फिल्म रिव्यू: एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा
कैसा लगा भाई, कैसा लगा. .?? थियेटर से निकलने के बाद सामने वाला हर शख्स यही सवाल पूछना चाहता है. वाजिब भी है, क्योकि हमने फिल्म देखी है भाई. कैसा क्या है इसका पूरा पोस्टमार्टम रिपोर्ट हम यहाँ देंगे आपको.
सबसे पहले कहानी की बात कर लेते हैं
अच्छी है. अभी के माहौल में बात करें तो सही टॉपिक को लिया गया है फिल्म बनाने के लिए. फिल्म की कहानी स्वीटी (सोनम कपूर) की है. स्वीटी सबसे अलग है, वो नार्मल लड़की जैसी बिलकुल भी नहीं है. एक उम्र के बाद जब दो लोग ओपोजिट सेक्स के लिए अट्रैक्ट होते हैं वहीं स्वीटी को एक लड़की से ही प्यार हो जाता है. स्वीटी इस बारे में किसी को नहीं बताती है. लेकिन अनजाने में ही वो एक प्ले राईटर साहिल मिर्जा (राजकुमार राव) से मिलती है. दोनों में दोस्ती हो जाती है और स्वीटी अपना सबसे बड़ा राज उसे बता देती है. फिर क्या होता है? स्वीटी के परिवारवाले उसे अपनाते है या नहीं और साहिल का क्या होता है यही है फिल्म का क्लाईमैक्स. वहां तक हम अगर आपको ले जायेंगे तो यह एक स्पॉइलर होगा, जो हम नही चाहते हैं.
लेखन – निर्देशन – मेकिंग
जिस तरह से और जितनी हिम्मत दिखाकर ऐसी टॉपिक को बड़े परदे पर लाया गया है वो काबिलेतारीफ है. अब वक्त आ गया है कि ऐसी कहानी बननी चाहिए. लेकिन ये फिल्म है गुरु और यहाँ लोग सिर्फ मैसेज लेने नहीं एंटरटेन होने भी आते हैं. तो मोटा-मोटी तौर पर देखा जाए तो फिल्म की स्क्रिप्टिंग सही से नहीं हो पायी है. लेखन में बहुत ही ज्यादा लूपहोल नजर आता है. फिल्म का पहला हाफ तो ऐसा है कि आपको लगता है आपके अगल-बगल के लोग सो चुके हैं. अगर स्क्रिप्ट मजबूत होती तो फिल्म कुछ और ही बन सकती थी. यहाँ पर लेखिका गज़ल धालीवाल और शैली चोपड़ा धर दोनों कमजोर लगती है.
नए निर्देशकों से जितनी उम्मीदें रहती है, शैली चोपड़ा उन सभी उम्मीदों पर खड़ी उतरती है. फिल्म कि मेकिंग ज्यादा मुश्किल नहीं थी, लेकिन फिर भी छोटी छोटी बातों का ख्याल रखा गया है. कैमरा पंजाब की सैर अच्छे से कराती है और एडिटर आशीष सूर्यवंशी यहाँ पुरे मार्क्स ले जाते हैं.
एक्टिंग और म्यूजिक
सोनम कपूर से शुरू होती फिल्म सोनम कपूर पर ही खत्म हो जाती है. इस तरह के टिपिकल किरदारों को वो आसानी से कर सकती है यह वो कई मौकों पर दिखा चुकी है. अनिल कपूर, जूही चावला और राजकुमार राव कमाल हैं. राज को अपने स्क्रिप्ट चुनने में अब थोड़ा सतर्क रहना होगा. साथ मिला है रेजिना कसेंड्रा, सीमा पाहवा, बृजेन्द्र काला का. सबने अच्छी एक्टिंग की है. लेकिन यहाँ सबसे ज्यादा तारीफ होनी चाहिए सोनम के भाई बने अब्दुल कादिर अमीन का. उन्होंने एक्टिंग में जान दाल दिया है.
फिल्म में एक ही गीत है जो आप सुन भी सकते हैं और गुनगुना भी सकते हैं. गुड़ नाल इश्क मिठा. . . इसके आलावे एक लड़की को देखा. . . वाला गीत तो आप 1992 से गुनगुना रहे हैं. फिल्म में तीन गाने और हैं जो ना तो कान में घुसते तो हैं लेकिन जुबान पर नहीं चढ़ पाता. गुरप्रीत सैनी ने गीत लिखा है और संगीत है रोचक कोहली का.
और अंत में: फिल्म खत्म होने से पांच मिनट पहले सिर्फ दस मिनट के लिए ही दर्शकों को बाँध पाती है. लेकिन इसके लिए दो घंटे और दो सौ रुपया खर्च करना बेमानी लगता है. आगे आपके मर्जी.
वीडियो: उरी फिल्म देखनी क्यों जरुरी है ?
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