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कहानी फूलन देवी की, जिसे मिडिया ने बैंडिट क्वीन बना दिया
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अपने अब तक के बीस साल के जीवनकाल में सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार चुकी एक लड़की जब हाथ में रिवॉल्वर लिये हजारों लोगों के भीड़ के सामने अपने रिवॉल्वर को माथे से लगाती है तो पुरे भीड़ को लगता है कि ना जाने अब अगले ही पल क्या होने वाला है। क्योंकि बीस साल की यह लड़की अपने जिंदगी के सबसे बुरे अनुभवों को देखती हुई यहाँ तक पहुंची थी। मसलन रेप, हत्या, लूटपाट और ना जाने क्या-क्या। खैर, वो लड़की अपने बन्दुक को माथे से सटाकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के पैरों पर रख देती है और खुद को आत्मसमर्पण कर देती है। दस साल के बाद वही लड़की लोगों द्वारा चुनकर संसद तक पहुंच जाती है। और यह सफर इतनी आसान भी नहीं थी जितनी आसानी से हम आपको बता रहे हैं। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं एक डकैत से सांसद बनने वाली फूलन देवी की। आइए जानते हैं आज उनके जीवन के पुरे घटनाक्रम को और समझते हैं एक-एक पहलू को।
पैदा कहाँ हुई और बचपन कैसे बीता? – Early Life and Childhood of Phoolan Devi
10 अगस्त 1963 को उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के पुरवा गाँव में वो पैदा हुई थी। माँ-बाप गरीब थे और ऊपर के जाती के मल्लाह जिसे अब भी “छोटी जाती” में गिना जाता है। कानपुर के पास स्थित इस गांव में फूलन के परिवार को मल्लाह होने के चलते ऊंची जातियों के लोग हेय दृष्टि से देखते थे। इनके साथ गुलामों जैसा बर्ताव किया जाता था। फूलन के पिता की सारी जमीन उसके भाई से झगड़े में छिन गई थी। फूलन के पिता जो कुछ भी कमाते वह जमीन के झगड़े के चलते वकीलों की फीस में चला जाता।
दस साल की उम्र में वो जमीन के लिए अपने चाचा से भिड़ गई। चचेरे भाई मायादिन ने सर पे ईंट मार दी। इस गुस्से की सजा फूलन को भुगतना पड़ा। उसकी शादी पुट्टीलाल मल्लाह नामक आदमी से कर दी गई जब उसकी उम्र सिर्फ 10 साल की ही थी। जिस आदमी से उसकी शादी हुई वो फूलन से 30-40 साल बड़ा था। पुट्टीलाल मल्लाह ने फूलन से बलात्कार किया। कुछ साल किसी तरह से निकले। धीरे-धीरे फूलन की हेल्थ इतनी खराब हो गई कि उसे मायके आना पड़ गया। लेकिन कितने दिनों तक वो मायके में रहेगी, कुछ दोनों के बाद उसके भाई ने उसे वापस ससुराल भेज दिया। वहां जाकर पता चला कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है। पति और उसकी बीवी ने फूलन की बहुत बेइज्जती की। परेशान होकर फूलन पति का घर छोड़कर वापस मां-बाप के पास आकर रहने लगी।
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यहां उसने अपने परिवार के साथ मजदूरी करना शुरू कर दिया। यहीं से लोगों को फूलन के विद्रोही स्वभाव के नजारे देखने को मिले। एक बार तो जब एक आदमी ने फूलन को मकान बनाने में की गई मजदूरी का मेहनताना देने से मना कर दिया, तो उसने रात को उस आदमी के मकान को ही कचरे के ढेर में बदल दिया।
अब बचपन का दौर बीत रहा था और समय भी बदल रहा था।
उस समय फूलन 15 साल की थी जब कुछ दबंगों ने घर में ही उसके मां-बाप के सामने उसके साथ गैंगरेप किया। फूलन को बेहमई गांव में एक घर के एक कमरे में बंद कर दिया गया था। तीन सप्ताह की अवधि में कई उच्च जाति के ठाकुर (राजपूत) पुरुषों द्वारा उसे पीटा गया, बलात्कार किया गया और अपमानित किया गया। उन्होंने उसे गाँव के चारों ओर नंगा करके घूमा दिया। इसके बाद वह तीन सप्ताह की कैद से भागने में सफल रहीं।
बावजूद इसके फूलन के तेवर कमजोर नहीं पड़े। अब फूलन का उठना-बैठना कुछ नए लोगों के साथ होने लगा। ये लोग डाकुओं के गैंग से जुड़े हुए थे। धीरे-धीरे फूलन उनके साथ घूमने लगी। फूलन ने ये कभी क्लियर नहीं किया कि अपनी मर्जी से उनके साथ गई या फिर उन लोगों ने उन्हें उठा लिया। कई जगह तो यह भी क्लेम किया गया है कि गांव के दबंगों ने एक दस्यु गैंग को कहकर फूलन का अपहरण करवा दिया। फूलन ने अपनी आत्मकथा में कहा – शायद किस्मत को यही मंजूर था।
अब टाइम था प्रेम कहानी वाला – दो लोगों के बीच की नहीं बल्कि तीन लोगों वाला लव ट्राइंगल।
पुरुषों द्वारा संचालित गैंग में जब एक युवती की एंट्री हुई तो जाहिर सी बात है कि कुछ लोगों का दिल तो मचलना ही था। दिल मचला और ये दिल एक नहीं बल्कि दो था। दोनों गेंद के रसूखदार लोग थे – पहला था गैंग का सरदार बाबू गुज्जर सिंह और दूसरा विक्रम मल्लाह। लेकिन फूलन को पसंद आया विक्रम और इस तरह बाबू गुज्जर सिंह को अपनी जान गंवानी पड़ी। बाबू गुज्जर सिंह को मारने के बाद अब विक्रम मल्लाह गैंग का सरदार बन चूका था। अब फूलन विक्रम के साथ रहने लगी। एक दिन फूलन अपने गैंग के साथ अपने पति के गांव गयी। वहाँ वह अपने पति और उसकी दूसरी पत्नी से अपने पुराने अपमान का बदला लिया और दोनों कि जमकर धुलाई की।
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अब फूलन देवी के लिए टाइम आ गया था कुछ बड़ा करने का – रेप का बदला लेने का।
सबसे बड़ा काम होता है अपने द्वारा सोचा हुआ काम करना। फूलन ने भी वही किया। उन्होंने अपने रेप का बदला लिया। वो अपने गैंग को लेकर उसी बेहमई गाँव में गयी जहाँ उसका रेप हुआ था। वैलेंटाईन डे, यानी कि 14 फरवरी का दिन और साल 1981, फूलन ने गाँव से 22 ठाकुरों को उठाया और लाइन में खड़ा करके सबको गोली मार दी। कहा जाता था कि फूलन देवी का निशाना बड़ा अचूक था और उससे भी ज़्यादा कठोर था उनका दिल। इस घटना ने फूलन देवी का नाम बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर ला दिया था।
फूलन देवी का कहना था उन्होंने ये हत्याएं बदला लेने के लिए की थीं। उनका कहना था कि ठाकुरों ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया था जिसका बदला लेने के लिए ही उन्होंने ये हत्याएं कीं।
जानकारों का कहना है कि हालात ने ही फूलन देवी को इतना कठोर बना दिया कि जब उन्होंने बहमई में एक लाइन में खड़ा करके 22 ठाकुरों की हत्या की तो उन्हें ज़रा भी मलाल नहीं हुआ। फूलन देवी 1980 के दशक के शुरुआत में चंबल के बीहड़ों में सबसे ख़तरनाक डाकू मानी जाती थीं।
बैंडिट क्वीन का नाम और फिर जिंदगी की अगली पारी
यही वो हत्याकांड था जिसने फूलन देवी की छवि एक खूंखार डकैत की बना दी। कहने वाले कहते हैं कि ठाकुरों की मौत थी इसीलिए राजनीतिक तंत्र फूलन के पीछे पड़ गया। मतलब ऊँचे जाती वाले के साथ कुछ होगा तभी न्याय की बात भी होगी। नतीजा यह हुआ कि पुलिस फूलन के पीछे पड़ गयी। उसके सर पर इनाम रखा गया। मीडिया ने फूलन देवी को नया नाम दिया: बैंडिट क्वीन। इसी हत्याकांड के बाद यूपी के मुख्यमंत्री वी पी सिंह को रिजाइन करना पड़ा था।
अब बारी आ गयी थी सरेंडर करने की। – Surrender of Phoolan Devi – The Bandit Queen
मध्यप्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह सरकार ने फूलन देवी के समर्पण से पहले चर्चित डाकू मलखान सिंह का सरेंडर किया था जो उस समय का सबसे बड़ा डकैत हुआ करता था। इसका सरकार को बड़ा श्रेय मिला लेकिन एक महिला डकैत जिसके ऊपर 22 लोगों की सामूहिक हत्या का आरोप था और जिसकी पूरी दुनिया में चर्चा थी उसके सरेंडर के लिए एमपी सरकार और पुलिस बेताब थी। अब सबसे बड़ा समस्या यह था कि एमपी में फूलन देवी के खिलाफ कोई केस था ही नहीं वहीं दूसरी तरफ यूपी पुलिस और फूलन देवी एक दूसरे को फूटी आँख भी नहीं देखना चाहते थे। कारण यह कि फूलन देवी के चलते ही तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह को इस्तीफा देना पड़ा था। यूपी पुलिस फूलन देवी को एनकाउंटर के लिए ढूंढ रही थी और एमपी पुलिस उसको सरेंडर करवाने के लिए।
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कहानी इतनी सी ही नहीं है, कहानी और दिलचस्प है। बंगाल के लेखक कल्याण मुखर्जी उन दिनों नक्सलियों पर एक किताब लिखने के सिलसिले में मध्यप्रदेश आए हुए थे। उन्होंने फूलन देवी के लोगों से संपर्क किया। फूलन देवी से ये कहा गया कि तुम्हारा एनकाउंटर नहीं होगा और तुम समर्पण कर दो। यह खबर जब यूपी पुलिस तक पहुंची तो उनको बहुत गुस्सा आया। यूपी पुलिस ने फूलन को धमकी भेजी कि अगर टुनमें एमपी पुलिस को सरेंडर किया तो तुम्हारे परिवार का सफाया कर देंगे। फूलन ने इस धमकी के बाद अपने परिवार को सुरक्षित एमपी लाने को कहा।
उस समय भिंड के टाउन इंस्पेक्टर मंगल सिंह चौहान को सात-आठ सिपाहियों के साथ जालौन जिले के कालपी कोतवाली भेजा गया जहां एक गांव में फूलन का परिवार रहता था, लेकिन यूपी पुलिस ने इंस्पेक्टर सहित सभी लोगों को पकड़कर जेल में डाल दिया और राज्य के बाहर कार्यवाही करने के लिए मुकदमा चलाया। लेकिन अगली सुबह किसी तरह उन सबकी जमानत हो गयी।
उधर मध्यप्रदेश में अलग ही खेला चल रहा था। चंबल रेंज के डीआईजी इस समर्पण के खिलाफ थे। उनका मानना था कि डकैतों का सरेंडर नेम-फेम के लिए किया जा रहा है। और सरकारें इससे अपना राजनितिक फायदा उठाना चाहती है। ऐसे डकैतों का सरेंडर नहीं बल्कि एनकाउंटर होना चाहिए। उन्होंने फूलन के खास आदमी बाबा मुस्लिम के भाई को किसी बहाने बुलाकर उस पर साजिश के तहत गोली चलवा दी। उस डकैत को तो बचा लिया गया लेकिन इस वजह से डीआईजी और इंस्पेक्टर को काफी फटकार सुननी पड़ी और उनका ट्रांसफर हो गया। इंदिरा गाँधी की सरकार ने 1983 में उनसे समझौता किया की उसे मृत्यु दंड नहीं दिया जायेगा और उनके परिवार के सदस्यों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया जायेगा।
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उधर फूलन देवी चंबल रेंज के डीआईजी वाले प्रकरण से बहुत गुस्से में थीं और सरेंडर से इनकार कर दिया था। कहा जाता है कि तब के एसपी राजेंद्र चौधरी के काफी मनाने के बाद भी जब फूलन नहीं मानी तो एसपी ने अपना इकलौता बेटा फूलन के सुपुर्द करते हुए कहा कि जब यकीन हो जाए तब समर्पण कर देना, तब तक जमानत के तौर पर मेरा बेटा रख लो। फिर बाद में 13 फरवरी 1983 को फूलन देवी ने हजारों के भीड़ के सामने भिंड के एमजीएस कॉलेज में लाल रंग का कपड़ा माथे पर बांधे अपने बन्दुक को माथे पर सटाया और फिर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अर्जुन सिंह के पैरों में रख दिया और आत्मसमर्पण कर दिया।
उन पर 22 हत्या, 30 डकैती और 18 अपहरण के चार्जेज लगे। लेकिन बिना मुकदमा चलाये ग्यारह साल तक जेल में रहने के बाद फूलन को 1994 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने रिहा कर दिया। ऐसा उस समय हुआ जब दलित लोग फूलन के समर्थन में गोलबंद हो रहे थे और फूलन इस समुदाय के प्रतीक के रूप में देखी जाती थी। रिहाई के बाद फूलन देवी ने उम्मेद सिंह से शादी की।
फूलन देवी का राजनितिक सफर और उनकी हत्या – The Political Journey and The Assassination of Phoolan Devi
यह मुलायम सिंह के दिमाग का कमाल था। उसने दलितों के नेता के रूप में फूलन देवी को अपने पार्टी से टिकट दिया। समाजवादी पार्टी ने जब उन्हें लोक सभा का चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया तो काफ़ी हो हल्ला हुआ कि एक डाकू को संसद में पहुँचाने का रास्ता दिखाया जा रहा है। लेकिन साल 1996 में वो लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद पहुँच गयी। चम्बल के जंगलों में नंगे पाँव घूमने वाली एक डकैत अब दिल्ली के अशोका रोड के शानदार बंगले में रहने लगी। यही तो भारतीय लोकतंत्र का कमाल है। हालाँकि वो 1998 में हार गईं, लेकिन फिर से 1999 में वहीं से जीत गयी और दूसरी बार संसद पहुंची।
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दिल्ली के तिहाड़ जेल में कैद अपराधी शेर सिंह राणा उर्फ़ पंकज सिंह ने फूलन देवी की हत्या की। हत्या से पहले वह देश की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली तिहाड़ जेल से फर्जी तरीके से जमानत पर रिहा होने में कामयाब हो गया। 25 जुलाई 2001 को विक्की, शेखर, राजबीर, उमा कश्यप, उसके पति विजय कुमार कश्यप के साथ दो मारूति कारों में दिल्ली आया। राणा फूलन के संसद से घर लौटने का इंतजार कर रहा था। फूलन के गाड़ी से उतरते ही राणा ने उनके सिर में गोली मारी जबकि विक्की ने उनके पेट में कई गोलियां उतार दी। आरोप-पत्र के मुताबिक, बाद में राणा ने जमीन पर गिर चुकीं फूलन पर अंधाधुंध गोलियों की बरसात कर दी। बाद में राणा ने कहा कि मैंने बेहमई हत्याकांड का बदला लिया है, क्योंकि मैं भी ठाकुर और राजपूत के खंडन को बिलोग करता हूँ। 14 अगस्त 2014 को दिल्ली की एक अदालत ने शेर सिंह राणा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
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कुल जमा 38 साल की जिंदगी में फूलन देवी ने अपने जीवन के हर पहलुओं को छुआ है। लेकिन अगर इंसान जाती, धर्म, लिंगात्मक भेदभाव जैसी कुरीतियों के परे जाकर सोचे तो शायद ही फिर कभी हमें दूसरी फूलन देवी देखने को मिले।
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