फिल्म रिव्यू: स्त्री
इस शुक्रवार यानि कि 31 अगस्त 2018 को एक फिल्म रिलीज हुई, फिल्म का नाम है स्त्री. यह फिल्म खास इसीलिए भी है क्योंकि इस फिल्म के लीड एक्टर राजकुमार राव का इसी दिन जन्मदिन होता है. तो ज्यादा भूमिका नहीं बाँधते हुए सीधे फिल्म की रिव्यू पर आते हैं.
कहानी
फिल्म की कहानी सेट है मध्य प्रदेश के चंदेरी नामक गाँव में. इस गाँव में एक परंपरा के अनुसार हर साल चार रातों की एक पूजा का आयोजन होता है. इस पूजा के होने की वजह है गाँव को एक चुड़ैल की बुरी साया से बचाना. इस दौरान कोई भी मर्द रात को घर से बाहर अकेले नहीं निकल सकता है. अगर निकला तो उसपर संकट आ जाता है.
उसी गाँव में तीन दोस्त रहते है, विक्की (राजकुमार राव), बिटटू (अपारशक्ति खुराना) और जना (अभिषेक बनर्जी). तीनों स्कूल के दिनों से दोस्त है और अब सब अपने-अपने धंधे में लगे हुए हैं लेकिन दोस्ती अब भी वही पुरानी वाली है. सब मॉडर्न है तो गाँव की ये सभी बातें उन्हें झूठ लगती है. विक्की की मुलाकात होती है एक लड़की (श्रद्धा कपूर) से, जिससे उसकी दोस्ती हो जाती है. फिर कुछ ऐसा होता है और जना गायब हो जाता है. सबलोगों को लगता है की विक्की की दोस्त ही चुड़ैल है और उसने ही जना को गायब किया है.
फिर एक-एक करके गाँव के कई सारे मर्द गायब होने लग जाते है तब तीनों दोस्त को एक गाँव के ही रूद्र (पंकज त्रिपाठी) का साथ मिलता है और फिर तीनों मिलकर किस तरह से उस गाँव को स्त्री नामक चुड़ैल से बचाता है या फिर बचा पता भी है की नहीं इसी को लेकर फिल्म आगे बढ़ती है.
लेखन - निर्देशन
जिस तरह से फिल्म का कॉन्सेप्ट है, उस हिसाब से फिल्म को बहुत ही अच्छे ढंग से लिखा गया है. एक छोटे से गाँव में रहने वाले किरदारों पर बहुत ध्यान दिया गया है. और यह ज़रूरी भी होता है, अर्बन कैरेक्टर्स को अगर थोड़ा कम भी लिखा जाए तो वह संभल जाता है लेकिन रूरल कैरेक्टर के साथ यह चीज नहीं होती. इस हिसाब से देखा जाए तो फिल्म का स्क्रीनप्ले बहुत ही कसा हुआ है. इस फिल्म के लेखक द्वय राज और डी.के. इससे पहले गो गोवा गोन जैसी आधी दर्जन फ़िल्में लिख चुके है.
वहीं दूसरी तरफ फिल्म के निर्देशक अमर कौशिक ने भी बहुत ही आसानी से चीजों को दर्शकों के सामने परोसा है. फिल्म हॉरर जोन में बनी है तो हॉरर लगती भी है. जो लोग हॉरर फ़िल्में देखते है उनके लिए इसमें डराने के लिए कुछ नया नहीं था, लेकिन हॉरर जोन की फिल्म को चरितार्थ ज़रूर करती है. हाँ, जो दर्शक अभी-अभी नेटफ्लिक्स की घोल देखे हैं, उन्हें यह फिल्म डराने के स्तर पर कुछ खास मज़ा नहीं देगी.
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी की बात किये बिना फिल्म का रिव्यू पूरा नहीं हो सकता. लाईट्स का इस्तेमाल हॉरर फिल्मों के लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी होता है. यहाँ इस बात का ख़ासा ख्याल रखा गया है. अमलेंदु चौधरी का बढ़िया कैमरा एक्शन यहाँ पर आपको देखने को मिलेगा. हेमंती सरकार का एडिटिंग भी कमाल है. फिल्म देखते वक़्त कभी भी निराश नहीं करती है.
एक्टिंग
इस फिल्म की कास्टिंग ऐसी है की कहा नहीं जा सकता किसने सबसे बढ़िया काम किया है. फिर भी राजकुमार राव से बात शुरू करते हैं. राजकुमार को इस जॉनर में देखना किसी ट्रीट से कम नहीं है. दरअसल बात ऐसी है की वो हर जॉनर में फिट एक्टर हैं. हमेशा की तरह कमाल. राज के दोस्त बने अपारशक्ति खुराना और अभिषेक बनर्जी ने उनके दोस्त के रूप में उनका अच्छा साथ दिया है. अपारशक्ति लगातार अच्छा काम कर रहे हैं और उसे काम मिल भी रहा है. अब उसके सोलो आने का दर्शकों को इंतज़ार रहेगा.
छोटे से रोल में पंकज त्रिपाठी अच्छे लगे है और एक कैमियो के रूप में विजय राज ने उस पुरे सीन में समां बांध दिया है. श्रद्धा कपूर के हिस्से में एक्टिंग नहीं आयी है. वो खूबसूरत है तो खूबसूरत दिखी भी है. सोर्स की माने तो इस रोल के लिए पहले प्रियंका चोपड़ा को लिया जाना था. लेकिन वो नहीं आयी सो अच्छा ही हुआ.
गीत - संगीत
फिल्म में इस चीज की कमी खलती है. एक-दो अच्छे गाने का मोमेंट भी था, जहाँ पर गाने की पूरी गुंजाइश थी लेकिन ना होने से मायूसी हाथ लगती है. फिल्म में कुल चार गाने है जिसमें तीन वायु ने लिखा है. सचिन-जिगर का संगीत कम आकर्षित करता है जबकि केतन सोढ़ा का बैकग्राउंड म्यूजिक ज्यादा आकर्षक लगता है. फिल्म में कमरिया. . .आइटम नंबर के लिए दिलबर फेम नोरा फ़तेही को लिया गया है लेकिन यहाँ पर उसका जादू नहीं चल पाया.
और अंत में: अंत में आकर फिल्म एक खूबसूरत मैसेज के साथ बिलकुल सरप्राईज कर जाती है. यकीन मानिए इसकी किसी ने उम्मीद भी नहीं की होगी. हॉरर फिल्म के शौक़ीन है तो यह आपके लिए मस्ट वाच फिल्म है. नहीं तो अगर आप सिर्फ फिल्म भी देखते है तो स्त्री देखने के लिए आपको थियेटर के चक्कर ज़रूर लगाने चाहिए.