कहानी सीसीडी के मालिक वी जी सिद्धार्थ की, जो अरबपति होकर भी खुदखुशी कर लिया

जब एक कामयाब व्यक्ति आत्महत्या के रास्ते मौत को गले लगाता है तब हम एक इंसान के रूप में ये सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि एक आदमी आखिर अपनी जिंदगी से चाहता क्या है। सबकुछ होते हुए भी आखिर किस बात की कमी हो जाती है लोगों को कि उन्हें वो मरने को मजबूर कर देती है। कई बार खबरें आती है है कि कोई किसान आत्महत्या कर लिया, किसी प्रेमी प्रेमी जोड़े ने खुदखुशी कर ली तो कोई विद्यार्थी ने कहीं अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। हम किसी के सुसाइड को जस्टिफाय नहीं कर रहें है। आत्महत्या हर सूरत में एक कायरतापूर्ण व्यवहार है जिसे वो लोग अपनाते हैं जिनमें लड़ने कि ताकत नहीं होती है। लेकिन जब एक भरा-पूरा आदमी इस कदम को उठता है तो हमें ठहरकर सोचने की जरुरत है। आज के इस स्टोरी में हम देखेंगे सीसीडी के मालिक वी जी सिद्धार्थ की पूरी जीवनी और टटोलेंगे उन कारणों को भी जिनकी वजह से वो आज इस दुनिया में नहीं हैं।

शुरुआत करते हैं उनके जन्म से – Lets Start From Begining

साल 1959 में कर्णाटक के चिकमंगलूर जिले में वी जी सिद्धार्थ (VG Sidhhartha) का जन्म हुआ। वी जी सिद्धार्थ मूँह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए थे।  मतलब कि उनके पापा बहुत बड़े वाले व्यवसायी थे उस एरिया के। उनके पुरखों का 140 साल पुराना कॉफी गार्डन जिसमें महंगी कॉफी उगाई जाती थी। यह उनके कारोबार के लिए मददगार साबित हुआ, जो बाद में परिवार के लिए एक सफल व्यापार के रूप में स्थापित हुआ। चिकमंगलूर के बारे में बोला जाय तो वह वेस्टर्न घाट में बसा हुआ मद्धम तापमान वाला कर्नाटक का एक हिल स्टेशन है जो चंदन की लकड़ी और कॉफी के लिए बहुत मशहूर है।

अपने शुरूआती दिनों में श्री सिद्धार्थ (लाल घेरे में)

पढाई-लिखाई उनकी अच्छी हो रही थी। फिर आगे चलकर उन्होंने मंगलोर यूनिवर्सिटी (Manglore University) से इकोनॉमिक्स में मास्टर्स की डिग्री हासिल किया। अब बात आ गयी काम करने की तो पिताजी की हार्दिक इच्छा थी कि बेटा पारिवारिक बिजनेस को संभाले और आगे बढ़ें। लेकिन वो होता है ना कि लोगों के पास अपना जूनून होता है तो उनपे भी जूनून सवार हो चूका था शेयर मार्केट को करीब से देखने का। बिजनेस परिवार का लड़का और ऊपर से इकोनॉमिक्स में मास्टर्स। एक जुनूनी आदमी के लिए ये कॉकटेल काफी था।

अब आते हैं मुंबई वाले सफर पर

24 साल कि उम्र में वो मुंबई चले गए और वहाँ पर जे एम फाइनेंसियल लिमिटेड (JM Financial) में एक मैनेजमेंट ट्रेनी की हैसियत से काम करना शुरू कर दिया। वो साल था 1983-84 का जब वो मुंबई में अपना काम शुरू किये। और धीरे-धीरे वो वहां स्टॉक मार्केट (Stock Market) में भी ट्रेडिंग करना शुरू कर चुके थे। दो साल बीत चुके थे अब सो सोचे कि जब ट्रेडिंग ही करनी है तो बंगलौर से भी किया जा सकता है। यही सोचकर वो बैलोर वापस आ गए। अब उनको बिजनेस करने के लिए पैसा चाहिए था। फिर वो पिताजी के पास गए। सिद्धार्थ के पिता ने उन्हें कॉफ़ी का बिज़नेस करने के लिए 5 लाख रुपए दिए थे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि अगर वह इस बिज़नेस में असफल रहे तो उन्हें अपने पारिवारिक कारोबार में वापस आना होगा। सिद्धार्थ ने हाँ बोला और अपने काम पर लग गया। पिताजी से मिले हुए पैसों का सिद्धार्थ ने लगभग 30,000 रूपये के कीमत के शेयर ख़रीदे और बाकि पैसों से एक बिजनेस स्टार्ट किया। नाम रखा – सिवान सिक्योरिटीज़। यह एक कैपिटल फर्म था।

वापस बंगलौर आते हैं अब

वो एक कहावत तो आपने जरूर सुनी होगी – होनहार विरवान के होत चिकने पात। इसका मतलब हुआ कि जो का अच्छा करते हैं या अच्छा करने की चाह रखते हैं उनके साथ अच्छा होता ही चला जाता है। सिद्धार्थ के साथ भी यही हुआ। साल 1992 के शुरुआत में वो स्टॉक मार्केट का अपना सारा निवेश बेचा और वापस बंगलौर आ गए बिजनेस करने के लिए। शेयर मार्केट में उनके स्टॉक बेचने के कुछ दिनों के बाद ही हर्षद मेहता स्कैम सामने आया था जिससे की बाज़ार पूरी तरह से गिरकर धरातल पर आ गया था। खैर यह एक अलग कहानी है जिसपर हम किसी दिन और वीडियो बना देंगे। अभी बात करते हैं सिर्फ वी जी सिद्धार्थ की।

कैफे कॉफी डे युवाओं के बीच बहुत ही लोकप्रिय आउटिंग डेस्टिनेशन है

अब साल चल रहा था 1993। इसी साल वी जी सिद्धार्थ ने सिर्फ और सिर्फ कॉफी के लिए अपना खुद का एक कम्पनी खोला। नाम रखा – ‘कॉफी डे ग्लोबल लिमिटेड’। देखते ही देखते वो भारत के सबसे बड़े कॉफी एक्सपोर्टर बन गए। भारत से बाहर इंटरनैशनल मार्केट में अब धूम मचा रहा था उनका कॉफी। अब वो ‘कॉफी डे’ ब्रैंड के नाम से दुकानों में कॉफी बीन्स और कॉफी पाउडर की सप्लाई शुरू की। जो उनके बिजने स के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ।

सीसीडी की शुरुआत और सफलता की कहानी – The Beginning of Cafe Coffee Day (CCD)

ये थी बात बी टू बी की, लेकिन अब सिद्धार्थ बी टू सी बिजनेस करना चाहते थे। यानी की अब वो सीधे तौर पर अपने बिजनेस के द्वारा आम लोगों तक पहुंचना चाहते थे और यहीं से शुरुआत होती है सीसीडी की। साल 1996 की 11 जुलाई और जगह था बंगलोर का भीड़ भरा एरिया – ब्रिगेड रोड। यहीं पर “कैफे कॉफी डे” का पहला ब्रांच खुलता है। और देखते ही देखते यह साल दर साल बढ़ते ही चला जाता है। बंगलोर में इस चेन को अप्रतिम सफलता मिलती है। यह वो दौर था जब बंगलोर आईटी हब बन ही रहा था। CCD शुरू करने के पीछे की कहानी सिद्धार्थ ने कई मौकों पर सुनाया है। हुआ यह था कि एक बार वो सिंगापुर में थे। वहां एक दोस्त के साथ रेस्टोरेंट में खाना खा रहे थे। उन्होंने देखा, लोग बिअर पी रहे हैं, गप्पे लड़ा रहे हैं और इंटरनेट इस्तेमाल कर रहे हैं। सिद्धार्थ कॉफी वाले बैकग्राउंड के आदमी थे। उन्होंने यहां से आइडिया उठाया और बिअर को कॉफी से रिप्लेस कर दिया। अब लोग सीसीडी में बैठकर बियर नहीं बल्कि कॉफी का लुत्फ़ उठा रहे थे।

कैफे कॉफी डे का आइडिया उनको सिंगापूर में आया था, जिसे वो लोगों के बीच कई बार शेयर कर चुके हैं।

पहली कॉफी शॉप इंटरनेट कैफे के साथ खोली गई। इंटरनेट उन दिनों देश में पैठ बना रहा था। इंटरनेट के साथ कॉफी का मजा नई उम्र के लिए खास अनुभव था। जैसे-जैसे व्यवसायिक इंटरनेट अपने पैर फैलाने लगा, सीसीडी ने अपने मूल व्यवसाय कॉफी के साथ रहने का फैसला किया और देशभर में कॉफी कैफे के रूप में बिजनेस करने का निर्णय लिया। विकिपेडिया के अनुसार वर्तमान में अभी तक हिंदुस्तान के 28  राज्यों में सीसीडी की 1843 ब्रांचेज हैं और देश के बाहर ऑस्ट्रिया, चेक रिपब्लिक, इजिप्ट और नेपाल में भी इसके आउटलेट हैं। सीसीडी के अलावे इसी ग्रुप के कई और बिजनेस भी थे जिनमें से सब मिलाकर वी जी सिद्धार्थ की नेट वर्थ 25,000 करोड़ से ऊपर की थी।

फिर क्या हुआ कि वी जी सिद्धार्थ ने इतना बड़ा कदम उठाया?

29 जुलाई की शाम को वी जी सिद्धार्थ के गुम होने कि खबर आयी। उससे पहले वो एक चिट्ठी छोड़ गए थे। चिट्ठी किसके नाम पर था – कैफे कॉफी डे के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स और स्टाफ के नाम पर। चिट्ठी काफी लम्बी थी, जिसका मोटा-माटी सार यह था –

37 सालों कि कड़ी म्हणत के बाद मैंने अपने आप को इस मुकाम तक पहुँचाया है और लगभग 30,000 लोगों को सीधे तौर पर रोजगार दिया है। उन सब ने जिन्होंने मुझपर भरोसा किया, मैं उन सबसे माफी मांगता हूं। मैंने उन्हें निराश किया है। एक व्यवसायी के तौर पर मैं नाकाम हो गया हूं। मैंने बहुत लंबे समय तक संघर्ष किया, मगर आज मैं हिम्मत हार गया हूं। एक निजी इक्विटी पार्टनर मुझपर शेयर वापस खरीदने का दबाव डाल रहा है।

वो लेनदेन छह महीने पहले हो चुका है। उसके लिए मैंने एक दोस्त से बहुत सारे रुपये उधार लिए थे। मैं अब और नहीं झेल सकता ये प्रेशर। बाकी लेनदारों की तरफ से मिल रहे बेहिसाब दबाव के कारण मैं अब सरेंडर कर रहा हूं। मैंने बहुत कोशिश की, मगर एक मुनाफ़ा कमाने वाले बिज़नस का मॉडल नहीं बना पाया। मैं कभी किसी को धोखा नहीं देना चाहता था।

मैं आप सभी से यह विनती कर रहा हूँ कि कृपया आप सब मिलकर इस बिजनेस को चलाएँ और इसे कामयाब बनाएँ। कम्पनी द्वारा किये गए किसी भी तरह के लेन-देन का एकलौता जिम्मेदार मैं हूँ और किसी और के ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं है।

लेकिन असली कहानी तो यहाँ है

उन पर सितंबर 2017 से ही अघोषित संपत्ति रखने के मामले में जांच चल रही थी। इन्कम टैक्स विभाग ने सिद्धार्थ की उन संपत्तियों की जांच चला रखी थी जिन संपत्तियों पर टैक्स ना देने का अंदेशा था। अपनी चिट्ठी में भी सिद्धार्थ ने इन्कम टैक्स के पूर्व डीजी पर आरोप लगाए हैं कि सिद्धार्थ को प्रताड़ित किया गया। 2017 में सिद्धार्थ के खिलाफ़ 700 करोड़ के कर चोरी की जांच शुरू हुई। जो अभी भी जारी है। पिछली तिमाही में CCD को 67 करोड़ का घाटा हुआ था। लेकिन सालाना टर्न ओवर 4,264 करोड़ का रहा और 127 करोड़ का मुनाफ़ा हुआ।

नेत्रावती नदी से सिद्धार्थ की लाश को निकलते सुरक्षाकर्मी

उनपर अपनी कंपनी के शेयरों को वापस खरीदने का दबाव था। और ये दबाव कौन डाल रहा था? यह बात उसी लेटर में लिखा गया है कि कोई ‘इक्विटी पार्टनर’ है जो दबाव डाल रहा है। यही वो मिस्ट्री है जो अभी तक सुलझी नहीं है। कंपनी पर कौन दबाव डाल रहा था। कौन है वो ‘इक्विटी पार्टनर’। कहने वाले कह रहे हैं कि CCD से ज़्यादा नुकसान वाली कंपनियां अभी भी चल रही हैं। CCD पर बाज़ार का क़र्ज़ था ज़रूर, लेकिन उसे पाटने के साधन भी थे। अगर थोड़ा समय सिद्धार्थ और रुक जाते तो शायद बात बन जाती।

टैक्स-टेरॅरिज्म क्या होता है – Know Everything about the Tax Terrorism.

यह एक ऐसा गतिविधि होता है जिसमें इनकम टैक्स के ऑफिसर आपके ऊपर एक अतिरिक्त दवाब डालते हैं। हालांकि उनका पूरा प्रोसेस कानून के अंदर में रहकर ही होता है लेकिन फिर भी यह बहुत ही पीड़ादायक होता है। आपको कभी कहा जाएगा कि आप दो साल पुराना पेपर दिखाइए, फिर पांच साल और उससे भी मन नहीं भरा तो फिर दस साल या और पीछे। यहीं पर बात आ जाती है ब्राइब और करप्शन की। अगर सही डील हो गया तो ठीक नहीं तो इनकम टैक्स वाले वही करेंगे जो वो करना चाहते हैं। मसलन आपका अकाउंट फ्रीज़ होना या और कुछ। वी जी सिद्धार्थ के केस को देखें तो उनके अनुसार वो हर तरह के जांच में सहयोग कर रहे थे और कभी भी कोई मुश्किल नहीं आने दी जांच में। वो तो देश छोड़कर भी नहीं भागे थे। उनके अनुसार मेरे पर्सनल एसेट्स को बेचकर ही मेरे कर्ज को आसानी से समाप्त किया जा सकता है। अपने लेटर के आखिरी लाइन में उन्होंने लिखा है – मैंने अपने एसेट्स और उसके अनुमानित वैल्यू इस लेटर के साथ अटैच कर रहा हूँ। और मैं चाहता कि आप इन सभी को बेचकर उनका कर्ज लौटा दें।

वीडियो: देखिए की वी जी सिद्धार्थ की पूरी जीवनी और कहानी कैफे कॉफी डे की

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