Batti Gul Meter Chalu poster

फिल्म रिव्यू : बत्ती गुल मीटर चालू

Batti Gul Meter Chalu poster

यह फिल्म की कहानी नहीं बल्कि हमारी और आपकी कहानी है. ऐसा शख्स लगभग हर गाँव और शहर में हैं जिसको बिजली का बिल उसके उपयोग से ज्यादा आ गया है या फिर ऐसा कहें की औकात से ज्यादा आ गया है. इसी कॉन्सेप्ट पर निर्देशक श्री नारायण सिंह ने इस फिल्म को बनाया है. श्री नारायण सिंह इससे पहले अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म टॉयलेट - एक प्रेम कथा बना चुके हैं.

कहानी

कहानी है न्यू टिहरी, गढ़वाल, उत्तराखंड की. जहाँ तीन दोस्त रहते हैं एस. के. (शाहिद कपूर), सुन्दर (दिव्येंदु शर्मा) और नौटी (श्रद्धा कपूर). दोस्ती भी पूरी दोस्ती वाली है. सब एक-दूसरे पर कुर्बान. सभी दोस्त उम्र के एक पड़ाव को पार चुके हैं और अपने अपने काम में व्यस्त है लेकिन दोस्ती के साथ कोई कोम्प्रोमाईज़ नहीं होता है. एस. के. वकील है, सुन्दर फैक्ट्री का मालिक और नौटी का अपना एक बुटीक चलता है. फिल्म में आगे एक लव ट्रैंगल भी दिखाया गया है लेकिन फिल्म की असली कहानी ये नहीं है आप भी जानते हैं.

A scene from Batti Gul Meter Chalu

तो कहानी ये है की सुन्दर अपनी फैक्ट्री में जिस कंपनी का बिजली लिया हुआ है वहाँ से उसको बेहिसाब बिल आता है. 54 लाख का. जिसे सुन्दर चुका पाने में असमर्थ है और कहीं और से मदद ना मिलता देख वो अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर लेता है. अब उसकी मौत के बाद उसका दोस्त एस. के. बिजली कंपनी पर केस ठोक देता है और हर्ज़ाने की मांग करता है. एक अच्छे खासे कोर्ट रूम ड्रामा के साथ फिल्म समाप्त होती है. सुन्दर के परिवार को न्याय मिलता है की नहीं और ये तीनों के लव ट्राइंगल का ऊँट किस करवट बैठता है या जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी. यहाँ बताना स्पॉइलर हो जायेगा जो मुझे कतई पसंद नहीं है और यक़ीनन आपको भी नहीं होगा.

लेखन - निर्देशन - मेकिंग

फिल्म के कहानी का कॉन्सेप्ट विपुल रावल का है जो इससे पहले साल 2016 में अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म रुस्तम को लिखे थे. इस स्टोरी कॉन्सेप्ट को आगे बढ़ाये हैं लेखक द्वय सिद्धार्थ और गरिमा ने. दोनों ने मिलकर इस फिल्म के डायलॉग और स्क्रिप्ट को लिखा है. अभी के माहौल में तो यह एक ज़रूरी फिल्म है जिसका बनना ज़रूरी था. फिल्म का स्क्रीनप्ले उतना बेहतर नहीं हो पाया है जितना की उम्मीद थी लेकिन फिर भी फिल्म देखते वक़्त कभी भी बोरियत जैसी कुछ नहीं लगती. हाँ, एक-दो जगह पर फिल्म की लम्बाई थोड़ी ज़रूर अखड़ती है और लगता है की यह पौने तीन घंटे की नहीं होनी चाहिए थी. विकास और कल्याण के किरदार को एक सटायर के तौर पर लिखना लेखक की पोलिटिकल भड़ास को दिखाता है, ऐसा मुझे लग रहा है. क्योंकि फिल्म में इसकी ज़रुरत तो नहीं थी.

निर्देशक श्री नारायण सिंह और लेखक द्वय गरिमा और सिद्धार्थ
निर्देशक श्री नारायण सिंह और लेखक द्वय गरिमा और सिद्धार्थ

लेखन में जहाँ-जहाँ भी कमज़ोरी आयी है, श्री नारायण सिंह वहाँ पर अपने निर्देशकीय कला से उस कमजोरी को ढँक देते हैं. कमाल का निर्देशन किया गया है फिल्म का, क्योंकि एडिटिंग टेबल पर जनाब खुद बैठे थे तो ज्यादा किसी को कन्विंस करने की ज़रूरत नहीं आन पड़ी और बहुत ही आसानी से नारायण जी इस फिल्म को बना ले गए. वैसे तो ज्यादा इनडोर शूटिंग ही हुई है फिल्म की लेकिन जहाँ भी कैमरा उत्तराखंड की वादियों में गया है अंशुमान महाले का काम देखने में अच्छा लगा है.

अभिनय

शाहिद कपूर अब हर तरह के किरदार को कर पाने में सक्षम हैं तो यहाँ भी एक मज़ेदार वकिल का अच्छा रोल कर ले गए हैं वो वहीं दूसरी तरफ श्रद्धा के खाते में वही मिला है जो वो करने में माहिर है, लेकिन जहाँ पर बात गुस्सैल अभिनय की आती है वहाँ उनका हाथ खड़ा हो जाता है. तो अब लगता है की उनको क्यूट वाले किरदार ही मिले तो बेहतर है. दिव्येंदु शर्मा अपने पैर जमाने की कोशिश में है मगर इसका ये मतलब तो कतई नहीं हुआ की उन्हें एक्टिंग नहीं आती. एक्टिंग आती है भाई और वो अच्छा किये भी हैं. एकाध बार हल्के लगे हैं बाकी सब ठीक है.

Various scenes from film Batti Gul Meter Chalu

डिफेंस लॉयर गुलनाज़ रिज़वी के किरदार में यामी गौतम कुछ देर तक परदे की रौनक बढ़ाती है. छोटे से किरदार में फरीदा जलाल, बृजेंद्र काला, सुधीर पांडे, अतुल श्रीवास्तव और सुष्मिता मुखर्जी अच्छे लगे हैं. कुछ ऐसे किरदार भी हैं जिनका होना फिल्म में ज़रूरी तो नहीं लगता, मगर फिल्म की लम्बाई बढ़ने काम काम ज़रूर करता है.

गीत - संगीत

उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान का लिखा और गाय गीत "देखते - देखते" ऑल टाइम हिट है जिसे यहाँ रिक्रिएट किया है. फिल्म में बस एक पैरा ही है जो अच्छा लगा है. वैसे बाहर सुने तो ज्यादा सुकून देता है. सिद्धार्थ - गरिमा का लिखा और अनु मलिक का कम्पोज किया गीत गोल्ड ताम्बा पहले ही चार्टबस्टर की लिस्ट में आ चूका है. बाकि के गीत भी फिल्म में फिट बैठते है लेकिन आपको थियेटर के बहार याद नहीं रहने वाले. देखते - देखते गीत को यहाँ देखते जाओ. . .

और अंत में: फिल्म जिस मुद्दे पर बानी है वैसी अपीलिंग नहीं लगती. एक फोकस्ड फिल्म की तरह ये नहीं है. यह एक भटकती हुई फिल्म है जिसे बहुत ज्यादा फ्री होने पर ही देखा जा सकता है. फिल्म को बॉक्स ऑफिस कॉलेक्शन सही रहेगा, मुझे तो नहीं लगता.
और, फिल्म का ट्रेलर यहाँ देखते जाओ:

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