फिल्म रिव्यू: जुरासिक वर्ल्ड - फॉलेन किंगडम
ये बात तो सारी दुनिया जानती है कि जुरासिक पार्क महान डायरेक्टर स्टीवन स्पीलबर्ग की बसाई एक रोमांचक दुनिया है जहाँ डायनासौर रहते है.स्पीलबर्ग ने इसकी पहली क़िस्त साल 1993 में बनायी थी. उसके बाद दूसरी फिल्म चार साल बाद 1997 में बनायी, जुरासिक पार्क: द लॉस्ट वर्ल्ड. फिर तीसरी फिल्म को डायरेक्ट किये जो जॉन्स्टन साल 2001 में. सभी एक से बड़ी एक फ़िल्में. पटकथा से लेकर सिनेमैटोग्राफी तक. जुरासिक सीरीज ने एक अलग दुनिया का निर्माण कर दिया था. साल 2001 में जब ये कारवां थमा तो लगा कि ये मनोरंजन अब वापस नहीं आएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और साल 2015 में एक बार फिर से हमने जुरासिक वर्ल्ड की सैर की. ये सैर हमें करवाए पार्क के मालिक साइमन मशरानी यानी कि अपने इरफ़ान खान ने. लेकिन उस थीम पार्क में सब तबाह होने के बाद क्या बचा, कुछ बचा भी की नहीं, जो बचा उसके साथ क्या हुआ, यही सब कहानी लेकर तीन साल बाद फिर से हाज़िर है जुरासिक वर्ल्ड - फॉलेन किंगडम. आगे की कहानी को समझने के लिए ये लम्बी वाली भूमिका ज़रूरी थी (सॉरी). . . .
अब आते है इस वाले कहानी पर
आपने जुरासिक पार्क के पहले वाले तीनों ट्राइलॉजी के पोस्टर पर गौर किया होगा तो एक बात कॉमन दिखेगी कि तीनों पोस्टर आग की लपटों में जल रहा है. चौथी फिल्म में भी यह हुआ था. अब पांचवीं फिल्म की शुरुआत होती है अमेरिकन सीनेट के एक हियरिंग से. ये मीटिंग इसीलिए हो रही है क्योंकि आइलैंड इसला नुबलर, जहाँ पर यह जुरासिक पार्क है वहाँ पर एक ज्वालामुखी जाग गया है और वह कभी भी फट सकता है. इसीलिए इस मीटिंग में बातें हो रही है कि पार्क में बचे हुए डायनासौर को बचाया जाए या छोड़ दिया जाए. वहाँ डॉ. माल्कम ये बताते है कि इन्हें हम नहीं बचाएंगे. इन जानवरों को मरने के लिए छोड़ देना ही बेहतर होगा. क्योंकि इंसानी लालच बढ़ती जा रही है और वह इन जानवरों का गलत इस्तेमाल करेगा जो कुदरत से खिलवाड़ होगा.
यह न्यूज टीवी पर देखने के बाद पार्क की पूर्व मैनेजर क्लेयर डियरिंग (ब्रायस डलास) अपने इ दोस्त डॉक्टर, एक आईटी टेक्नीशियन और अपने पुराने बॉयफ्रेंड ओवन ग्रैडी (क्रिस प्रैट) के साथ डायनासौर को बचाना चाहती है. इसमें उनका साथ मिलता है पार्क के मालिक सर बेंजामिन लॉकवुड का. लॉकवुड अब बूढ़े हो चुके है और अपनी पार्क की देखरेख के लिए वो अपने एक वफादार एली मिल्स (राफे स्पैल) को चुनते है. मिल्स क्लेयर और उसकी टीम को हायर कर लेता है पार्क के बचे हुए जानवरों को बचाने के लिए. पार्क में घुसते ही ओवन को अपना पुराना दोस्त मिलती है ब्लू (ये भी एक डायनासौर ही है), जिसे ओवन पिछली फिल्म में ट्रेन किया था. लेकिन तभी ज्वालामुखी फटता है और पार्क तबाह हो जाता है. सभी तो नहीं, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण प्रजातियों को वहाँ से निकालकर लॉकवुड स्टेट में लाया जाता है.
यहाँ पर सर लॉकवुड को अपने वफादार मिल्स की गद्दारी का पता उसके नतिनी से चलता है. मिल्स उन जानवरों की तस्करी करने वाला है. उसपर तरह-तरह के प्रयोग करके उसको जेनेटिक हथियार के रूप में तैयार करने वाला है. लॉकवुड स्टेट में एक नीलामी हो रही है जहाँ लाये गए जानवरों की बोली लग रही है. फिर क्या कुछ होता है ये आपको फिल्म देखकर पता चलेगा.
क्या खास/अलग है
वैसे देखा जाए तो कुछ भी ख़ास या फिर कहें की बिलकुल अलग नहीं है. एक कुछेक जगह पर आपको थ्रिल महसूस होगी लेकिन आप चौंकेंगे नहीं. क्योंकि आपको पता है कि क्या होनवाला है. फिल्म के एक सीन में बहुत इमोशन डाल दिया गया है जब पार्क पूरी तरह से ज्वालामुखी में जल रहा होता है और एक डायनासौर किनारे खड़ा होकर चीख रहा होता है. जहाज बाकी के जानवरों को लेकर निकल चुकी है और अब वापस आना नामुमकिन है. ये दृश्य ज्यादा मार्मिक बन पड़ा है.
देखना है कि नहीं
अगर आपने इस सीरीज की पिछली फ़िल्में देख रखी है तो आप मना करने के बाद भी इसको देखेंगे ही. हालांकि पिछली ट्राइलॉजी का जादू तो चौथी फिल्म में भी नहीं थी और यहाँ भी नहीं है. लेकिन शुरू से ही फिल्म में रोमांच आ जाता है और कहानी दिलचस्प बनती चली जाती है. एक बार तो देखा जा ही सकता है.
यहाँ पर हम ट्रेलर दिखा देते है, फिल्म थियेटर में देख लीजिएगा: