फिल्म रिव्यू: गली बॉय
असली में मुंबई और मुंबई की आत्मा वो नहीं है जो हम शूटआउट एट लोखंडवाला और शूटआउट एट वडाला जैसी फिल्मों में देखते हैं। मुंबई की असली आत्मा और यहाँ के लोगों की प्रकृति कैसी है इसके लिए गली बॉय देखना जरूरी सा लगता है। तो चलिए शुरू करते हैं रणवीर सिंह और आलिया भट्ट अभिनीत फिल्म गली बॉय का पोस्टमार्टम।
कहानी क्या है बाप !!
कहानी है सपनों की, वो सपना जो मुराद (रणवीर सिंह) देखता है। रैप लिखने का और फिर रैप को परफॉर्म करने का। मुंबई में एशिया का सबसे बड़ा झोपड़पट्टी एरिया धारावी में रहकर मुराद को लगता है कि वो जो है उससे बेहतर हो सकता है। उसी के सपनों के साथ फिल्म शुरू होती है और खतम भी। एक लड़की भी है, सफीना (आलिया भट्ट)। मुराद और सफीना कॉलेज में साथ में पढ़ते हैं और दोनों आपस में प्यार भी करते है। कुल मिलाकर लाइफ तो सही चल रहा होता है लेकिन फिर बात आ जाती है सपनों की, उसके लिए तकलीफ तो होती है। तो कुल मिलाकर यह तकलीफ का काला बादल और उसको चीर कर बाहर निकलती हुई सुबह की लाली की कहानी है गली बॉय।
लेखन – निर्देशन – मेकिंग
फिल्म को रीमा कागती और जोया अख्तर ने मिलकर लिखा है। जब भी दोनों ने कोलैब किया है कुछ अच्छा ही देखने को मिला है। इस बार भी यह फार्मूला काम करती दिख रही है। फिल्म को बहुत ही करीने से लिखा गया है। मुंबई के स्ट्रीट लाइफस्टाइल को पन्ने पर हूबहू उतारा गया है। राइटिंग में आपको कहीं भी लूपहोल नहीं दिखता है। बहुत ही ज्यादा गौर से देखने पर जब कहीं कुछ दिख जाता है तब भी आप अपना मुँह बंद ही रखना चाहते हैं।
जोया अख्तर एक बहुत ही अलग किस्म की डायरेक्टर है। इनकी फिल्में अलहदा होती है। डायरेक्टर के रूप में वो दर्शकों के भीतर घुस जाती है। जिंदगी ना मिलेगी दोबारा और दिल धड़कने दो में हम यह सब देख चुके हैं। यहाँ भी कहानी को कहने का तरीका वही रखा गया है। फिल्म को मेकिंग के स्तर पर बेहतरीन बताना बेहतरीन शब्द की तारीफ होगी। कुछ सीन इतने खूबसूरत बन पड़े हैं की आप बस उस सीन में खो जाना चाहते हैं। खासकर वो सीन जब मुराद अपनी रोती हुई माँ को गले लगाता है।
एक्टिंग कैसा है रे भाई !!
रणवीर सिंह निहायत ही एक अच्छे एक्टर हैं। पिछले कुछ समय से वो लगातार वारियर के किरदार को निभाते आ रहे थे। लेकिन इस फिल्म में उनका ट्रांसफॉर्मेशन देखते ही बनता है। एक चैलेंजिंग किरदार को आसानी को परदे पाए पेश करते हैं। जहाँ-जहाँ आँखों से एक्टिंग करने की जरूरत पड़ी है वहाँ की गयी है।आलिया भट्ट के लिए ज्यादा कुछ था नहीं, वो सिर्फ एक लव इंटरेस्ट बन कर रह गयी है।
बाकि के कलाकार में सिद्धांत चतुर्वेदी इम्प्रेस करते हैं। सिद्धांत को अगर आप नए एक्टर मानते हैं तो एक मिनट रुकिए, वो अमेजॉन प्राइम पर इनसाइड एज और एक डिजिटल सीरीज लाइफ सही है में दिख चुके हैं। विजय राज रणवीर के पिता के रोल में खूब जंचे हैं। उनके एक्टिंग करने का लेवल अब ट्रेडमार्क बन चूका है। साथ में कल्कि कोचलिन, अमृता सुभाष और विजय वर्मा को भी रखा गया है। कास्टिंग डायरेक्टर ने कहीं भी चूक नहीं किया है।
गीत – संगीत
अगर सही से देखा जाए तो पोएट्री और मोनोलॉग्स को मिलाकर फिल्म में कुछ अठारह गाने है। जिसको अलग-अलग म्यूजिशियंस ने बनाया है। इसको अरेंज किया है अंकित तिवारी ने। फिल्म के पांचों सिंगल्स पहले से ही हिट है। जावेद अख्तर का लिखा दूरी. . . गीत बार-बार देखने और सुनने का मन करता है।
और अंत में: अगर आप अच्छी और संवेदना से भरी हुई फिल्में देखना पसंद करते हैं तो यह फिल्म आपका वीकेंड बना सकता है।
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