कहानी वीरप्पन की, जिसे मारने के लिए सरकार ने पानी के जैसा पैसा बहाया था।

कई सूत्रों ने इस बात का दावा किया है कि वीरप्पन जयललिता और करूणानिधि के झगडे की पैदाइश था।

हम किसी भी तरह के अपराध को जस्टिफाय नहीं कर रहे हैं लेकिन कई अपराधी ऐसे होते हैं जो सिस्टम से जूझते हुए अपराध करने पर मजबूर हो जाता है और फिर वही अपराधी आगे चलकर प्रशासन और सरकार के लिए सरदर्द बन जाता है। आज की कहानी एक ऐसे ही सिस्टम जनित अपराधी की है, जिसने आगे चलकर सरकार के नाक में दम कर दिया था। जी हाँ, आज बात करेंगे वीरप्पन के लाइफ की पूरी कहानी को एकदम सिलसिलेवार ढ़ंग से ताकि आपको उसके बारे में पूरी जानकारी सही-सही मिल सके। तो चलिए जानते हैं उनके पैदा होने से लेकर एनकाउंटर तक की पूरी कहानी।

वीरप्पन का जन्म और शुरूआती जीवन

वीरप्पन का जन्म 18 जनवरी 1952 को कर्नाटक जिले के गोपीनाथम नामक गाँव में एक चरवाहा परिवार में हुआ था। जो तमिलनाडू की सीमा से लगा हुआ एक जंगली इलाका था। बचपन के दिनों वह मोलाकाई नाम से भी जाना जाता था। 8 साल की उम्र में वह एक अवैध रूप से शिकार करने वाले गिरोह का सदस्य बन गया। अगले कुछ सालों में उसने अपने एक प्रतिद्वंदी गिरोह का खात्मा किया और सम्पूर्ण जंगल का कारोबार उसके हाथों में आ गया। उसने चंदन तथा हाथीदांत से काफी पैसा कमाया। वीरप्पन का पूरा नाम कूज मुनिस्वामी वीरप्पन था।

गांव के लोगों के मुताबिक पहले ये भी एकदम गरीब और साधारण आदमी था। फॉरेस्ट विभाग के लोगों ने ही इसे उकसाया था स्मगलिंग के लिये, ताकि थोड़ी बहुत मलाई वो लोग भी चाट सके। लेकिन फिर जब वीरप्पन पैसा बनाने लगा तो वो इसको मारने के चक्कर में पड़ गये। फिर वो जंगल में भाग गया। और तभी से नई-नई कहानियों का सिलसिला शुरू हो गया।

गांव के लोगों के मन में वीरप्पन के प्रति इज्जत थी क्योंकि वो कभी भी गाँव वालों को परेशां नहीं किया था। गाँववालों से जब भी कोई पूछता तो उनका कहना यह होता था कि लोग वीरप्पन के बारे में सिर्फ स्कैंडल या कोई जुर्म की कहानी ही सुनना चाहते हैं। पर ये कोई नहीं जानना चाहता कि एक गरीब आदमी कैसे पुलिस, राजनीति और सरकार के भ्रष्टाचार तंत्र में फंस कर वीरप्पन बन जाता है। और ये कितना तकलीफदेह होता है – समाज के लिए, सरकार के लिए और प्रशासन के लिए।


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जंगल का जीवन और उनका तस्करी था बिजनेस

वीरप्पन ने केवल 10 साल की उम्र में ही अपना जौहर दिखाना शूरू कर दिया था और 1962 में उसने अपने जीवन का पहला जुर्म किया था । वीरप्पन ने अपने गुरु सेवी गौंडर की मदद से एक एक तस्कर वीरैय्या को मौत को मौत के घाट उतारा था, जो उसके साथ कॉम्पिटिशन में था। जब इस बात की खबर जंगल के वन अधिकारीयों को पता चली, तो वीरप्पन ने तीन वन अधिकारियो को मार दिया ताकि वो तस्करी की बात किसी और को बता ना पाए। अब आ गया था साल 1970, जब वीरप्पन एक शिकारियों के गिरोह में शामिल हो गया और अब सबकुछ ऑर्गनाइज्ड ढंग से करने लगा। लेकिन सबकुछ इतना आसान होता तो बात ही क्या थी। समय ने करवट बदली और वह दो साल बाद ही साल 1972 में पहली बार पुलिस के हत्थे लग गया।

पुलिस के साथ उनका आँख मिचौली का खेल चलता रहा। और समय के साथ ही वीरप्पन हाथी दांत और चन्दन तस्करी में माहिर हो गया था।  हाथी दांत के तस्करी के लिए हाथियों को मार गिराना उसके बांये हाथ का खेल बन गया था। उसके काम में अड़ंगा डालने वाले हर पुलिस अधिकारी, वन अधिकारी और लोगों को भी मारा। 27 अगस्त 1983 को उसने उसको चन्दन तस्करी और हाथी दांत तस्करी से रोकने वाले वन अधिकारी सहित उसके सहयोगियों को मार दिया था। 1986 में में वो एक बार फिर पुलिस के हत्थे चढ़ा और पुलिस ने उसे जब फॉरेस्ट गेस्ट हाउस में बंदी बनाया तो रहस्यमयी तरीके से वो वहाँ से भाग गया। क्योंकि अब तक वो समय आ चुका था जब जंगल को वीरप्पन से ज्यादा कोई भी नहीं जानता था।

अब टाइम गया था जब वीरप्पन की हिम्मत आसमान की बुलंदियों को छू रहा था

साल 1987 में वीरप्पन ने तमिलनाडु के वन अधिकारी चिदंबरम को पहले अगुआ किया और फिर उसको मार दिया। ये पहली घटना थी जिससे भारत सरकार का भी ध्यान वीरप्पन की ओर गया। 9 अप्रैल 1990 को उसने तीन पुलिस अफसर को मार दिया, जिसकी वजह से कर्नाटक सरकार और तमिलनाडू सरकार हरकत में आ गयी और दोनों सरकारों ने मिलकर वीरप्पन को ढूँढ निकालने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स भेजी। नवम्बर 1991 में वीरप्पन ने सीनियर IFS ऑफिसर पंदिल्पल्ली श्रीनिवास को मार कर उसका सर धर से अलग कर दिया था क्योंकि वो उसके काम में रुकावट पैदा कर रहा था। वीरप्पन ने हाथीदांत के लिए लगभग 2000 हाथियों को मार दिया था और हाथी दांत तस्करी में उसके मुकाबले कोई और नहीं था।

साल 1991 में वीरप्पन ने एक ग्रेनाइट खदान के मालिक के बेटे को अगुआ कर लिया और एक करोड़ की फिरौती माँगी लेकिन बाद में उसे सिर्फ 15 लाख पर छोड़ दिया था। 1992 में वीरप्पन ने रामपुरा पुलिस स्टेशन पर हमला बोल दिया, जिसमे उसने पांच पुलिस वालों को तो मौत के घाट उतार दिया था औ दो लोगो को घायल कर सारा असला बारूद लेकर भाग गया। इस भिडंत में वीरप्पन की टोली के भी दो लोग मारे गये थे। इसी तरह उसने 1992 में मैसूर के जिला SP हरिकृष्णा, शकील अहमद सहित चार कांस्टेबल को भी मार गिराया।


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अब आता है साल 1993, जिसने वीरप्पन को लगभग साड़ी दुनिया में मशहूर करवा दिया। साल 1993 वीरप्पन की जिंदगी का सबसे ज्यादा रोमांचकारी साल रहा। साल 1993 में वीरप्पन की तमिलनाडू के पुलिस अफसर रेम्बो गोपाल कृष्णन से एक नजदीकी भिडंत हुयी जिसमे वीरप्पन बाल बाल बच गया था। फिर उसी साल 1993 में ही BSF के जवानों ने इस मिशन को अंजाम दिया लेकिन उनके ऑपरेशन में सबसे बड़ी बाधा भाषा थी जिसके कारण ये ऑपरेशन फेल हो गया और BSF के 20 जवान भी मारे गये। उसी साल वीरप्पन ने एक बार फिर जाल बिछाया और पुलिस अफसर, वन अधिकारी और नागरिको से भरी बस को विस्फोटक से उड़ा दिया। इस घटना को पालर ब्लास्ट कहते है जिसमे 22 नागरिक और पुलिस वालो की मौत हो गयी थी।

1993 में ही वीरप्पन ने STF के 6 पुलिस वालो को मार दिया जिसके बाद BSF और STF के जॉइंट ऑपरेशन के कारण वीरप्पन की गैंग के 9 लोग गिरफ्तार हुए और 6 लोग मौके पर ही मार दिए गए। अब गुस्से से भरे वीरप्पन ने 1994 में कोयम्बटूर के पुलिस उपाधीक्षक चिदंबरमनथम सहित दो लोगो का अपहरण कर लिया। फिर उसके बाद 1995 में उसने तमिलनाडु के तीन वन अधिकारियो को अगुआ कर लिया। 1996 में उसने एक पुलिस इनफॉर्मर सहित 19 पुलिस वालो को मार दिया।

1997 में उसकी गैंग ने सरकारी ऑफिसर समझकर दो वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर सेनानी और कृपाकर का अपहरण कर लिया था। ये लोग उसके साथ 11 दिन रहे और फिर उन्हें बिना नुकसान पहुँचाए जाने दिया गया। इन्होंने वीरप्पन की जो कहानी सुनाई उसपर यकीन ना करते हुए भी यकीन करने को दिल करता है। उनके अनुसार, वीरप्पन हाथियों को लेकर बड़ा इमोशनल था। उसने कहा कि जंगल में जो कुछ होता है, मेरे नाम पर मढ़ दिया जाता है। पर मुझे पता है कि 20-25 गैंग शामिल हैं इस काम में। सारा काम मैं अकेले ही नहीं करता। मैंने कब का छोड़ दिया है। उन फोटोग्राफर्स के मुताबिक यह बात करते समय वीरप्पन नेशनल ज्यॉग्रफिक मैगजीन पढ़ रहा था।

कन्नड़ सुपरस्टार राजकुमार के अपहरण की कहानी

साल चल रहा था 2000, अब वीरप्पन ने अपहरण किया कन्नड़ भाषा के सबसे बड़े सुपरस्टार राजकुमार का। वीरप्पन का गांव कर्नाटक में आता है। राजकुमार तमिलनाडु में जन्मे थे। कर्नाटक और तमिलनाडु में कावेरी नदी को लेकर झगड़ा है। तो राजकुमार को इसीलिये किडनैप किया गया था कि पानी के मुद्दे पर बात की जा सके। ये वही कावेरी विवाद है जो अभी तक थमने का नाम नहीं ले रहा है तो सोचिये इसकी जड़ें कितनी गहरी है। और अब तक आपलोग यह तो समझ ही गए होंगे कि वीरप्पन जयललिता और करुणानिधि के झगड़े की पैदाइश था। लेकिन परदे के सामने हमेशा रहा चन्दन के लकड़ी और हाथी के दांत की तस्करी और साथ में वीरप्पन का खुनी खेल।

कन्नड़ सुपरस्टार राजकुमार के साथ वीरप्पन

खैर, राजकुमार की किडनैपिंग के बाद 50 करोड़ मांगे थे वीरप्पन ने उसकी रिहाई के लिये। साथ ही बॉर्डर इलाकों के लिये वेलफेयर स्कीम। ये अपने गाँववालों के सामने हीरो बनने का एकदम नया अंदाज था। हालांकि वीरप्पन ने 109 दिनों के बाद कन्नड़ अभिनेता रिहा कर दिया था।

अब कहानी वीरप्पन के एनकाउंटर की

2002 में वीरप्पन कर्नाटक के पूर्व मंत्री नागप्पा को पहले अपहरण किया और फिर मौत के घाट उतार दिया। इस घटना के बाद से वीरप्पन को जिन्दा या मुर्दा पकडकर लाने वाले को सरकार ने 5 करोड़ का इनाम देने की घोषणा की। वीरप्पन ने अब तक 184 लोगों को मारा था, जिसमें से 97 लोग सिर्फ पुलिस के ही थे। हाथियों को मारना इसका पेशा था। 10 हजार टन चंदन की लकड़ी काट के बेच दी। जिसकी कीमत 2 अरब रुपये थी। वीरप्पन को मारने के लिये जो टास्क फोर्स बनाई गई थी, उस पर अब तक 100 करोड़ रुपये खर्च हो चुके थे।


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वीरप्पन का कहना था कि पुलिस ने ही उसके भाई-बहन को मारा है और वह इन पुलिसवालों को मारकर अपना बदला पूरा कर रहा है। वैसे कहा जाता है कि वीरप्पन कला-प्रेमी भी था, उसने अंग्रेजी फिल्म “द गॉडफादर” लगभग 100 बार देखी थी इसके अलावा उसे कर्नाटक संगीत भी काफी प्रिय था।  वीरप्पन को अपनी घनी मूंछे बहुत पसंद थीं, वह माँ काली का बहुत भक्त था और कहा जाता है कि उसने एक काली मंदिर भी बनवाया था।

साल 2003 में जब विजय कुमार एसटीएफ के चीफ बने तब वीरप्पन का गैंग ढीला पद गया था। विजय कुमार के लिए वीरप्पन नया नाम नहीं था। 1993 में भी विजय ने उसको पकड़ने के लिए बड़ी मेहनत की थी। अब समय बदल रहा था, लोग मुख्यधारा में लौट रहे थे। अब गैंग वाली लाइफ लोगों को अच्छी नहीं लगती थी। वीरप्पन के गैंग में लोग कम होने लगे थे। और यह बात विजय कुमार को पता चल चुकी थी।

अब साल 2004 चल रहा था। 18 अक्टूबर का दिन, उस दिन वो आंख का इलाज कराने निकला था। जंगल से जब बाहर निकला तो पपीरापट्टी गांव में एक एंबुलेंस ली। पर वो गाड़ी थी पुलिस की, जिसे विजय कुमार का एक आदमी चला रहा था। जो वीरप्पन के लोगों से दोस्ती कर चुका था। पुलिस के लोग रास्ते में छिपे थे। एक जगह गाड़ी रोककर ड्राइवर भाग निकला। फायरिंग होने लगी। ड्राइवर के जिंदा बच निकलने का कोई चांस नहीं था। लेकिन किस्मत अच्छी निकली और वो भाग निकलने में कामयबा रहा। वीरप्पन मारा गया। कहते हैं कि उसे जिंदा पकड़ने की कोशिश ही नहीं की गई। क्योंकि वो छूट जाता। लेकिन पुलिस रिपोर्ट यही कहती है कि हमने वॉर्निंग दी थी, पर उसने गोली चलानी शुरू कर दी और फिर हमें जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी। तमिलनाडु स्पेशल टास्क फ़ोर्स इस ऑपरेशन कर कई महीनों से काम कर रही थे और इस ऑपरेशन का नाम ऑपरेशन कोकून था।

वीरप्पन की मौत की खबर सुनते ही गोपीनाथम गाँव के लोगो ने पटाखे जलाकर खुशिया मनायी। वीरप्पन के मौत के बाद इस गाँव को को कर्नाटक सरकार ने Eco-Tourism  के लिए रिजर्व कर दिया । वीरप्पन का अंतिम संस्कार तमिलनाडु के मूलाकडू गाँव में किया गया, जहाँ उसके परिवार के कुछ सदस्य और रिश्तेदार रहते थे। पुलिस ने पहले हिन्दू रीती रिवाज के अनुसार दाह संस्कार करने की योजना की थी लेकिन रिश्तेदारों के दबाव में वीरप्पन को दफनाया गया।

एनकाउंटर के वक्त वीरप्पन बहुत ही दुबला हो गया था, उसकी रौबदार मूछें अब जाती रही थी।

वीरप्पन के लाइफ पर कई डॉक्यूमेंट्रीज और फिल्में भी बन चुकी है जिसमें उनके लाइफ के अलग-अलग भागों को दिखने की कोशिश की गयी है।

वीरप्पन की पत्नी क्या कहती है वीरप्पन के बारे में

कहते हैं कि वीरप्पन की बीवी ने उससे शादी इसलिए की कि उसे वीरप्पन की मूंछें और बदनामी रास आ गई थी। उनके अनुसार नेताओं ने इसका खूब इस्तेमाल किया। हमने साउथ छोड़कर नॉर्थ जाने का भी प्लान किया था पर वीरप्पन ने कहा कि अगर यहां से बाहर निकले तो लोग मार देंगे। क्या आपको पता है कि मेरे पति को 12 की उम्र में एक कुत्ते की तरह चेन में बांध दिया गया था। किसी ने एक हाथी के दांत निकाल लिये थे और इल्जाम वीरप्पन पर लगाया था। इस टॉर्चर के बाद वीरप्पन हमेशा के लिए बदल गया। मुत्थुलक्षमी से विवाह करने के बाद वीरप्पन और उनकी पत्नी ने एक छोटी सी ग्रोसरी की दुकान खोल ली और कभी भी समाज में दिखावा नहीं किया की उनके पास घर चलाने को भरपूर पैसा है यहाँ तक इनकी बेटी विद्यारानी भी आम बच्चो की तरह ही रहती। वीरप्पन की हत्या के बाद उसकी पत्नी मुत्थुलक्षमी का कहना है की वो एक लविंग फादर और एक अच्छे पति थे उन्होंने ने कभी भी मुझे जंगले आने के लिए नहीं कहा जिससे की बच्चो की परवरिश पर कोई असर पड़े।

वीडियो: देखिए, क्यों वीरप्पन को पकड़ने में बीस साल लग गए?

तो यह थी वीरप्पन के जिंदगी की पूरी कहानी। आपके सलाह और सुझावों का हमें हमेशा इन्तजार रहता है। बेजोड़ जोड़ा के ताजातरीन अपडेट्स के लिए फेसबुक पर लाइक और ट्विटर पर फॉलो ज़रूर करें। वीडियो अपडेट्स पाने के लिए हमारे यूट्यूब चैनल को सब्स्क्राइब करके घंटी के बटन को छूना बिलकुल ना भूलें।

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