फिल्म रिव्यू: ओमेर्टा
हंसल मेहता ने जब अपनी इस फिल्म का पोस्टर रिलीज किया था तभी पता लग गया था कि यह फिल्म पावरफुल होने वाली है. इस फिल्म के साथ ही इसका एक टैगलाइन भी था: अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ टेररिज्म (आतंकवाद का संक्षिप्त इतिहास). अब जब फिल्म रिलीज हो चुकी है तब इसका टैगलाइन है: कोड ऑफ़ साइलेंस. पाकिस्तानी आतंकवादी अहमद ओमर सईद शेख के जीवन पर आधारित है यह फिल्म. ओमर वही आतंकवादी है जिसे एक अमेरिकन पत्रकार के हत्या के जुर्म में फाँसी की सजा मिली है. वह अभी हैदराबाद, पाकिस्तान के जेल में कैद है.
ओमेर्टा एक इटैलिक शब्द है. मतलब इटली से आया हुआ शब्द. इसका शाब्दिक अर्थ होता है अपराधियों द्वारा खाई गई एक ऐसी कसम, जो उन्हें पुलिस या दुश्मनों को कोई भी ख़ुफ़िया जानकारी नहीं देने देती है.
कहानी
कहानी में कुछ भी फ़िल्मी नहीं है. पिछले साल आयी अर्जुन रामपाल की फिल्म डैडी में जो सावधानी बरती गयी थी, यहाँ भी ऐसी ही कुछ सावधानी बरती गयी है. फ़िल्मी ताम-झाम से कहानी के ट्रीटमेंट को दूर रखा गया है. ओमर पाकिस्तानी मूल का एक युवक है. वह लन्दन में रहता है. वह वहाँ की लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई कर रहा है. इस बीच बोस्निया में युद्ध छिड़ जाता है जिसमें मरने वाले में मुसलमानों की संख्या काफी ज्यादा रहती है. महिलाएं और बच्चे भी. उसी दौरान कॉलेज के ही कुछ मुस्लिम गुट के संपर्क में वो आता है. वहाँ वह बोस्निया जाकर पीड़ित लोगों के लिए खाना और छत जैसे बुनियादी ज़रूरत को पूरी करने में मदद करना कहता है, लेकिन वो लोग उनके दिमाग में धर्म और इस्लाम के नाम पर जिहाद भर देता है.
अब जिहाद ओमर के दिमाग पर इस कदर हावी हो गया है की वो अपनी पढाई बीच में ही छोड़ देता है. पहले पाकिस्तान जाता है. फिर वहाँ से ट्रेनिंग लेने के लिए अफगानिस्तान जाता है. आतंकी संगठन उसके पढ़े-लिखे होने का पूरा फायदा उठाता है. उसे आईएसआई के संपर्क में लाता है. और फिर ओमर इंडिया आता है. अपने गंदे मंसूबों को लेकर. इसमें वो काफी हद तक कामयाब भी होता है. फिर वो गिरफ्तार हो जाता है. भारत से उसकी रिहाई इंडियन एयरलाइन्स के हाईजैक के एवज में साल १९९९ में होती है. साथ में आतंकी मसूद अज़हर और एक और मिलिटेंट होता है. वाहन से फिर उसके जेल जाए तक की कहानी को परदे पर दिखाया गया है.
एक्टिंग
राजकुमार राव और हंसल मेहता की ये चौथी जुगलबंदी है. पहले का तीन मास्टरपीस है. अब इस लिस्ट में चौथा भी आ गया है. राजकुमार राव ने इस किरदार को परदे पर जीने के लिए बहुत मेहनत किया था. फिल्म में एक सीन है जिसमें ओमर को पुलिस कस्टडी में लेती है. उसे उल्टा लटका दिया जाता है. फिर ओमर को पीटा जाना था. इसके लिए राजकुमार ने पुलिस का रोल कर रहे एक्टर्स से कहा कि उन्हें सच में उतनी ही निर्ममता से पीटे. उन्होंने कहा कि वे चाहते थे सीन बिलकुल असली लगे. वे इस दर्द को महसूस करना चाहते थे क्योंकि इसी दर्द की वजह से ओमर मानसिक रूप से बहुत ताकतवर महसूस कर पाया. एक ईमानदार कोशिश का बहुत अच्छा फल मिला है राजकुमार राव को. बहुत ही उम्दा अभिनय. राजकुमार राव के अभिनय की फेहरिस्त लम्बी होती जा रही है. आप गिनते रहिए.
यह एक पूरी तरह से क्राइम फिल्म है. इसके माध्यम से निर्देशक कोई मैसेज या मोटिवेशन नहीं दे रहे है. बस एक जर्नी को दिखा रहे है. कैसे एक आतंकवाद का जन्म होता है. रियलिस्टिक फिल्म को देखना आपको पसंद है तो यह फिल्म आपके लिए है. बॉलीवुड मसाला इसमें नहीं मिलेगा आपको.
जाते-जाते आतंकी अहमद ओमर सईद शेख के बारे में कुछ बातें:
- अहमद ओमर सईद शेख का जन्म 23 दिसंबर 1973 को लंदन में हुआ था.
- २० ऑक्टोबर 1994 को वह चार पश्चिमी देशों के पर्यटक को किडनैप करने के जुर्म में दिल्ली में गिरफ्तार हुआ था.
- 24 दिसंबर 1999 को इंडियन एरलाइन्स फ्लाइट (IC- 814) को हाईजैक करके उसको छुड़ाया गया था. उसके साथ आतंकी मसूद अज़हर और एक अन्य आतंकी था.
- 1 फ़रवरी 2002 को ओमर ने वाल स्ट्रीट जर्नल के पत्रकार डैनियल पर्ल की कराची में हत्या कर दी.
- डैनियल पर्ल अमेरिकन था.
- इसी हत्या के जुर्म में वो पाकिस्तान के हैदराबाद जेल में बंद है.
- उसको फाँसी की सजा मिली हुई है.
ऐसे ही बेजोड़ रिव्यू के अपडेट्स के लिए आप हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो कर सकते है.