happy birthday yuvraj singh-collage

भारतीय क्रिकेट का वो तूफ़ान ऑलराउंडर, जिसके सितारे अब गर्दिश में है.

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उनको जब भी मौका मिला, वो रन बरसाए. जब भी क्रीज पर उतरा, दर्शकों को भरपूर मनोरंजन दिया. जब भी दाँये घुटने को जमीं से टिकाया, गेंद को दर्शक दीर्घा में पहुँचाया. लेकिन अब वो दिन लड़ गए. इस शेर में अब वो ताकत नहीं बची, दहाड़ काम हो चुकी है. फिल्ड पर थके-थके से लगते हैं. हम बात कर रहे हैं टीम इंडिया के सबसे ताकतवर ऑलराउंडर युवराज सिंह की. युवराज सिंह अभी काफी दिनों से टीम से बाहर चल रहे हैं और ऐसे माहौल में कब उनकी वापसी होगी, कहना लगभग नामुमकिन है. ऐसी ही वापसी जब गौतम गंभीर की नहीं हुई तो उन्हें सन्यास ही लेना पड़ गया. ऐसे में उम्मीद तो यही की जा सकती है की युवराज सिंह को कम से कम एक फेयरवेल मैच तो मिलना ही चाहिए, जो हर क्रिकेटर डिजर्व करता है जिसने अपने देश का प्रतिनिधित्व किया है.

जब टेनिस छोड़ पिता के कहने पर थामी बैट

युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह भी भारतीय टीम के तरफ से खेल चुके हैं. उनकी दिली तमन्ना थी की युवराज उनकी विरासत को आगे बढ़ाए, लेकिन युवराज का दिल रम गया था टेनिस खेलने में. टेनिस का रैकेट बेटे के हाथ में योगराज को अच्छा नहीं लगा और ज़बरदस्ती अपने बेटे के हाथ में बल्ला थमा दिया. बड़े बाप का बेटा होने का एक फायदा यह भी हुआ कि उन्हें आगे बढ़ने में कुछ खासी मशक्कत नहीं करनी पड़ी. हाँलाकि उनके बैट से लगातार रन निकल रहे थे. साथ ही स्पिन बॉलिंग में भी वो अपना हाथ आजमाते रहते थे. लोगों ने युवराज सिंह को पहली बार तब जाना था जब वो साल 1999 में कूच बेहर ट्रॉफी के फ़ाइनल में बिहार के खिलाफ खेलते हुए अकेले ही 358 रनों कि विशाल पारी खेली थी. और इससे भी मज़ेदार बात यह थी कि उस मैच में बिहार कि पहली पारी सिर्फ 357 रनों पर ही सिमट गयी थी. इस मैच में बिहार कि तरफ से महेंद्र सिंह धोनी भी खेले थे. यह फ़ाइनल मैच जमशेदपुर में खेला गया था, जो अब झारखण्ड में पड़ता है. इसी तरह से आगे बढ़ते हुए साल 2000 में 19 साल की आयु में वो केन्या के खिलाफ एकदिवसीय मैच में भारत के और से पहली बार खेला और आगे जो हुआ वो पूरा का पूरा इतिहास है.

जब मिली विश्व कप-2003 वाली टीम में जगह

साल 2000 में आईसीसी नॉकऑउट ट्रॉफी और 2001 में श्रीलंका में हुए कोका-कोला कप में शानदार प्रदर्शन के दम पर वो साल 2002 में इंग्लैंड में हुए नेटवेस्ट ट्रॉफी के लिए अपनी जगह पक्की की. उसी नेटवेस्ट ट्रॉफी के फ़ाइनल मैच में मो. कैफ के साथ मिलकर युवराज ने लॉर्ड्स में अंग्रेजों के जबड़े से जीत छीनी थी.

उस मैच का पूरा हाईलाइट यहाँ देखिये:

फिर उसी साल सितम्बर महीने में हुए चैम्पियंस ट्रॉफी में भी युवराज का सेलेक्शन हुआ लेकिन उनके बल्ले से रन नहीं निकला. बावजूद इसके उन्हें वर्ल्ड कप वाली टीम में जगह मिली. उस पुरे टूर्नामेंट में भारत द्वारा खेले सभी दस मैचों में युवराज ने बैटिंग की और सिर्फ दो अर्धशतक ही बना सके. उनका हाइएस्ट स्कोर 58* रहा था जो केन्या के खिलाफ बने थे. फ़ाइनल में युवराज ने सिर्फ 24 रनों की पारी खेली थी और इंडिया वह ड्रीम फ़ाइनल हार गया था. उसी साल युवराज ने न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट मैच में डेब्यू किया.

अब आया मौसम ट्वेंटी-20 मैचों का

अब तक युवी टीम इंडिया के अहम सदस्य हो गए थे. उनके होने का मतलब था ताबड़तोड़ बल्लेबाज़ी का शानदार प्रदर्शन. बैटिंग तो बैटिंग अब तो वो अपने बॉलिंग और फील्डिंग से भी टीममेट्स और दर्शकों का दिल जीतने लगे थे. फिर साल आया 2007. अब टी-20 मैचों का वर्ल्ड कप शुरू हो रहा था. सचिन, गांगुली और द्रविड़ ने क्रिकेट के इस छोटे फॉर्मेट में खेलने से इंकार कर दिया. कप्तानी का बीड़ा उठाया लम्बे वालों वाला महेंद्र सिंह धोनी ने और उपकप्तान बने युवराज सिंह.

Indian cricketer Mahindra Singh Dhoni (R) rides the motorcycle awarded as a prize to teammate and man of the match Yuvraj Singh (L) who rides pillion during the second One Day international (ODI) match between England and India in Indore on November 17, 2008. Hosts India defeated England by 54 runs to take a 2-0 lead in the seven-match one-day series. AFP PHOTO/RAVEENDRAN (Photo credit should read RAVEENDRAN/AFP/Getty Images)

इस वर्ल्ड कप के एक लीग मैच में इंग्लैंड के खिलाफ डरबन में युवराज ने स्टुअर्ट ब्रॉड के एक ही ओवर छः छक्के लगाकर यह जाता दिया की क्रिकेट के इस छोटे से फॉर्मेट के भी वह बादशाह है. उस दिन वो सिर्फ 12 गेंदों में अपना अर्धशतक पूरा किया, जो की एक रिकार्ड है. उनका इनिंग जब ख़त्म हुआ तब तक वो 16 गेंदों में 58 रन बना चुके थे.

युवराज की यह पारी यहाँ देखिये:

भारत यह मैच 18 रनों से जीता था. फिर आया ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल, जिसमें युवराज ने 30 गेंदों पर 70 रनों की धुआंधार पारी खेली थी और टीम इंडिया को आसानी से फाइनल में पहुँचाया था. उसी मैच में ब्रेट ली के गेंद पर लगाया गया 119 मीटर का छक्का दर्शनीय था, अबतक है और हमेशा रहेगा.

आईपीएल वाले बाबू युवराज सिंह

साल 2008 में जब ललित मोदी ने अपना ड्रीम प्रोजेक्ट आईपीएल को इंडिया में लांच किया तो देखते ही देखते यह क्रिकेट के महाकुम्भ का रूप ले लिया. किंग्स इलेवन पंजाब के कप्तान और आइकॉन प्लेयर बने युवराज सिंह. फिर आने वाले सालों में पुणे वारियर्स, रॉयल चैलेंजर्स बंगलुरु, दिल्ली डेयरडेविल्स और सनराइजर्स हैदराबाद के लिए भी खेले. साल 2014 में जहाँ बंगलुरु ने उन्हें 14 करोड़ में ख़रीदा था वहीँ साल 2015 में उन्हें दिल्ली ने 16 करोड़ की बोली लगाकर ख़रीदा. यह आईपीएल के इतिहास में अबतक की सबसे बड़ी बोली है.

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वैसे तो आईपीएल में युवराज की कोई मेमोरेबल इनिंग नहीं है, लेकिन कुछेक छोटे-छोटे मैचों में वो बहुत उपयोगी साबित हुए. गौरतलब है कि आईपीएल के 11 सीजन बीत जाने के बाद भी युवराज अबतक किसी भी विनिंग टीम का हिस्सा नहीं रहे हैं. अभी वो फ़िलहाल पंजाब कि टीम में ही है और फॉर्म में नहीं है.

साल बीता और और अब अपना युवी 2011 का वनडे विश्व कप खेल रहा था

इससे पहले युवराज लगातार क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे. टेस्ट क्रिकेट में उनके नाम सिर्फ तीन शतक है और मज़ेदार बात यह है कि यह तीनों शतक भारत के चिर-प्रतिद्वंदी पाकिस्तान के खिलाफ आया है. युवराज का सबसे बड़ा टेस्ट स्कोर 169 भी उसमें शामिल है. अपने प्रदर्शन से युवराज लगातार टीम इंडिया को मज़बूती दे रहे थे और अब बारी थी विश्व कप की.

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यह वर्ल्ड कप युवराज सिंह के लिए गोल्डन वर्ल्ड कप रहा. पुरे सीरीज में युवराज ने 362 रन बनाये और 15 विकेट लिए. आयरलैंड के खिलाफ वो 50 रन बनाये और 5 विकेट भी लिए. विश्व कप के किसी भी मैच में ऐसा करने वाले वो एकलौते खिलाड़ी बन गए. वेस्ट इंडीज के खिलाफ चेन्नई में खेले गए मैच में युवराज ने 123 बॉल्स में 113 रनों की पारी खेली थी जिसमें 10 चौके और दो शानदार छक्के शामिल थे. इस मैच को इंडिया ने 80 रनों से जीता था. अपने शानदार प्रदर्शन के लिए युवराज को मैन ऑफ़ द सीरीज का अवार्ड मिला था.

कैंसर एंड कमबैक ऑफ़ द फाइटर

साल 2011 के वर्ल्ड कप जीतने के बाद युवराज सिंह को कैंसर डिटेक्ट हुआ जिसका अमेरिका में लम्बा इलाज चला. वो ठीक हुए और वापस टीम इंडिया में आये, साथ ही आईपीएल में भी. लेकिन आजकल वो टीम इंडिया से बहार चल रहे हैं और अभी वापसी कि कोई संभावना भी नहीं दिख रही है.

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युवराज अभी उनके एक चैरिटी युवीकैन (YouWeCan) चला रहे हैं, जिसके द्वारा अब तक सैकड़ों कैंसर पेशेंट का इलाज हो चूका है. युवराज को क्रिकेट में उनके योगदान के लिए साल 2012 में अर्जुन अवार्ड और साल 2014 में भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा जा चूका है. युवराज अभी ऑटोबायोग्राफी द टेस्ट ऑफ़ माई लाइफ: फ्रॉम क्रिकेट टू कैंसर एंड बैक भी लिख चुके हैं. एक शानदार क्रिकेट करियर के मालिक युवराज सिंह जब रिटायरमेंट लेंगे तो हम सब उन्हें 22 गज के पिच पर देखना पसंद करेंगे ना कि फेसबुक और ट्विटर पर.

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