Mulk film poster

फिल्म रिव्यू: मुल्क

Mulk film poster

आज के समय से देखा जाए तो यह काफी प्रासंगिक विषय है जिसपर फिल्म बनायी जा सकती है. लेखक-निर्देशक अनुभव सिन्हा ने यही कोशिश किया है और लोगों को ये बताने की कोशिश कि है की यह हमारा और उसका मुल्क नहीं बल्कि सिर्फ हमारा मुल्क है. इस हमारा में कौन-कौन आते है यह देखने के लिए आपको फिल्म देखना पड़ेगा.

बात करते है कहानी की

A scene from film Mulk

बनारस हिन्दुओं का सबसे पवित्र शहरों में से एक है. लेकिन ऐसा तो बिलकुल भी नहीं है कि वहाँ सिर्फ हिन्दू ही रहते हैं. बनारस में एक वकील का परिवार रहता है जिसका नाम है मुराद अली मोहम्मद (ऋषि कपूर). मुराद के परिवार में उसका एक छोटा भाई है बिलाल (मनोज पाहवा) उसकी बीवी एक जवान बेटी आयत और एक जवान बेटा शाहिद (प्रतिक बब्बर). भरा-पूरा और आर्थिक रूप से भी संपन्न परिवार है. वकील साहब का एक बेटा आफ़ताब लन्दन में रहता है और वहीं अपना बिजनेस करता है. लंदन में ही उसकी मुलाकात आरती मल्होत्रा (तापसी पन्नू) से होती है और दोनों शादी कर लेते हैं. क्योंकि आरती आज़ाद ख्यालों वाली आधुनिक लड़की है तो शादी के बाद वो अपना मज़हब तो नहीं बदलती लेकिन अपना सरनेम ज़रूर बदल लेती है. आरती मोहम्मद.

Rishi Kapoor in film Mulk

आसपास के माहौल और कुछ कट्टरपंथी लोगों के संपर्क में आने के बाद शाहिद का दिमाग फिर जाता है और वो एक आतंकी हमले को अंजाम दे देता है. यह विस्फोट इलाहाबाद में होता है और उसमें 16 जानें जाती है. अब पुलिस को शाहिद का एनकाउंटर करने के बाद उसके फैमिली के ऊपर केस चलता है जिसमें इस साजिश में शामिल होने के लिए शाहिद के पिता बिलाल समेत पुरे परिवार को आरोपी बनाया जाता है. वकील साहब इस बात से काफी परेशान हो जाते हैं. अब वो कैसे साबित करें कि उसका परिवार इस तरह के किसी भी एक्टिविटी में शामिल नहीं है. यह बात पहुँच जाती है कोर्ट में और फिर शुरू होता है कोर्टरूम ड्रामा, जिसमें पब्लिक प्रोसिक्यूटर है संतोष आनंद (आशुतोष राणा). अब यह परिवार किस-किस परिस्थियों से गुज़रता है? क्या होता है उस परिवार का जिसका एक मेंबर आतंकी बन गया है? क्या उसे इस लोकतान्त्रिक देश में न्याय मिलता है की नहीं यही फिल्म को अंत तक ले जाता है.

लेखन - निर्देशन

फिल्म के लेखक-निर्देशक अनुभव सिन्हा
फिल्म के लेखक-निर्देशक अनुभव सिन्हा

इस फिल्म के लेखन और निर्देशन कि जिम्मेदारी दोनों अनुभव सिन्हा के ऊपर है. जब कोई लेखक फिल्म को लिखता भी है और निर्देशित भी करता है तो उसका विजन बहुत ही साफ़ रहता है कि वो क्या कहने जा रहे हैं. अनुभव ने आशुतोष राणा के किरदार के माध्यम से कुछ बेहद ज़रूरी सवाल उठाये है जो आज हर भारतवासी के दिल में है और वो किसी ना किसी से पूछना ज़रूर चाहते हैं. मसलन:

  1. आखिर ये लोग (मुसलमान) इतनी शादियां क्यों करते है?
  2. क्या इतनी शादियां इसीलिए करते हैं कि अधिक से अधिक बच्चे पैदा किये जा सके?
  3. ये लोग इतने बच्चे इसीलिए पैदा करते हैं कि एक-दो बच्चे को जिहाद के नाम पर कौम की रक्षा के लिए भेज जा सके.

ऐसे ही कुछ सवाल जिसका जवाब हर कोई जानना चाहता है. फिल्म में एक किरदार है एसपी दानिश जावेद (रजत कपूर) का जो फिल्म में बहुत ही साफ़ और दिलचस्पी से रखा गया है. इस किरदार को ज्यादा लिखे जाने की ज़रूरत नहीं थी. एक बस वही किरदार है जो सबकुछ कह जाता है. इस किरदार कि मज़बूरी ही इसकी मज़बूती को दिखाता है. फिल्म के लेखन में किसी भी तरह की कोताही नहीं बरती गयी है. लेकिन अगर मेकिंग पर थोड़ा और ध्यान दिया जाता तो बेहतर बन सकती थी.

अपने किरदार में रजत कपूर और मनोज पाहवा
अपने किरदार में रजत कपूर और मनोज पाहवा

अभिनय

किसी भी नए एक्टर को कास्ट नहीं किया गया है फिल्म में जो इस फिल्म की पहुँच के लिए अच्छा है. ऋषि कपूर अपने किरदार में खूब जमे हैं और कुछ बेहतरीन संवाद उनके हिस्से में आया है. मनोज पाहवा, और प्रतीक बब्बर भी अपने रोल में जँचे है. तापसी पन्नू और आशुतोष राणा दोनों ही कोर्ट रूम के ड्रामे में अच्छे लगे हैं. लेकिन तापसी अपने किरदार जितनी मज़बूती में दिख नहीं पाती है. उनके चेहरे पर वह भाव नहीं आ पाता है. रजत कपूर के बारे में ऊपर बताई जा चुकी है.

Still from film Mulk

फिल्म में कुल तीन गाने हैं. जिसमें ठेंगे से. . . गीत को प्रॉपर फिल्माया गया है लेकिन याद नहीं रह पाती है. बैकग्राऊंड म्यूजिक को और बेहतर बनाया जा सकता था. कमजोर बैकग्राऊंड म्यूजिक फिल्म देखते वक़्त अखड़ता है. जिस तरह से कोर्ट रूम ड्रामा और ऐसे मुद्दे पर फिल्म को प्रोमोट किया जा रहा है उस तरह से देखा जाए तो विषय के अनुसार कोर्ट रूम ड्रामा निराश करता है. कोर्ट रूम ड्रामा वाली फिल्म की बात करें तो पिंक एक उदाहरण है. यह फिल्म उसके आस पास भी नहीं जा पाती है, जबकि जा सकता था. और यहीं एक निर्देशक के तौर तर अनुभव सिन्हा फेल हो जाते हैं.

और अंत में: सही मुद्दे पर बनायी गयी यह एक कमज़ोर फिल्म है, ना भी देखे तो कुछ होने वाला नहीं है.

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