जानिए बुलेट कैसे बन गयी हिंदुस्तान की सबसे पसंदीदा बाइक – Case Study of Bullet Bike aka Royal Enfield
हिंदुस्तान में कौन ऐसा होगा जो रॉयल एनफील्ड यानी की बुलेट मोटरसाइकिल को नहीं जानता होगा। इस बाइक का क्रेज बाइक लवर्स में तो है ही, साथ ही साथ उनमें भी है जो बाइक चलाना नहीं जानता। सभी मोटरसाइकिल चलाने वालों के दिल में एक ख्वाहिश तो रहती ही है कि कभी ना कभी हम भी बुलेट खरीदेंगे। जहाँ ऑटोमोबाइल सेक्टर इस तरह मंदी के दौर से गुजर रही है वहीं बुलेट के बिक्री में दिन-ब-दिन बढ़ोतरी ही हो रही है। क्या कारण है कि यह बाइक इंडियन मार्केट का किंग बना हुआ है। यही सब जानेंगे आज के इस स्टोरी में।
शुरू कहाँ से हुई थी इसकी?
साल 1901 में इंग्लैण्ड की एक कम्पनी द एनफील्ड सायकल कंपनी लिमिटेड ने इसको बनाना शुरू किया था। आज इस बाइक का जो डिजाइन है वो इसी कंपनी के द्वारा बनाया गया है। इसीलिए इसको दुनिया की सबसे पुरानी बाइक भी कहा जाता है जो आज तक प्रोडक्शन में है। जब इंडिया अपने मिलिट्री फोर्सेज के लिए बाइक ढूंढ रही थी जिससे कि बॉर्डर पेट्रोलिंग की जा सके तो उन्हें सबसे सटीक रॉयल एनफील्ड 350 ही लगा। लेकिन यह तो बनती थी इंग्लैण्ड में। फिर इसका भी हल निकाला गया। साल 1955 में इंग्लैण्ड की इस कंपनी का टाई-अप तमिलनाडु स्थित मद्रास मोटर्स से हुआ। अब बाइक के पार्ट्स इंग्लैण्ड से इम्पोर्ट होते थे और मद्रास, जिसे अब चेन्नई बोलते हैं, वहाँ इसे असेम्बल करके बेचा जाता था। फिर साल 1962 आते-आते इसके सभी पार्ट्स इंडिया में ही बनने लगे और अब तक पूर्ण रूप से मेड इन इंडिया हो गया था। उस समय इंडिया में खास कर के 350 और 500 सीसी के मॉडल्स बनाए और बेचे जाते थे।
अब यहाँ से होती है आयशर मोटर्स की एंट्री
साल 1990 में मद्रास मोटर्स और आयशर ग्रुप का टाई-अप हुआ। आयशर तब मुख्य रूप से ट्रैक्टर और ट्रक के बिजनेस में था। रॉयल एनफील्ड बाइक का क्रेज मार्केट में ज्यादा था नहीं तो बिजनेस प्रोफिटेबिलिटी के लिए साल 1994 में मद्रास मोटर्स ने उसे आयशर ग्रुप को बेच दिया। अब रॉयल एनफील्ड यानी की बुलेट पूरी तरह से आयशर ग्रुप का हो चुका था। आयशर ग्रुप के बहुत सारे बिजनेस वेंचर्स थे, जिनमें मुख्य रूप से ट्रैक्टर, ट्रक, लेदर, शूज और कई फायनेंशियल कम्पनीज भी थी।
कंपनी सही से ऑपरेट नहीं हो पा रही थी और लगातार लॉस में जा रही थी। इसके कारण कम्पनी के मालिक विक्रम लाल ने इस बाइक के बिजनेस को बंद करने का फैसला ले लिया था। इसके प्रोडक्शन में लगातार गिरावट आ रही थी जिसके कारण इसके जयपुर वाले फैक्ट्री को बन्द करना पड़ गया।
फिर कैसे चमका रॉयल एनफील्ड?
विक्रम लाल के बेटे सिद्धार्थ लाल अब अपनी पढाई करके वापस इंडिया लौट चुके थे। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ लीड्स से ऑटोमोटिव इंजनियरिंग में मास्टर्स की पढाई की थी और क्रैन्फ़ील्ड यूनिवर्सिटी से मेकेनिकल इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा किया था। वो एक पैशनेट बाइक राइडर हैं। उन्होंने शुरू से ही अपना मन बना लिया था कि वो जब भी आयशर ग्रुप को ज्वाइन करेंगे तो वो रॉयल एनफील्ड को ही मैनेज करेंगे। हुआ भी वही। ज्वाइन करते ही उन्होंने बोर्ड मेंबर को अपनी बात बताई। मेम्बर्स ने कहा कि यह ऑलरेडी लॉस में जा रहा है और हम इसे बंद करने वाले हैं। इसपर सिद्धार्थ लाल ने कहा कि हमें एक मौका दे दो, अगर मैं सक्सेस नहीं हुआ तो फिर जैसा आपलोगों की मर्जी।
बोर्ड मेंबर उनकी बातों से एग्री हो गया और बुलेट वाला वेंचर सिद्धार्थ को सौंप दिया। सिद्धार्थ को शुरू से ही बाइक में बहुत रूचि रही है इसीलिए उन्होंने खुद ही उस पर काम करना शुरू कर दिया कि इसके ना चलने के पीछे कारण क्या है। साल 1999 में कम्पनी ज्वाइन करने के बाद वो साल 2000 में रॉयल एनफील्ड का सीईओ बने , इस समय इनकी उम्र सिर्फ 26 साल थी। रॉयल एनफील्ड के बिजनेस पर फोकस करने के लिए सिद्धार्थ ने आयशर ग्रुप की तरह कंपनियों को बेच दिया था। इनमें से आयशर ट्रैक्टर भी शामिल था। अब आयशर ग्रुप के पास सिर्फ दो ही वेंचर्स बचे थे – पहला ट्रक और दूसरा रॉयल एनफील्ड बाइक। साल 2000 से 2004 तक चेन्नई स्थित रॉयल एनफील्ड के हेड ऑफिस में काम करते रहे। इस दौरान वो प्रोडक्ट डेवलपमेन्ट से लेकर मार्केट स्ट्रेटेजी हर फिल्ड पर काम किया। इस बाइक को समझने के लिए वो खुद ही इसको कई बार ड्राइव भी करते थे और साथ ही इस बाइक के बारे में लोगों की मोनोपोली को भी समझने की कोशिश करते थे। इसी डेवलोपमेन्ट के दौरान गियर प्लेट को दाहिने भाग से बदलकर बाएं भाग में लाया गया क्योंकि ये ज्यादा कम्फॉटेबल था। इसके लूक में कोई भी बदलाव नहीं किया गया। इसको बिलकुल वैसा ही रहने दिया गया जैसे यह साल 1901 में डिजाइन किया गया था, जिससे कि इस बाइक का विंटेज लुक मेंटेन रहा। इस दौरान कुछ नए-नए लोग भी हायर किये गए जो सिद्धार्थ के अनुसार कंपनी में काम करें।
प्रोडक्ट डेवलोपमेन्ट का काम अब पूरा हो चूका था। अब वक्त था नए सिरे से मार्केटिंग करने का। इसके लिए सिद्धार्थ ने कभी भी कोई टीवी एड नहीं चलाया और ना ही कोई स्टार इसका ब्रांड एम्बेस्डर रहा। रॉयल एनफील्ड बाइक का मार्केटिंग बहुत ही अनोखे ढंग से और पूरी प्लानिंग के तहत किया गया। खास कर के इस ब्रांड के जो भी शोरूम थे उसके डिजायन पर भी काफी मेहनत की गयी। यह सभी मेहनत इसीलिए की जा रही थी ताकि वो दुनिया को दिखा सके कि हम सबसे अलग है। रॉयल एनफील्ड को एक अडवेंचरस बाइक के तौर पर लोगों के बीच प्रेजेंट किया गया। जैसा कि हमने आपको पहले बताया कि इस बाइक को खास कर के मिलिट्री पेट्रोलिंग के लिए इंडिया में लांच किया गया था, तो इस वजह से यह एक पावरफुल बाइक के तौर पर तो पहले से ही जाना जाता था।
पैशनेट बाइक राइडर के लिए एडवेंचरस ट्रिप ऑर्गनाइज करना भी इस कम्पनी का एक प्रोमोशन का हिस्सा है। राइडमानिया एक ऐसा ही एडवेंचरस ओर्गनइजेशन है जो गोवा में होता है और रॉयल एनफील्ड इसको स्पॉन्सर करती है। पूरी तयारी के साथ जब रॉयल एनफील्ड के नए रेंज को जब मार्केट में साल 2005 में उतारा गया तो उस साल इसकी बिक्री थी 28,609। वहीं यह संख्या साल 2010 में बढ़कर 49,944 हो गयी। यह रॉयल एनफील्ड का सबसे अच्छा समय चल रहा था। साल 2015 में इसकी बिक्री 4,44,527 हो गयी तो साल 2017 में इसकी बिक्री 6,66,493 हो गयी। और साल 2018 में यह संख्या 8,22,724 तक पहुँच चुकी है। मिड साइज सेगमेंट में यह इंडिया की सबसे बड़ी मोटरबाइक कम्पनी है। मिडसाइज मतलब जो कम्पनी 250 से 750 सीसी तक की बाइक बनती है। फ़िलहाल इंडिया में सुजुकी और यामाहा भी मिडसाइज बाइक बनती है लेकिन इसका मार्केट शेयर 10 परसेंट भी नहीं है। अभी रॉयल एनफील्ड की तीन फैक्ट्रीज हैं जो कि चेन्नई में स्थित है।
कभी बंद पड़ने के कगार पर कड़ी रॉयल एनफील्ड बाइक की आज बिक्री इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि इसके ऑनर और सिद्धार्थ लाल के फादर श्री विक्रम लाल इंडिया के 32वें सबसे ज्यादा अमीर व्यक्ति हैं और उनकी उम्र 77 साल की है। हांलाकि अप्रैल 2019 में सिद्धार्थ लाल ने रॉयल एनफील्ड कम्पनी के सीईओ पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन वो मैनेजिंग डायरेक्टर बने हुए हैं।
लगातार पंद्रह साल तक लगातार इंडिया में मेहनत करने और कम्पनी को नंबर वन बनाने के बाद सिद्धार्थ लाल का फोकस अब इंटरनेशनल मार्केट पर है। इसके लिए उन्होंने अपना काम भी शुरू कर दिया है। सिद्धार्थ अब लन्दन शिफ्ट हो गए हैं और वहाँ पर रॉयल एनफील्ड की रिसर्च एंड डेवेलपमेंट लैब देख रहे हैं जिसमें इस बाइक के कुछ नए फीचर्स पर काम हो रहे हैं जिससे कि उसे इंटरनेशनल मार्केट में सर्वाइव करने में दिक्कत ना हो।
मज़ेदार बात तो यह है कि सिद्धार्थ लाल को बुलेट से इतना प्यार है कि उन्होंने अपनी बारात भी बुलेट पर ही निकाली थी। उनकी बीवी का नाम नताशा लाल है। साल 2015 में दिए एक इंटरव्यू में सिद्धार्थ बताते हैं कि “जब 26 साल की उम्र में उन्होंने अपनी कम्पनी ज्वाइन की और बुलेट पर काम करना शुरू किया तो उन्हें नहाते, खाते और सोते वक़्त हर जगह बुलेट ही दिखाई देता था, इसी वजह से मैं इसके ऊपर इतना अच्छा काम कर सका।”
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