फिल्म रिव्यू: बधाई हो
पिछले कुछ समय में मिडल क्लास फैमिली की कहानी लोगों को बहुत पसंद आयी है. वजह ये है कि लोग उस तरह की फिल्मों से खुद को आसानी से कनेक्ट कर लेते हैं. विकी डोनर, दम लगा के हईशा, बरेली की बर्फी और शुभ मंगल सावधान के बाद आयुष्मान खुराना की एक और मिडल क्लास कॉमेडी ड्रामा है - बधाई हो.
कहानी
फिल्म दिल्ली में बेस्ड है. नकुल (आयुष्मान खुराना) अपने मम्मी, पापा, छोटे भाई और दादी के साथ रहता है. कॉर्पोरेट में काम करता है और एक स्वीट की लड़की रेने (सान्या मल्होत्रा) का बॉयफ्रेंड है. सब सही चल रहा होता है तभी परिवार में खुशी की एक घंटी बजती है. लेकिन ये खुशी नकुल और उसके छोटे भाई के लिए खुशियाँ लेकर नहीं आता है. दरअसल में यह खुशी किसी की भी खुशी बनकर नहीं आता है. होता ये है कि नकुल की मम्मी प्रेग्नेंट हो जाती है और दोनों भाई को समाज में अपना चेहरा दिखाने में शर्मिंदगी हो रही है.
नकुल किस तरह से सोसायटी से डील करता है और अपने परिवार के साथ क्या करता है इसी ड्रामे के साथ फिल्म आगे बढ़ती है और बहुत ही आराम से आगे बढ़ती है आपको पता होता है कि आगे क्या होने जा रहा है लेकिन फिर भी आप उसे देखने के लिए उत्सुक रहते हैं. (आगे की कहानी बताना स्पॉयलर जैसा कुछ है नहीं, लेकिन बता देना बेमानी होगी.)
लेखन - निर्देशन - मेकिंग
शान्तनु श्रीवास्तव, अक्षत घिलडियाल और ज्योति कपूर तीनों ने मिलकर इस फिल्म को लिखा है. फिल्म के लेखन में कोई कमी नहीं होने दी गयी है. इस तरह के पटकथा को लिखना बहुत मुश्किल तो नहीं होता लेकिन बहुत सतर्कता बरतनी पड़ती है. फिल्म को लिखने में इस चीज का खास ख्याल रखा गया है. मिडल क्लास फैमिली को दिखाने में बहुत सतर्कता बरती गयी है. मसलन दोनों भाई के बीच की केमिस्ट्री हो या फिर एक औसत सरकारी नौकरी करने वालों के लिए अपने पास गाड़ी के होने का गुमान. सबकुछ बहुत ही अच्छे से दिखाया गया है. फिल्म अगर थोड़ी और लम्बी खिंच जाती तो बोर कर सकती थी.
निर्देशक अमित शर्मा इससे पहले कई एड फिल्म्स बना चुके हैं. फिल्म निर्देशक के तौर पर यह उनकी पहली कोशिश है. इस कोशिश में तमाम अनुभव का समावेश साफ़ दिखता भी है. कमाल का निर्देशन. आपत्तिजनक चीजों को फिल्म में टच नहीं किया गया है. दिल्ली की खूबसूरती जैसी कोई शॉट फिल्म में नहीं है लेकिन किरदारों की हरकत से ये पता चल जाता है कि ये दिल्ली की ही कहानी है. निर्देशक के रूप में अमित रविंद्रनाथ शर्मा की यही उपलब्धि है.
अभिनय
हालिया रिलीज अंधाधुन के बाद आयुष्मान खुराना की एक्टिंग के बारे में कुछ बोलने के लिए तो रह ही नहीं गया है. और वैसे भी दिल्ली के छोकरे के रूप में तो आयुष्मान ने बॉलीवुड में झंडे गाड़ रखे हैं. कमाल की एक्टिंग देखने को मिलती है हर बार. साथ में गजराज राव (आयुष्मान के पापा का किरदार) को आप कई वेब सीरीज और डिजिटल शोज में देख चुके होंगे. वो बड़े परदे पर और भी ज्यादा परिपक्व दिखते हैं. उनको देखने में अलग ही आनंद आता है. अब ऐसे दो-तीन किरदार और हैं जो बॉलीवुड पर छाने को तैयार हैं. इसमें गोपाल दत्त और शिशिर शर्मा का नाम सबसे पहले लिया जा सकता है.
सान्या मल्होत्रा बहुत ही फिट दिखी है अपने किरदार में. पिछले हप्ते रिलीज हुई फिल्म पटाखा के बाद इस महीने में उनकी यह दूसरी फिल्म है. एक-दो सीन को छोड़ दें तो करने के लिए उनके पास कुछ खास था नहीं, लेकिन जितना भी मिला उसको अच्छे से किया गया है. दादी बनी सुरेखा सिकरी और आयुष्मान की माँ के किरदार में नीना गुप्ता बहुत जँचती है. सहायक किरदार भी साथ में अच्छा है. कुछ भी छूटता हुआ सा नहीं दिखता.
गीत - संगीत
नैना ना जोड़ी . . फिल्म का सबसे चर्चित गीत है और मेलोडियस भी. इस गीत को कुमार ने लिखा है और आयुष्मान के साथ इसको नेहा कक्कर ने गाया है. इसे फिल्म के सिचुएशन के अनुसार सही जगह मिला है. इसके आलावा तीन और गाने फिल्म में है. जिसमें फिल्म का प्रोमोशनल सॉन्ग मोरनी बनके बार-बार सुनने का मन करता है. बैकग्राउंड स्कोर बहुत ही सरलता से चलता रहता है. ऐसा कि आपको पता ही नहीं चलता है. फिल्म का प्रोमोशनल सॉन्ग यहाँ देखिये:
और अंत में: पारिवारिक मूल्यों की एक बहुत ही प्यारी दास्ताँ कहती इस फिल्म को ज़रूर देखी जानी चाहिए. वीकेंड और त्यौहार में परिवार के साथ इस फिल्म को देखने जाना आपका मजा दुगुना कर सकता है.