zero film poster

फिल्म रिव्यू: ज़ीरो

फिल्म ज़ीरो निर्देशक आनंद एल. राय और शाहरुख़ खान, दोनों की एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट थी. आनंद इस बात से खुश थे कि उन्हें शाहरुख़ खान के साथ काम करने का मौका मिल रहा है और शाहरुख़ खान इस बात से कि शायद इस फिल्म से उनकी गाड़ी भी पटरी पर लौट आये.  आनंद एल. राय ने इस फिल्म के प्रोमोशन करते वक्त एक इंटरव्यू में कहा था कि इंडियन फिल्म में मैंने एक इंडियन सुपरहीरो को खोजा है जो ज़ीरो फिल्म का लीड बौआ सिंह है. क्योंकि कृष बहुत हद तक हॉलीवुड के सुपरहीरो लगते हैं. अपने इस स्टेटमेंट को वह कितना जस्टिफाय करते हैं, यह हम आपको आगे बता रहे हैं फुल डिटेल में फिर आप ही तय करें कि आनंद एल. राय कितने सही थे और कितने गलत.

कहानी क्या है?

कहानी है मेरठ के रहने वाले एक इंसान की जिसका नाम है बौआ सिंह (शाहरुख़ खान). ३८ साल के बौआ सिंह का शारीरिक कद छोटा रह गया है जिसे आम तौर पर लोग बौना बुलाते हैं. बौआ सिंह वैसे आदमी मज़ेदार और ज़िंदादिल है. पुरे मेरठ शहर का चहेता और यारों का यार. बौआ की शादी नहीं हो रही है तो वह मैट्रीमोनी वाले पांडे (बृजेन्द्र काला) को पटाकर एक लड़की सेट करता है आफिया (अनुष्का शर्मा). अब समस्या ये है कि आफिया व्हीलचेयर पर बैठी लड़की है और वो एक साइंटिस्ट है.

शाहरुख़ खान की पिछले चार सालों में आयी सबसे बड़ी डिजास्टर है फिल्म ज़ीरो.

दोनों में प्यार हो जाता है और फिर शादी वाले दिन बौआ घर से भाग जाता है क्योंकि उसे एक डांस कॉम्पिटिशन में भाग लेने का मौका मिल जाता है जहाँ जीतने पर उसकी मुलाकात बॉलीवुड की सुपरस्टार बबिता कुमारी (कैटरिना कैफ) से होगी. इसी बीच कहानी का पता ही नहीं चल पता है कि क्या हो रहा है. आफिया फिर एक बार बौआ से मिलती है तब आफिया उसे एक बन्दर कि जगह मंगल ग्रह पर भेज देती है. मेरा यकीन मानिये, यही कहानी है और कसम से मैंने आपको कुछ भी स्पॉइलर नहीं बताया. अरे मेरे भाई. . .बताऊंगा कहाँ से जब है ही नहीं.

लेखननिर्देशनमेकिंग

यकीन नहीं होता कि इस फिल्म को उसी ने लिखा है जिसने तनु वेड्स मनु सीरीज और रांझणा जैसी फिल्मों को लिखा है. जी हाँ, हिमांशु शर्मा और आनंद राय की कलमें को यहाँ जंग खा गयी है. समझ नहीं आता की इस कहानी में क्या अपीलिंग लगी उन दोनों को. लिखावट के स्तर पर फिल्म को कचरे के पेटी में डाल देना चाहिए. कम से कम स्वच्छ भारत अभियान तो आगे बढ़ेगा.

जब फिल्म को लिखा ही नहीं गया है तो निर्देशित क्या होगा. .!! इससे अच्छा तो यह रहेगा कि इस फिल्म के मेकिंग वीडियो को ही यूट्यूब पर रिलीज कर दिया जाए. पब्लिक एक्चुअली में उसे ज्यादा एन्जॉय करेगी.

लेखन हिमांशु शर्मा और निर्देशक आनंद एल. राय के साथ शाहरुख़ खान

फिल्म के मेकिंग में ऐसे ही पैसा उड़ाया गया है जैसे रेस-3 में. कहीं से भी फिल्म सेंसिबल नहीं लगी है. ऊपर से अनुष्का को ये लोग स्टीफन हॉकिंग्स बनाना चाहते थे, लेकिन वो क्या बन गयी उसे शायद खुद नहीं मालुम रहा होगा. और हाँ, जहाँ पर शाहरुख़ खान हो वहाँ लोकेशन तो रहेगा ही लेकिन वो दर्शक के किसी काम की नहीं है फिल्म में.अगर शुरूआती के आधे घंटे को छोड़ दें तो पौने तीन घंटे की यह फिल्म पूरी तरह से टॉर्चर है. ये दोनों खान को बुलाकर बॉलीवुड वाले पब्लिक को ठीक वैसे ही बेवकूफ बना रही है जैसे अरविन्द केजरीवाल दिल्ली वालों को.

एक्टिंग

शाहरुख़ ने जो किया उसमें वो अच्छे लगे हैं. दोस्त बने जीशान अय्यूब दोस्त ही लगे हैं हमेशा की तरह. स्टीफन हॉकिंग्स को ट्रिब्यूट देने के जुर्म में कहीं अमेरिका वाले अनुष्का को अरेस्ट ना कर लें और रही बात कैटरिना की तो वो तो हिरोईन हैं ही. बमुश्किल दो से तीन सीन में दिखी हैं वो.

गीतसंगीत

इरशाद कामिल और अजय-अतुल की जोड़ी भी कुछ खास कमाल नहीं कर सकी और फिल्म जहाँ एक और म्यूजिकल बन सकती थी वहाँ बस एक टॉर्चर बन के रह गयी हैं. मेरे नाम तू. . .और इश्कबाज़ी. . .पर अगर आप झूम रहे हैं तो अच्छी बात हैं. बस यही दो गाने हैं जो नींद से जगाने का काम भी करती हैं थियेटर में.

अपने जियरा को यहाँ पर आप चकनाचूर कर लीजिये. . .

और अंत में: साल बीत रहा हैं, सबकुछ अच्छा जाए तो बेहतर हैं. किंग खान के फैन तो इसे छोड़ने वाले हैं नहीं, लेकिन जो नहीं हैं वो रज़ाई में छुपकर ठंढ का मज़ा लें. मेरे ओर से तो स्ट्रॉन्ग्ली ना हैं. मैंने अपना पैसा बर्बाद कर दिया हैं, आप अपना बचा लीजिये.

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