Film Soorma poster

फिल्म रिव्यू: सूरमा

Film Soorma poster

फिल्म के ट्रेलर के दिन से ही इस फिल्म का इंतज़ार बढ़ गया था. यकीन से तो नहीं लेकिन फिर भी एक विश्वास के साथ ये बोल सकता हूँ कि ये बात सब हिंदुस्तानी ज़रूर जानते होंगे कि संदीप सिंह हमारे राष्ट्रिय खेल हॉकी के भूतपूर्व कप्तान और अर्जुन अवार्डी है. यह फिल्म उन्हीं के जीवन में हुई एक घटना पर बनी है. उनको गोली लगने और फिर वापस मैदान पर लौटने की प्रेरणादायक कहानी.

कहानी जानते है

हरियाणा के शाहाबाद में एक पंजाबी परिवार है. मिडल क्लास के परिवार कि जो समस्याएँ होती है वो इस परिवार में भी है. बुजुर्ग माता-पिता और दो बच्चे है. दोनों बच्चे हॉकी खेलते है. बड़ा भाई बिक्रमजीत (अंगद बेदी) इंडिया के लिए खेलते-खेलते रह जाता है लेकिन छोटा भाई संदीप (दिलजीत दोसँझ) लाख मुश्किल आने के बाद भी इंडिया के लिए खेलता है और जीतता भी है. लेकिन संदीप के हॉकी खेलने के पीछे उसका जूनून नहीं बल्कि एक लड़की है. प्रीतो (तापसी पन्नू) को हॉकी खेलते देख संदीप को उससे प्यार हो जाता है और फिर परिवार कि वही शर्त कि पहले कुछ कर जाओ. फिर बंदा लग जाता है हॉकी खेलने.

Film Soorma scene

संदीप एक अच्छा ड्रैग-फ्लिकर है. नहीं समझे, जैसे क्रिकेट में अगर फ्रंट फुट पर आकर रिवर्स स्विंग होती हुई गेंद को स्ट्रेट ड्राइव में बाउंड्री मारते है या फिर यॉर्कर वाली गेंद को अगर छक्का मारते है तो यह आपके अंदर एक अनोखी कला है. ऐसा ही कुछ अनोखा होता है ड्रैग-फ्लिक. जो किसी हॉकी खिलाड़ी को एक स्पेशल हॉकी खिलाड़ी बनता है. कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब संदीप वर्ल्ड कप खेलने जर्मनी जा रहा होता है और ट्रेन में कुरुक्षेत्र के आस-पास उसे धोखे से कमर में गोली लग जाती है. तारीख 22 अगस्त 2006. यह दिन संदीप के जीवन का सबसे कला दिन के रूप में सामने आता है.

Wounded Sandeep from filem Soorma

लगभग महीने भर कोमा में रहने के बाद जब वो होश में आता है तो उसे पता चलता है कि उसके कमर के नीचे का पूरा हिस्सा पैरालाइज्ड हो गया है. यह हादसा संदीप को गहरे सदमें में धकेल देता है. उसका प्यार उससे दूर हो जाता है. लेकिन वो एक चैम्पियन कि तरह उठता है और कैसे फिर वापसी करता है इसी कहानी को दिखाया गया है. फ़िल्मी अंदाज़ में बोले तो एक सूरमा कि कहानी.

लेखन - निर्देशन

फिल्म के प्रारंभिक राइट्स चित्रांगदा सिंह खरीदी थी. जी हाँ, मुझे भी ऐसे ही शॉक लगा था जब मैंने इस बात को पहली बार सुना. फिर इस फिल्म को लेखक-निर्देशक शाद अली पेपर पर डेवेलप किये और बहुत ही खूबसूरती से इस फिल्म को लिखे. फिल्म में इमोशन को बहुत ही बारीकी से दिखाया गया है. और इसे दिखाने के लिए उनके पास सतीश कौशिक और कुलभूषण खरबंदा जैसे चोटी के कलाकार है. वैसे शायद यह पहली फिल्म होगी जिसकी कमी अखड़ेगी. इस स्पोर्ट फिल्म को और थोड़ी सी लम्बी लिखी जाती तो बात ही कुछ और होती. लेकिन इसकी कम लम्बाई फिल्म की कमजोर कड़ी है.

Shaad Ali and Chitrangada Singh
फिल्म के ट्रेलर लॉन्च पर शाद अली और चित्रांगदा सिंह

यह फिल्म भी भाग मिल्खा भाग के आस पास पहुँच सकती थी अगर इसे थोड़ा और फ़िल्मी किया जाता. लेकिन जो भी है ठीक है. खुश तो करती है लेकिन संतुष्ट नहीं कर पाती है. कुछ डायलॉग्स बहुत ही अच्छे है जिनको सुनते ही आपकी हँसी छूट जाती है. जैसे विजय राज का डायलॉग - बेटा बिहारी हैं, थूक मार कर माथा में छेद कर देंगे.

अभिनय

दिलजीत दोसांझ बहुत ही चार्मिंग और अच्छे एक्टर है. यह बात वो साबित भी किये है जब भी उन्हें मौका मिला है. पंजाबी फिल्मों के वो सुपरस्टार है. संदीप के रोल में वो जान डाल दिए है. कुछेक सीन में तो वो इतने डूब चुके है की लगता है सच में ऐसा ही कुछ हुआ होगा. कुछ इमोशनल सीन को इस बेहतरी के साथ दिखाया गया है की बरबस ही आप भी इमोशनल हो जाते है. अंगद बेदी बड़े भाई के रोल में भी खूब जमे है. पिता जी बने सतीश कौशिक बहुत दिनों के बाद परदे पर दिखे है. उनका प्रेजेंस कलेजे को ठंढक देती है. आपको अपने दादाजी की याद आ जाती है.

A still from film Soorma

संदीप के लव इंटरेस्ट के रूप में प्रीतो बनी तापसी हमेशा ही अच्छी लगती है और यहाँ भी लगी है. उनका रोल ज्यादा लम्बा तो नहीं मगर ज़रूरी और आकर्षक है. विजय राज भी अपने पुराने अंदाज में दिखे है. पटना के हॉकी कोच के रोल में जो पटियाला के स्पोर्ट्स क्लब में कोचिंग देता है.

One still from film Soorma

गीत-संगीत

सभी गीत गुलज़ार साहब लिखे है और संगीत है शंकर-एहसान-लॉय का. इश्क़ दी बाज़ियाँ और सूरमा एंथम पहले ही हिट हो चूका है और बाकी के तीन गाने भी अच्छे है. फिल्म में अच्छा लगता हैं. इश्क़ की बाज़ियाँ हम यहाँ आपको सुना दे रहे हैं.

और अंत में; फिल्म को ज़रूर देखि जानी चाहिए. एक पूरी तरह से पारिवारिक फिल्म है. चक दे इंडिया को सपोर्ट करने वाले लोगों इस फिल्म को भी सपोर्ट करनी चाहिए. अच्छा लगता है. संदीप सिंह की पूरी कहानी इनके मूँह से खुद ही सुन लीजिये. . .

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