कहानी नटवर लाल की, जिसने तीन बार ताज महल को बेच दिया था
बिहार की राजधानी पटना से लगभग 150 किलोमीटर दूर एक गाँव पड़ता है जीरादेई. इस गाँव को लोग आज़ाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के गाँव के नाम से भी जानते है. जीरादेई जिस जिले में आता है उस जिला का नाम है सिवान. अब जब बात सिवान की होती है तो लोग इसे मशहूर बाहुबली नेता और गैंगस्टर मो. शहाबुद्दीन के जिले के तौर भी जानते है. ये वही शहाबुद्दीन है जिसने तीन भाईयों को सरेआम बीच सड़क पर तेज़ाब से नहलाकर मार डाला था. मो. शहाबुद्दीन अभी उम्रकैद की सज़ा काट रहा है. खैर, इस पर हम कभी अलग से बात करेंगे. लेकिन आज बात होगी उस शख्स की जिसने आपने कामों से या ऐसे बोले की कारनामों से प्रशासन और सरकार की नींदें उड़ा दी थी. वो शख्स कोई और नहीं बल्कि मिथलेश कुमार श्रीवास्तव था, उर्फ़ मि. नटवरलाल. जी हाँ, उनके नाम के आगे मिस्टर लगाना इसीलिए ज़रूरी है क्योंकि उनके गाँववालों को सिर्फ नटवरलाल कहना अच्छा नहीं लगता. इसकी क्या वजह है यह बात हम आपको आगे बता रहे हैं.
कहानी शुरू से शुरू करते हैं
मिथलेश कुमार श्रीवास्तव का जन्म साल 1912 में जीरादेई के निकट बांगरा गाँव में हुआ था. अपने भाई-बहनों में वो सबसे बड़े थे और वकालत की पढाई भी कर चुके थे. हांलाकि वो एक बार मैट्रिक में फेल हो चुके थे लेकिन बावजूद इसके वो मेहनत किये और वो यह डिग्री हासिल किये. उनकी ज़िन्दगी आराम से गुज़र रही थी लेकिन अभी कुछ हुआ. हुआ ये कि उनके एक पड़ोसी उनको एक बैंक का डिमांड ड्राफ्ट दिए और बोले की मिथलेश, जाओ बैंक से मेरा पैसा निकाल लाओ. मिथलेश ने वो देखा और उसने ऐसे ही साइन करने की कोशिश की. बाद में उसने देखा की ये तो हूबहू साइन हो गया. यहीं से उसका खुराफाती दिमाग चला और वो फ़र्ज़ी साइन करके उनके बैंक से चार हज़ार रूपये और निकाल लिए. जब खाते के मालिक को इस बात की जानकारी हुई तब वो बैंक मैनेजर से इस बात की शिकायत किये. जवाब में बैंक मैनेजर ने बताया की ये वही लड़का है जिसे आपने पहली बार पैसे लेने के लिए भेजा था. पड़ोसी समझ चुका था कि यह मिथलेश का ही काम है. और यहाँ से कहानी शुरू होती है मिथलेश कुमार श्रीवास्तव से मि. नटवरलाल बनने की.
उसके बाद नरवरलाल घर से भाग गए और पहुँच गए कलकत्ता (जो अब कोलकाता है). कलकत्ता में वो पढाई भी कर रहा था और साथ ही एक सेठ के बेटे को ट्यूशन भी दे रहा था. किसी काम के लिए जब नटवर ने सेठ से पैसे मांगे तो सेठ ने उसे पैसा नहीं दिया और नटवर का एक महत्वपूर्ण काम रह गया. इस बात से आहात होकर नटवर ने सेठ को सबक सिखाने की ठानी और कॉटन के किसी बिजनेस में लगभग साथे चार लाख रूपये का चुना लगाया और कलकत्ता से भाग गया. अब उनका नौकरी करने का मन बिलकुल भी नहीं था, क्योंकि उसने एक नयी दुनिया को देख लिया था. नकली साइन करना उनके बाँये हाथ का खेल था और वो उस खेल का पक्का खिलाडी. और यही उनकी ताकत भी थी. साथ में फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना और भेष बदलना उन्हें बखूबी आता था, साथ ही आत्मविश्वास से लबालब भरा हुआ और अखबारों के माध्यम से दुनिया भर की घटनाक्रम पर नज़र रखना. यानी की इनमें से एक भी गुण का किसी में होना उसकी ताकत बन सकती थी, लेकिन यहाँ तो नटवरलाल सर्वगुणसंपन्न था.
उनके ठगी के सैकड़ों किस्से मशहूर हैं. लेकिन जो रिकॉर्डेड है और जिसके होने के सबूत वो कुछ ही हैं. इनमें से जो सबसे मशहूर किस्सा है वो हम आपको यहाँ बता रहे हैं.
ये उस समय की बात है जब केंद्र में नारायण दत्त तिवारी वित्त मंत्री थे और राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे. दिल्ली के दिल में स्थित कनाट प्लेस के सुरेंद्र शर्मा की घड़ी की दुकान में नटवरलाल जाता है और खुद को वित्त मंत्री का पी.एस. (पर्सनल सेक्रेटरी) बताता है और कहता है की कल प्रधानमत्री राजीव गांधी कुछ विदेशी मेहमानों के साथ एक मीटिंग करेंगे और साथ में दावत भी होगी. दावत के बाद प्रधानमंत्री उन सभी मेहमानों को तोहफे में घड़ी देना चाहते हैं, तो मुझे आपकी दुकान से 93 घड़ी चाहिए. दुकानदार को पहले तो इस आदमी की बातों पर शक हुआ लेकिन प्रधानमंत्री का नाम और एक साथ इतनी घड़ियों को बेचने के लालच से खुद को रोक नहीं पाया. अगले दिन वो आदमी घड़ी लेने दुकान पहुंचा. दुकानदार को घड़ी पैक करने की बात कह एक स्टाफ को अपने साथ नॉर्थ ब्लॉक (नॉर्थ ब्लॉक वो जगह है, जहां प्रधानमंत्री से लेकर बड़े-बड़े अफसरों का ऑफिस होता है) ले गया. वहां उसने स्टाफ को भुगतान के तौर पर 32,829 रुपए का बैंक ड्राफ्ट दे दिया. दो दिन बाद जब दुाकनदार ने ड्राफ्ट जमा किया तो बैंक वालों ने बताया कि वो ड्राफ्ट फर्जी है. फिर दुकानदार को समझ आया कि वो आदमी नटवर लाल था. और इसके बाद वो फिर कभी नहीं रुका.
ठगी में नटवर लाल इतने शातिर था कि उसने 3 बार ताजमहल, दो बार लाल किला, एक बार राष्ट्रपति भवन और एक बार संसद भवन तक को बेच दिया था. राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के फर्जी साइन करके नटवर लाल ने संसद को बेच दिया था. जिसे समय संसद को बेचा था, उस समय सारे सांसद वहीं मौजूद थे. कहते हैं कि नटवर लाल के 52 नाम थे, उनमें से एक नाम नटवर लाल था. और इसी के नाम से उनको दुनिया जानती है.
अब सवाल ये है की वो इन इमारतों को बेचते कैसे थे और उन्हें खरीदता कौन था?
जवाब यह है कि वो इन सभी इमारतों को सरकारी अफसर बनकर बेचता था और खरीदने वालों में विदेशी होते थे. नटवर किसी रईस विदेशी को पकड़ता और उनको इमारत को बेचने का प्रपोजल देता. साथ ही वो सम्बंधित इमारतों के सभी कागजात भी तैयार रखते थे. सभी कागज़ बाकायदा सरकारी स्टाम्प के साथ होता था, जिसमें ओपन स्पेस, बिल्डिंग एरिया, बेसमेंट, गार्डन, हॉल इत्यादि सबकुछ का ब्यौरा होता था. साथ ही सम्बंधित अधिकारी का हस्ताक्षर भी , जो वह खुद करता था. यह देखकर विदेशी को भी विश्वास हो जाता था और वो डील करने को तैयार हो जाता था.
और किस-किस को चुना लगाया?
इतना ही नहीं, नटवरलाल नेता के साथ-साथ देश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों को भी चुना लगाया था. कभी समाज सेवक के तौर पर, कभी किसी एनजीओ के नाम पर तो कभी किसी और बहाने से. इन नामों में धीरूभाई अम्बानी, रतन टाटा और बिरला जैसे नाम है. इतने सारे कारनामों को अंजाम देने के बाद अब नटवरलाल प्रतिदिन अखबारों की सुर्खियां बनने लगा था. वो अब अपना नाम अखबार में देखता था तो उसे अपने आप पर गर्व होता था. वो खुश होता था. नटवर अपने जीवनकाल में आठ राज्यों में ठगी को अंजाम दिया जिसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, दिल्ली, हैदराबाद, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र था.
गिरफ्तारी कैसे-कैसे हुई?
जब नटवर का नाम आम लोगों में पॉपुलर हो रहा था तब बिजनेसमैन खास तौर से सचेत रहने लगे थे. ऐसे ही उनकी एक गिरफ़्तारी कानपुर में हुई थी. जब वो एक जूलर्स के दूकान में कुछ खरीदारी करने गया था. वो अपना तिकड़म भिड़ा ही रहा था की दुकानदार को शक हो गया. वो नटवरलाल को उलझाए रहा और पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस आया और नटवरलाल गिरफ्तार हो गया.
कितने मुक़दमे दर्ज हुए और सजा कितने सालों की हुई?
पुरे देशभर से नटवरलाल पर १५० से ज्यादा मुक़दमे दर्ज हुए. जिसमें सिर्फ ९ मुक़दमे का ही फैसला आया था. अलग-अलग फैसलों को जोड़कर देखे तो उन्हें कुल १०९ सालों की सजा हुई. जिनमें से उन्हें सिर्फ एक ही मामले में बेल हुई थी बाकि हर बार वो जेल से भागे ही थे. वो अपनी सजा के सिर्फ बीस साल ही जेल में गुजारे थे. यहाँ हम सिर्फ २० क्यों कह रहे हैं, आप समझ गए होंगे.
लखनऊ जेल वाला कौन का किस्सा मशहूर है?
बात उस समय की है जब नटवरलाल लखनऊ के जेल में बंद थे. उसी दौरान गाँव से उनके पत्नी की चिट्ठी आती थी. नियम के अनुसार जेल में आनेवाले और जेल से जाने वाली चिट्ठियाँ सेंसर्ड होती है. मतलब यह हुआ की चिट्ठी को पहले जेल के अधिकारी पढ़ते हैं फिर उसे अंदर या बाहर ले जाने की अनुमति होती है. लखनऊ में नटवरलाल के नाम से सात-आठ चिट्ठियाँ आ चुकी थी लेकिन नटवरलाल ने अब तक एक भी चिट्ठी का जवाब नहीं दिया था. चिट्ठी में अक्सर पैसे की तंगी और खेती-बाड़ी ना होना जैसी बात ही लिखी होती थी. अगली चिट्ठी जब आयी तो जेलर ने खुद जाकर नटवरलाल को चिट्ठी दिया और बोला की तुम्हारी पत्नी अबतक इतने चिट्ठी लिख चुकी है लेकिन तुमने उसका जवाब क्यों नहीं दिया?
यह सुनकर नटवरलाल ने कहा की साहब, मैं तो जवाब देना ही नहीं चाहता था लेकिन अब आप कह रहे हैं तो जवाब दे देते हैं. नटवरलाल ने खत लिखा और जेल के डाकखाने में डाल दिया. जब अधिकारी ने उस चिट्ठी को पढ़ा तो उसमें लिखा था कि उसने अपने खेत के एक कोने पर कुछ गहने और पैसे गाड़े हुए हैं. हो सके तो वो निकाल लेना और अपना जीवन-बसर करती रहना. यह पढ़कर जेल के अधिकारी के कान खड़े हो गए. फ़ौरन ही जेल से लोकल पुलिस स्टेशन को फोन किया गया और मामले की जानकारी दी गयी. लोकल पुलिस फ़ौरन खेत में पहुँची और खुदाई शुरू कर दी. लगभग पूरा खेत खोदने के बाद पुलिस को कुछ भी हाथ नहीं लगा और वो बैरंग वापस आ गये. अगले ही दिन नटवरलाल ने फिर से एक चिट्ठी लिखा. इसमें उसने लिखा की "जेल में रहकर मैं तुम्हारी इतनी ही मदद कर सकता हूँ. अब शायद खेत तैयार हो गया होगा. तुम फसल की बोआई कर देना". चिट्ठी पढ़कर जेलर दंग रह गए और उन्होंने नटवरलाल के दिमाग की दाद दी. यह किस्सा अब सोशल मिडिया पर काफी पुराना हो चुका है लेकिन लखनऊ के जेल में यह अब तक रिकॉर्डेड है.
कोर्ट के जज को कैसे चकित किया नटवरलाल ने?
अबतक नटवरलाल एक प्रचलित नाम हो चुका था. सब उनके चालाकी के कायल थे. ऐसे ही एक सुनवाई के बाद जब कोर्ट में जज ने कहा की तुम ये सब कर कैसे लेते हो? जवाब में नटवरलाल ने कहा की अगर आप मुझे एक रूपये देंगे तो मैं आपको बताऊंगा. जज साहब उनको एक रूपये दे दिए. फिर नटवरलाल ने कहा की मैं ऐसे करता हूँ. मैं कोई ठगी या फिर चोरी नहीं करता हूँ. मैं लोगों से पैसे मांगता हूँ और लोग मुझे दे देते हैं. मैंने आज तक किसी को धोखा नहीं दिया है. जज सन्नाटे में आ गए.
नटवरलाल से मि. नटवरलाल बनने तक का सफर
एक बार जब इतने सारे कारनामों को अंजाम देने के बाद नटवरलाल तीन गाड़ियों के काफिले के साथ अपने गाँव आये तो वह समस्त गांववालों के लिए एक भोज का आयोजन किये. इस भोज में तरह-तरह के पकवान बने थे. भोज के उपरान्त वो सभी को सौ-सौ रूपए भेंट दिए. वो गाँववालों का चहेता बन गए. दुनिया भले ही उसे ठग या कुछ और बुलाए, वो अपने गाँववालों के लिए तो मसीहा थे. इसीलिए लोग सम्मान से उन्हें मि. नटवरलाल के नाम से पुकारते हैं. नटवरलाल को साल 1996 में आखिरी बार दिल्ली स्टेशन पर देखा गया था. जब वो व्हीलचेयर पर पुलिसवालों को चकमा देते हुए भाग गया था. उसके बाद से उसे अबतक कोई नहीं देख पाया है.
नटवरलाल के साथ और क्या-क्या चर्चित हुआ?
जब नटवरलाल के कारनामे अपने चरम पर था उसी वक़्त साल 1979 में लेखक-निर्देशक राकेश कुमार ने अमिताभ बच्चन को लेकर मि. नटवरलाल नाम की एक फिल्म बनायी थी. लेकिन उस फिल्म का सिर्फ नाम नटवरलाल के नाम पर था. उनके किसी भी कारनामों को फिल्म में टच नहीं किया गया था. साल 2005 में आयी फिल्म बंटी और बबली में भी ठग द्वारा ताज महल के बेचे जाने का एक प्रसंग है. यह फिल्म भी ठगी पर ही आधारित है, जिसमें अभिषेक बच्चन और रानी मुखर्जी मुख्य किरदार में थे. उसके बाद साल 2014 में इमरान हाशमी स्टारर एक और फिल्म बनी राजा नटवरलाल. इस फिल्म में इनके कारनामों की एक दो झलकी ज़रूर दिख जाती है.
नटवरलाल आज होते तो कैसे होते?
कहते हैं इंसान और वक़्त, इन दोनों की तुलना एक साथ कभी नहीं करनी चाहिए. जब नटवरलाल आज से 40 साल पहले ऐसे कारनामे करते थे तो आज के दौर में वो टेक्नोलॉजी के माध्यम से क्या कुछ नहीं कर सकते थे. नटवर लाल जैसा ठग हिंदुस्तान ने ना पहले कभी देखा है और ना कभी देखेगा. ठगी कि दुनिया का इकलौता लेजेंड है वो. अपने गाँववालों के लिए रॉबिनहुड है वो. साल 2009 में नटवरलाल के फैमिली मेंबर ने कोर्ट में ये अर्जी दिया की अब नटवरलाल ज़िंदा नहीं है इसीलिए उनके सारे फाइल्स बंद कर दिया जाए. कोर्ट को तो अब भी सबूत चाहिए लेकिन हमारा अँधा क़ानून ये नहीं जानता की उनके जन्म के अब 110 साल होने को आए.
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बहुत बढ़िया 👍👍
Bhai bhut mast hai or likha kro
fun read it was!