Dhadak film scenes

फिल्म रिव्यू: धड़क

Dhadak film scenes

साल 2016 में आयी निर्देशक नागराज मंजुले की मराठी फिल्म सैराट का रीमेक है धड़क. इस फिल्म को करण जोहर ने प्रोड्यूस किया है और शशांक खेतान ने निर्देशित किया है. ऑनर किलिंग के मसले पर बनी यह फिल्म जब मराठी में आयी थी तो सबका बाजा फाड़ दी थी. बहुत बड़ी ब्लॉकबस्टर बनी यह फिल्म मराठी में अब तक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म है.

कहानी क्या कहती है

कहानी शुरू होती है राजस्थान के उदयपुर से. वहाँ एक मिडल क्लास लड़का मधुकर (ईशान खट्टर) है, जिसकी उम्र 18-19 साल है और वह कॉलेज में पढता है. अपने माँ-बाप के साथ मिलकर वह एक छोटा सा रेस्टोरेंट चलाता है. उसके साथ उसका दो दोस्त भी है. वही दूसरी तरफ है पार्थवी (जाह्नवी कपूर), वह उदयपुर के एक बहुत ही बड़े पोलिटिकल परिवार से ताल्लुक रखती है. उनके पापा (आशुतोष राणा) शहर में होने वाले विधायक है और खानदान भी रजवाड़ों का है तो गरीबी से कभी पला नहीं पड़ा.

Janhavi and Ishan Khattar on bike from film Dhadak

दोनों लड़का - लड़की मिलते है और फिर प्यार होता है. छोटे शहर का प्यार है तो थोड़ा धीरे चढ़ता है और भयानक चढ़ जाता है. इतना की एक-दूसरे को देखे बिना चैन नहीं. फिर कुछ माहौल ऐसे बनते है और दोनों को अपने परिवार को छोड़कर भागना पड़ता है. मुंबई, नागपुर होते हुए दोनों कोलकाता पहुँचता है फिर वहाँ से उसकी ज़िन्दगी कैसे आगे बढ़ती है यही फिल्म की कहानी है. अगर आपने सैराट देखी है तो कहानी का पूरा पता तो होगा ही लेकिन फिर भी क्लाईमैक्स में एक ट्विस्ट दिया गया है, और यकीन मानिये आखिरी में सिर्फ वही याद रहता है.

लेखन - निर्देशन - मेकिंग

कहते है किसी भी कल्ट या फिर ब्लॉकबस्टर का रीमेक बनाना हो तो मेकर्स के ऊपर एक्स्ट्रा प्रेशर होता है. क्योंकि उसे ओरिजिनल के मुकाबले बेहतर करना होता है. इसीलिए अगर सक्षम हो तो बनाओ नहीं तो रहने दो. सैराट एक ऐसी अपीलिंग फिल्म है जिसे अब तक कन्नड़, उड़िया, पंजाबी और बंगाली में बनायी जा चुकी है. हिंदी में अभी आयी है और तमिल तथा तेलगु में बनाने की तैयारी चल रही है. क्योंकि फिल्म का स्क्रिप्ट सैराट से अडॉप्ट किया गया है तो इसे ज्यादा लिखने कोई ज़रूरत नहीं थी. कहीं-कहीं पर माइनर से चेंज किये गए है जो नहीं किये जाते तो बेहतर होता. जैसे मेल लीड का इंट्रो सीन और भी कुछ ऐसे ही. सैराट में लड़का परश्या के किरदार को दलित दिखाया गया है, जबकि धड़क में मधु के किरदार को मिडल क्लास बना दिया है. दलित - अपर क्लास और मिडल - अपर क्लास में ज्यादा इम्पैक्ट दलित - अपर क्लास ही डालता है. और यहीं पर शशांक खेतान चूक जाते हैं.

Film Sairat and Dhadak posters

शशांक खेतान इससे पहले हम्प्टी शर्मा की दुल्हनियाँ और बद्रीनाथ की दुल्हनियाँ जैसी कलरफुल फ़िल्में निर्देशित कर चुके है. सैराट में भी वो दिल खोलकर रंग भरे हैं. निर्देशन में कोई की नहीं की गयी है. बहुत अच्छे से चीजों को सही तरीके से दिखाया गया है. फिल्म को उदयपुर और कोलकाता में मुख्य रूप से शूट किया है. जिसे सिनेमैटोग्राफर विष्णु राव ने बहुत ही खूबसूरती से दिखाया है. और फिर एडिटर मोनिषा बलदावा के बहुत ही करीने से फिम पर कैंची चलायी है.

Ishaan and Janhavi from film Dhadak

हम उतना ही देख पाते है जितना हम देखना चाहते है. लेकिन फिर भी तीन घंटे की सैराट में आप कभी भी अपना मोबाइल चेक नहीं करते है वहीं सवा दो घंटे के धड़क में आपको कई बार मोबाइल चेक करने का मन करता है और आप करते भी हैं.

अभिनय

यक़ीनन यह सिर्फ जाह्नवी और ईशान की ही फिल्म है. अब ये दोनों क्योंकि एक स्थापित हो चुके किरदार को निभा रहे है तो तुलना तो होगी ही. लेकिन यहाँ पर हम तुलनात्मक रूप से ना भी देखें तो फीमेल लीड को जिस एट्टीट्यूड की ज़रूरत थी वो दिखाई नहीं पड़ती है. बहुत ऐसे जगह है जहाँ पर जाह्नवी फेल हुई है. उनके चेहरे का हाव-भाव बहुत मुश्किल से बाहर निकल पाता है और वो कुछेक सीन में ही दिखता है. खास कर वो क्लाईमैक्स वाला सीन. वैसे तो मुश्किल है लेकिन अगर फिल्म हिट हुई तो यही सीन फिल्म की यूएसपी बनेगी. बात ईशान की करें तो उनकी पहली फिल्म बियोंड द क्लाउड्स में ही उन्होंने दिखा दिया था की इंडस्ट्री को उनको सीरियस लेने की ज़रूरत है. बहुत ही कमाल का अभिनेता. आने वाल समय का एक अक्लेम्ड एक्टर. हर सीन में बीस.

A romantic scene from film Dhadak

फिल्म में आशुतोष राणा भी है जो जान्हवी के पिता के रोल में है. आशुतोष की एक्टिंग के बारे में क्या ही बात करना. किरदार में इतनी मज़बूती है की उनका अपीयरेंस ही डरा जाता है. साथ में जान्हवी के भाई का कैरेक्टर भी बहुत ही ग्रे शेड किये हुआ है और किरदार को सही से अंजाम दिया गया है. गैंग्स ऑफ़ वासेपुर का डेफिनिट यहाँ जान्हवी के छोटे भाई के रोल में है, लेकिन यहाँ पर उसके पास करने के लिए ज्यादा कुछ है नहीं. बंगाली दादा के रोल में ख़राज मुखर्जी जब भी परदे पर आते है एक सुकून दे जाते है. बहुत ही प्यारा किरदार और वैसी ही अदाकारी.

गीत - संगीत

धड़क के गीतों को सैराट का संगीत देकर फिल्म को ख़राब किया गया है. परदे पर जब पहली बार. . .गीत बज रहा होता है तो दिमाग में और होठों पर याड लागला. . . ही चल रहा होता है. बाकी टाइटल ट्रैक थोड़ा एफ्फेक्टिव है वहीं बैकग्राउंड स्कोर भी काफी संतुलित है. गीत अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखा है. उनके ऊपर बीट्स पर गीत लिखने का ज़बरदस्त प्रेशर रहा होगा जिसे वो संभल तो लिए है लेकिन दिख नहीं पता है. सैराट के जैसा इसमें भी अजय - अतुल का म्यूजिक है. सैराट को इस जोड़ी का म्यूजिकल फिल्म कहा गया था लेकिन धड़क को ऐसा कहना किसी भी एंगल से सही नहीं होगा. फिल्म में अगर अडॉप्टेड गीत ना होते तो ज्यादा बेहतर होता. फिल्म का टाईटल ट्रैक यहाँ देखिए. . .

और अंत में: जिसने भी सैराट देखी है वो इसे बहुत आसानी से इग्नोर कर अपना पैसा और समय बचा सकते है. वहीं दूसरी तरफ वाले लोग एक बार देख सकते है लेकिन ना भी देखे तो कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला. फिर भी इस फिल्म का सन्देश दूर तलाक जाना बहुत ज़रूरी है.

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