई बोगियों का निरीक्षण किये।  उसके बाद संवाददाता सम्‍मेलन में नरेंद्र मोदी ने कहा कि गोधरा की घटना बेहद दुखदायी है, लेकिन लोगों को कानून व्‍यवस्‍था अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए। सरकार उन्‍हें आश्‍वस्‍त करती है कि दोषियों के खिलाफ महत्‍वपूर्ण कार्रवाई की जाएगी। उसी दिन गोधरा व उसके आसपास कर्फ्यू लागू कर दिया गया और उसी दिन गुजरात के गृहमंत्रालय ने पुलिस फोर्स को यह जरूरी निर्देश दिया कि कानून व्‍यवस्‍था को बहाल करने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं।

ट्रेन की जली हुई बोगियों से जली हुई लाश को कुछ इस तरह निकाला गया

दंगा भड़कने से रोकने के लिए सुरक्षा के लिहाज से बडे पैमाने पर संदिग्‍ध लोगों को गिरफ्तार किा गया। जिन 217 लोगों को गिरफ्तार किया गया उनमें 137 हिंदू और 80 मुसलमान थे। सरकार ये जानती थी कि हिंदुओं को गिरफ्तार करने से भाजपा और उनके मंत्रीमंडल के कुछ सदस्‍यों को मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन सरकार ने इस आशंका के बावजूद यह कदम उठाया। 

एक फैक्ट यह भी है कि इस बीच नरेंद्र मोदी ने निर्देश दिया कि 6000 हाजी हज कर गुजरात लौट रहे हैं। उन्‍हे हर हाल में सुरक्षा प्रदान किया जाए। ये सभी हाजी गुजरात के 400 गांव व कस्‍बों से हज करने गए थे। सरकार ने सभी 6000 हाजियों को सुरक्षित उनके घर तक पहुंचा दिया। हालात के नियंत्रित होने के इंतजार और इन्‍हें सुरक्षित घर तक पहुंचाने में सरकार को 20 मार्च 2002 तक का वक्‍त लग गया, लेकिन इनमें से एक को भी हिंसा का सामना नहीं करना पड़ा।

जाँच और रिपोर्ट में क्या निकला?

घटना जब इतनी बड़ी थी तो इम्पैक्ट भी बड़ा ही होना था। हुआ भी यही। कई तरह के कमिटियों का गठन किया गया कोर्ट के द्वारा। कईयों ने अपनी प्राइवेट इन्वेस्टिगेशन भी किया। लेकिन आखिर में एसआईटी की विशेष अदालत ने एक मार्च 2011 को इस मामले में 31 लोगों को दोषी करार दिया था जबकि 63 को बरी कर दिया था। इनमें 11 दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई जबकि 20 को उम्रकैद की सजा हुई।

आज कैसा माहौल है?

गुजरात में लगभग 80 प्रतिशत हिन्दू आबादी है और 10 प्रतिशत मुस्लिम आबादी। बाकी के 2 प्रतिशत में अबकी समुदाय है। लगभग 18 सालों के बाद अब तक गुजरात में ना ही सरकार बदली है और ना ही शासन। तब भी बीजेपी की ही सरकार थी और अब भी बीजेपी की ही है। तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर की प्रकार के आरोप लगे लेकिन उन्हें भी अब क्लीन चिट मिल गया है। पिछले पंद्रह सालों में गुजरात ने औद्योगिक क्षेत्र में काफी विकास किया है और लगातार प्रगति के पथ पर बढ़ रहा है।

वीडियो: देखिए अमित शाह और नरेंद्र मोदी क्या कर रहे थे गुजरात दंगे के समय

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