जेट एयरवेज: कैसे नरेश गोयल ने खुद ही अपनी कम्पनी का गला घोंट दिया?
एक दौर था जब एविएशन मार्केट में जेट एयरवेज का डंका बजने लगा था। पहले से स्थापित इंडियन एयरलाइंस को इसने बाजार हिस्सेदारी में पीछे छोड़ दिया था। साल 1992 से लेकर साल 2019 तक। लगभग 27 साल पुरानी कंपनी वित्तीय समस्या से जूझते हुए अब बंद पड़ चुकी है, और साथ में लगभग 22,000 से ज्यादा कर्मियों का भविष्य अब खतरे में है। कम्पनी के पास ना तो अपने एम्प्लॉई के वेतन के लिए पैसा था और ना ही तेल खरीदने के लिए। नतीजा यह हुआ कि 17 अप्रैल 2019 से जेट एयरवेज की सभी फ्लाइट्स अब जमीन पर आ गयी है। आज हम जेट एयरवेज की शुरुआत से लेकर आजतक की पूरी स्टोरी को समझेंगे। और ये भी समझेंगे कि कैसे जेट एयरवेज जो कि इंडिया की एक टाइम सबसे बड़ी एयरलाइन थी अब ऑपेऱशनली बंद पड़ गई है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि कंपनी के बंद होने की नौबत आ गई। आज के इस स्पेशल केस स्टडी में हम इसी बात को विस्तार से और आसान भाषा में समझेंगे।
कहानी शुरू करते हैं कम्पनी को शुरू करने वाले श्री नरेश गोयल से
29 जुलाई 1949 को पंजाब के संगरूर में जन्मे नरेश गोयल के पिताजी ज्वेलरी के बिजनेस से जुड़े हुए थे। नरेश के बचपन में ही उनके पिताजी का देहांत हो गया था। जब वो मात्र ग्यारह साल के थे तभी उनका पारिवारिक घर गरीबी की वजह से बिक गया। घर की माली हालत बहुत ही ज्यादा खराब हो गयी। फिर नरेश गोयल अपनी माँ के साथ एक रिश्तेदार के घर पर रहने लगे। किसी तरह से वो पटियाला के गोवर्नमेंट बिक्रम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से बी कॉम की डिग्री हासिल की।
सिर्फ 300 रूपये प्रति महीने से नौकरी की शुरुआत और फिर बिजनेस प्लान
1967 में महज 18 साल की उम्र में उन्होंने अपने अंकल की कंपनी में बतौर ट्रैवल एजेंट नौकरी शुरू की और उन्हें इसके एवज में 300 रुपये महीने मिलते थे। इस नौकरी में रहते हुए उन्होंने ट्रैवल बिजनेस के बारे में ज्यादा से ज्यादा सीखने की कोशिश की। 1973-74 का दौर था, जब नरेश गोयल ने अपनी मां से कुछ पैसे उधार लिए और अपनी बचत भी निवेश कर खुद की ट्रैवल एजेंसी खोल ली जिसके जरिये वो फॉरेन एयरलाइन्स की सेल्स और मार्केटिंग करते थे। उन्होंने अपनी ट्रैवल एजेंसी का नाम जेट एयरवेज रखा। शायद उनके दिमाग में उसी समय कुछ बड़ा चलने लगा था।
महज 18 साल की उम्र में 300 रुपये महीने की नौकरी शुरू करने वाले नरेश गोयल को भी नहीं पता था कि वह एक दिन एविएशन इंडस्ट्री के बादशाह बन जाएंगे। 1993 यानी 34 साल की उम्र होते होते उन्होंने दो विमानों को लेकर जेट एयरवेज नाम से एविएशन कंपनी लॉन्च कर दी। कुछ सालों में ही यह भारत की टॉप एविएशन कंपनी बन गई। साल 1992 में गवर्नमेंट ने ओपन स्काई पालिसी लायी। इस पॉलिसी के नियम के मुताबिक प्राइवेट कम्पनी भी एयरलाइन के बिजनेस में आ सकती थी। इसी मौका का फायदा उठाकर जेट एयरवेज ने भी एविएशन मार्किट में इंटर किया। क्योंकि यह प्लान मिस्टर नरेश गोयल के दिमाग में तो पहले से ही था और इस पॉलिसी के आने के बाद उनका राह और भी आसान हो गया।
जेट एयरवेज का आसमानी सफर
वो साल था 1993 जब जेट एयरवेज ने अपना ऑपरेशन शुरू किया। उस वक्त इंडियन एयरलाइन्स और एयर इंडिया यही दो बड़ी एयरलाइन कंपनी थी हिंदुस्तान में। साल 1993 में लांच होने के बाद जेट एयरवेज बहुत ही तेजी से आगे बढ़ने लगी और 1997 तक इंडिया की सेकंड लार्जेस्ट एयरलाइन बन गई। जेट एयरवेज अपनी ये ग्रोथ लगातार बनाई हुए थी। फिर आता है साल 2002 और अब तक जेट एयरवेज इंडिया की सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी बन चुकी थी। उसके बाद तो इंडियन एविएशन इंडस्ट्री में जैसे एयरलाइन कम्पनीज की बाढ़ ही आ गयी। एयर डेक्कन, स्पाइसजेट, इंडिगो इन जैसे लो-कॉस्ट कैरियर विमान मार्किट में आने लगी।
ट्रेन में जैसे फर्स्ट क्लास और सेकण्ड क्लास होते हैं वैसे ही विमान में भी लो कोस्ट कैरियर और फुल सर्विस कैरियर होते हैं। लो कॉस्ट कैरियर सिर्फ पैसेंजर को ढोने का काम करती है, उनको फ्लाइट के अंदर किसी भी प्रकार की विशेष सुविधा नहीं दी जाती है और उनके टिकट भी सस्ते होते हैं। वहीं फुल सर्विस कैरियर अपने पैसेंजर्स को स्पेशल सर्विसेज देते हैं। जिसकी वजह से उनके टिकट प्राइस थोड़ी ज्यादा होती है।
जेट एयरवेज की मुसीबतों की शुरुआत
जेट एयरवेज अपने शुरू होने के समय से ही एक फुल सर्विस कैरियर थी। लेकिन अब मार्किट में एयर डेक्कन, इंडिगो, स्पाइसजेट, गो एयर जैसे लो कॉस्ट कैरियर्स की वजह से फुल सर्विस कैरियर की दिक्कतें बढ़ना शुरू हो गई। हम तो भाई पक्के वाले इंडियन है तो जहाँ दो पैसे में ही बात बन रही है वहां छार पैसे खर्च करने से क्या फायदा। कहने का मतलब ये है कि अब टाइम आ गया था इंडिगो और एयर डेक्कन जैसी कंपनियों का। जेट एयरवेज को अपने फुल सर्विस कैरियर होने का नुकसान उठाना पड़ रहा था।
इसी समस्या को ख़त्म करने के लिए जेट एयरवेज ने साल 2007 में एयर सहारा को लगभग 1500 करोड़ में खरीद लिया और उसको एक लो कॉस्ट कैरियर बना कर इंडियन मार्किट में ऑपरेट करने लगा। अब जेट एयरवेज के पास दोनों हाथों में लड्डू था। जेट एयरवेज से वो फुल सर्विस कैरियर की तरह काम करते रहे और एयर सहारा से वो लो कॉस्ट कैरियर का भी काम करने लगे। क्योंकि अब जब मार्केट बढ़ा था तो खर्चे के लिए रुपया भी चाहिए होगा। फिर कम्पनी ने पब्लिक डोमेन में आने का फैसला किया।
अब आ गया था साल 2005, जब जेट एयरवेज ने शेयर मार्किट से पैसा उठाने का प्लान बनाया। जेट एयरवेज ने अपना पहला IPO लाया और उस टाइम उनके एक शेयर की प्राइस 1100 रुपये थी और उनका मार्किट कैपिटलाइजेशन लगभग साढ़े ग्यारह करोड़ के करीब था। अपने इस आईपीओ के बाद जेट एयरवेज अपने उस 1100 रुपये के कीमत पर कभी वापस आ ही नहीं पायी। IPO से उन्हें जो भी फंड मिला था उससे उन्होंने एयरक्राफ्ट्स खरीदे थे और कुछ पैसा जो बचा था उससे एयर सहारा को खरीदा था। 2009 में मिस्टर नरेश गोयल इंडिया के 75वें सबसे अमीर व्यक्ति थे। तब उनकी एक साल की कमाई लगभग 700 मिलियन डॉलर थी। रूपये की बात करें तो यह आंकड़ा लगभग 4800 करोड़ होता है।
जब सभी पैसे खर्च हो गए, फिर क्या हुआ
एयर सहारा को खरीदने के बाद कंपनी के पास अब पैसे तो बचे थे नहीं। बात अब ऐसी हो गयी थी कि जब आपके कॉम्पिटिटर कम रेट में टिकट बेच रहे हो तो आप ज्यादा रेट रख ही नहीं सकते। नतीजा यह हुआ कि जेट एयरवेज को भी अपने लो कॉस्ट कैरियर कि टिकट प्राइस कम करनी पड़ी। वहीं दूसरी तरफ का भी कुछ ऐसा ही सीन था, जेट एयरवेज के जरिये वो लोगों को फुल सर्विस तो देते रहे लेकिन ज्यादा कम्पटीशन की वजह से उन्हें उसकी टिकर रेट भी कम करनी पड़ी। जिसका सीधा असर उनके प्रॉफिट पर हुआ। उनका प्रॉफिट धीरे-धीरे कम होने लगा। और अब वो किसी इन्वेस्टर को ढूंढने लगे जो जेट एयरवेज में पैसा डाले। ताकि जेट एयरवेज बिना किसी परेशानी के चलती रहे।
जब विजय माल्या को होने वाला फायदा नरेश गोयल को हुआ
वो साल था 2010-11 का जब विजय माल्या अपने किंगफिशर एयरलाइन्स के लिए इन्वेस्टर ढूंढ रहे थे। गल्फ कंट्री की “एतिहाद एयरवेज” ने इन्वेस्ट करना चाहा लेकिन तब सिविल एविएशन में FDI मान्य नहीं था। लेकिन साल 2013 में एतिहाद एयरवेज ने जेट एयरवेज में 380 मिलियन डॉलर इन्वेस्ट किया। इन सबके बीच में इंडिगो और गो एयर ने बहुत सारे पैसेंजर्स को अट्रैक्ट करना शुरू किया। क्योंकि इनके टिकर के रेट्स बहुत कम थे। खास कर के इंडिगो ने बहुत ही ज्यादा सस्ती टिकट्स ऑफर करना शुरू कर दिया। इसी वजह से इंडिगो का मार्किट शेयर लगातार बढ़ता चला गया।
अब बारी थी इंडिगो की आसमान पर छाने की। हुआ भी यही। साल 2013 तक इंडिगो इंडिया की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी बन गई। और 2015 तक इंडिगो इंडिया की सबसे बड़ी एयरलाइन बन चुकी थी। और अबतक इंडिया से फुल सर्विस कैरियर का बाज़ार लगभग ख़त्म हो गया था। 2012 तक किंगफ़िशर बंद पर चुकी थी। जेट एयरवेज का मार्किट शेयर भी लगातार गिर रहा था। इसकी वजह से ही उसे भी अपनी प्राइस कम करनी पड़ी। और धीरे-धीरे कंपनी को लॉसेस झेलने पड़े। पहले से ही कंपनी लगभग 10 हजार करोड़ के लोन में थी और अब लगातार हो रहे घाटे से कम्पनी और ज्यादा मुसीबत में फंस गयी।
नरेश गोयल के बिजनेस एम्पायर का क्लाईमैक्स और दी एन्ड
कहते हैं महत्वाकांक्षी होना अच्छी बात है लेकिन आगे की सोच कर कदम बढ़ाने वाला दूर तक जाता है। जेट एयरवेज से यहीं पर सबसे बड़ी गलती हो गयी थी। साल 2004-05 में जब जेट एयरवेज इंडिया की सबसे बड़ी एयरलाइन कम्पनी थी तब जेट ने डोमेस्टिक को छोड़कर इंटरनेशनल फ्लाइट्स पर ज्यादा ध्यान दिया और डोमेस्टिक पर फॉक्स करना बंद कर दिया। जेट एयरवेज को लगने लगा था कि अब तो हमने डोमेस्टिक मार्किट को कवर कर लिया है, अब हमें कौन रोक सकता है। अब हम इंटरनेशनल मार्केट की तरफ चलेंगे।
तो जैसे ही उन्होंने अपना फोकस डोमेस्टिक मार्केट से हटा दिया। वैसे ही लो कॉस्ट कैरियर्स ने डोमेस्टिक मार्केट में अपना मार्केट शेयर बढ़ाना शुरू किया। लो कॉस्ट कैरियर्स के चक्कर में ही किंगफ़िशर ने एयर डेक्कन को खरीद लिया, तो जेट एयरवेज ने एयर सहारा को खरीद लिया। लेकिन दोनों एयरलाइन्स की ये प्लान बुरी तरीके से फेल हुआ। जेट एयरवेज अपना ज्यादातर पैसा एयर सहारा को खरीदने में और कुछ वाइट बॉडी प्लेन्स खरीदने में लगा दिया। अब तो हाथ गया खाली। जिसके बाद कंपनी को अपना ऑपरेशन बढ़ाने में दिक्कतें आने लगी।
जेट एयरवेज ने कई बार अपनी फुल सर्विस कैरियर्स की मदद से अच्छी खासी सर्विसेज प्रोवाइड करने की कोशिश भी की लेकिन अब कॉम्पिटिशन इतना ज्यादा हो चूका था कि उनके पास टिकट कम रेट पर बेचने के अलावा कोई और रास्ता ही नहीं था। कंपनी ने जो वाइट बॉडी प्लेन्स ख़रीदे थे उसका प्लान ठीक से चला नहीं। तो कंपनी ने अपने वाइट बॉडी एयरक्राफ्ट्स को किराए पर देना शुरू कर दिया। उन्होंने करीब 70-80% वाइट बॉडी एयरक्राफ्ट्स किराए पर दे दिए। जेट एयरवेज को किराए से थोड़ा फायदा क्या हुआ उन्होंने अपना एयरलाइन वाला मुख्य काम छोड़कर लीजिंग पर भी फोकस करने लगी। जिससे उनका ध्यान धीरे धीरे भटकने लगा।
कम्पनी का मतलब एक आदमी नहीं, पूरी टीम होती है
कंपनी की एक बड़ी मिस्टेक ये भी थी कि मिस्टर नरेश गोयल जो कि जेट एयरवेज के फाउंडर थे वही पूरी तरह से कंपनी को मैनेज करते थे। वे अकेले कंपनी के प्लान्स मैनेज करते थे, सारी स्ट्रेटेजीज बनाते थे। मिस्टर विनय दुबे कंपनी के CEO तो थे लेकिन वो बस नाम के लिए थे। कंपनी की लगभग सारी डिसीजन मेकिंग नरेश गोयल के हाथ में थी। एक तरह से देखा जाए तो जेट एयरवेज का दूसरा नाम ही नरेश गोयल हो गया था।
अपने मैनेजमेंट्स टीम का हेल्प ना लेना भी कम्पनी के डूबने की सबसे बड़ी कारण बनी। पिछले कुछ सालों में देखें तो नरेश गोयल किसी भी तरह के डील्स को पूरा नहीं कर पा रहे थे। चाहे वो टाटा सन्स हो या फिर एतिहाद एयरवेज। दोनों ने ही जेट एयरवेज में इन्वेस्ट करने की इच्छा जताई थी लेकिन डील्स नहीं हो पाए। और उसके पीछे का सिर्फ एक कारण था – नरेश गोयल।
जेट एयरवेज के बंद होने से कुछ दिनों पहले तक सभी लोग यही चाहते थे कि नरेश गोयल बोर्ड से हट जाए। लेकिन वो नहीं हटे। और फिर जब सारा खेल खतम हो गया तब जाकर वो बोर्ड से इस्तीफ़ा दिए। कंपनी के सीईओ मिस्टर विनय दुबे जो कि डेल्टा एयरलाइन्स से थे वो कंपनी में बहुत सारे बदलाव करना चाहते थे। और ऑपरेटिंग स्टैण्डर्ड को भी बदलना चाहते थे। लेकिन पावर तो सिर्फ नरेश गोयल तक ही सिमित थी।
गोयल की जिद भी कहीं न कहीं जेट की इस हालत के लिए जिम्मेदार मानी जाती है। गोयल किसी भी तरह से कंपनी से अपना कंट्रोल कम करने को तैयार नहीं थे। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो एतिहाद एयरवेज शुरू में जेट एयरवेज में निवेश बढ़ाने को तैयार थी, लेकिन गोयल कंपनी के चेयरमैन पद से हटने को लेकर मना कर दिया। वह अपनी हिस्सेदारी घटाने को तैयार नहीं थे।
धीरे-धीरे कंपनी के घाटे बढ़ने लगे और कंपनी के लॉसेस 3000 करोड़ के भी ऊपर चले गए। जबकि कंपनी पर लगभग 10,000 करोड़ का कर्ज भी था। कर्ज और घाटे ये कॉम्बिनेशन बहुत ही डेंजरस होता है। जो भी कंपनी इस जाल में फंस जाती है वो वापस खड़ी नहीं हो पाती है। जेट एयरवेज के साथ भी यही हुआ और अब नतीजा सबके सामने है।
वीडियो: देखिए जेट एयरवेज का पूरा सफर इस वीडियो में
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