कबीर सिंह: एक डॉक्टर की प्रेम कहानी को लोगों ने हिंसकऔरअसामाजिक बता दिया
21 जून को एक फिल्म रिलीज हुई। ख़ालिस बॉलीवुड देसी मसाला फिल्म। फिल्म का नाम है – कबीर सिंह। यह फिल्म साल 2018 में आयी तेलुगु फिल्म अर्जुन रेड्डी का रीमेक है। जहाँ कबीर सिंह में मुख्य अभिनेता शाहिद कपूर हैं वहीं ओरिजिनल तेलुगु फिल्म में इस किरदार को विजय डेवेराकोंडा ने निभाया है। फिल्म बनी, रिलीज हुई और अब बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाये हुआ है। लगभग दो सौ करोड़ की कमाई कर चुकने वाला कबीर सिंह को अभी बॉक्स ऑफिस पर नहीं रोका जा सकता है, क्योंकि आने वाले सप्ताह में कोई भी बड़ी फिल्म नहीं आ रही है। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि जब फिल्म इतनी अच्छी है और झाम फाड़ कमाई भी कर रही है तो फिर ये विवाद किस बात का है। बस यही बताने के लिए तो हम आये हैं आपके पास। तो चलिए विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं।
पहले फिल्म के बारे में थोड़ा सा जान लेते हैं
फिकर मत कीजिये, यहाँ आपको कुछ भी स्पॉइलर नहीं मिलेगा। फिल्म शुरू होती है दिल्ली के एक मेडिकल कॉलेज “देल्ही इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस” से। यहाँ कबीर फाइनल ईयर का एक ब्राइट स्टूडेंट है और साथ ही कॉलेज के फूटबाल टीम का गोलकीपर भी तो भाईसाहब का स्वैग भी अलग लेवल पर ही है। कॉलेज कैम्पस के अंदर उनकी चलती है, कहने का मतलब यह हुआ कि कैम्पस के अंदर ऐसा कोई है ही नहीं जो कबीर सिंह के बातों को काट सके। फिर उसे एक फर्स्ट ईयर कि लड़की से प्यार हो जाता है और लड़की भी प्यार करने लगती है। कहानी आगे बढ़ती है और फिर लड़की की शादी हो जाती है किसी दूसरे से।
कबीर सिंह अपने प्यार को हासिल ना कर पाने कि वजह से अल्कोहलिक हो जाता है और नशे में डूब जाता है। लेकिन इतना सब होने के वावजूद भी वो अपने प्रोफेशन के साथ खिलवाड़ नहीं करता है। वो अभी भी अपने हॉस्पिटल का बेस्ट सर्जन है जिसके नाम पर तीन सौ से ज्यादा सफल सर्जरी है। और यह किसी भी डॉक्टर के लिए एक अचीवमेंट है। फिल्म में अभी बहुत सी कहानी बाकी है लेकिन अब आगे बताना एक स्पॉइलर की तरह हो जाएगा। और वैसे भी यहाँ पर हम फिल्म नहीं बल्कि फिल्म के किरदार कबीर सिंह की बात करने आये हैं।
सबकुछ तो नार्मल है, फिर समस्या कहाँ है?
कुछ ऑनलाइन सो कॉल्ड फेमिनिस्टों की माने तो फिल्म में कई सीन ऐसे हैं जो औरतों के प्रति हिंसा को बढ़ावा देते हैं। यहां तक एक सीन में तो रेप एटेम्पट को भी दिखाया गया है। ये सच है लेकिन उस तरह से सच नहीं है जिस तरह से उसे बताया जा रहा है। इसकी चर्चा हम फिल्म के ही एक सीन से कर देते हैं। वह सीन कुछ इस तरह का है:
जब कबीर अपने प्यार को भुला नहीं पाता है और हमेशा नशे में ही डूबा हुआ रहता है तब उसका दोस्त शिवा बहुत ही गुस्से में कहता है कि मैं तेरे इस हरकत से परेशान हो गया हूँ। इसपर कबीर अपने दोस्त को बोलता है कि मान लो अगर तुम्हारी गर्लफ्रेंड को पीरियड हुआ हो तो तुम उसको प्यार से हैंडल करोगे, चॉकलेट्स दोगे, उसको हमेशा हैप्पी मूड में रखोगे या फिर तुम उसको ये कहके छोड़ दोगे कि यह तो तुम्हारी किस्मत है अब भुगतो खुद ही। इसमें मैं क्या कर सकता हूँ।
एक्जैक्टली सेम-टू-सेम इस सीन में ही इस फिल्म के पुरे विवाद को समराइज कर दिया गया है। इस फिल्म में जहाँ रेप अटेम्प्ट करने वाली सीन कि बात होती है वहाँ का सीन कुछ ऐसा है कि लड़का अपनी पार्टनर से मिलने जाता है और उसका सेक्स करने का मन हो जाता है। लड़की एग्री नहीं करती है और कबीर फिर उसे चाकू की नोक पर कपड़े उतारने को बोलता है। लेकिन वो फिर भी कुछ नहीं करता है और वापस आ जाता है। यह इस किरदार की गहराई को दिखाने का एक तरीका मात्र था जिसे निर्देशक ने इस्तेमाल किया। इस सीन से कहीं कुछ भी साबित नहीं हो जाता कि यह फिल्म महिलाओं के लिए अच्छी नहीं है और हिंसक है। और वैसे भी फिल्म में इन सब चीजों को इस करीने से दिखाया गया है कि आपको कुछ भी अलग सा महसूस नहीं होगा। आप फिल्म के फ्लो में बढ़ते ही चले जाएंगे। यह बिलकुल ऐसा ही है कि राज कपूर एक अधनंगी लड़की को परदे पर नहाते हुए दिखा रहे हैं बावजूद इसके आप लड़की नहीं, गाने को इंजॉय कर रहे होते हैं।
कबीर सिंह फिल्म का हीरो होते हुए भी सबसे नेगेटिव कैरेक्टर है। और यह तो बॉलीवुड का प्रचन ही है। फिल्म डॉन से लेकर धूम तक में यही तो दिखाया गया है। फिल्म को A सर्टिफिकेट दिया गया है। मतलब यह हुआ कि इस फिल्म को मैच्योर लोग ही देख सकते हैं। लेकिन जब फिल्म नेटफ्लिक्स पर आ जाएगी तो ऐसा करना संभव हो पाएगा क्या. .?? जिस तरह से फिल्म में सेक्स सीन और हिंसा को लेकर बातें चल रही थी ऐसा तो कुछ है ही नहीं। फिल्म में बहुत सारी गालियों को बीप और गाली वाले फेसियल एक्सप्रेशन को बिना आवाज के रखा गया है। मानो विराट कोहली मैदान में कुछ और नहीं बल्कि बेन स्टोक्स बोल रहा है।
इस फिल्म से डॉक्टर्स को क्या दिक्कत है?
मुंबई के एक डॉक्टर ने इस फिल्म को दिखाने से रोकने के लिए कहा है। उस जनाब का मानना है कि इस फिल्म में पूरी डॉक्टर कम्युनिटी को गलत तरीके से दिखाया गया है। उनकी लिखित शिकायत की माने तो शाहिद फिल्म में एक सर्जन बने हैं। और इस सर्जन ने अपनी अधिकतर सर्जरी ड्रग्स या शराब के नशे में की है। इन जनाब का मानना है कि डॉक्टरों को ऐसे दिखाने से उनकी इस पूरे प्रोफेशन की इमेज बिगड़ जाएगी और पब्लिक का भरोसा उनसे खत्म हो जाएगा।
अच्छा चलिए इस बात को मान लेते हैं लेकिन हमको ये बताइये की हर फिल्म में नेता और पुलिस की खराब छवि को दिखाने के बावजूद हमारा इनलोगों से भरोसा उठा क्या? लगभग हर फिल्म में वकील और जज को बिकते हुए देखकर हमारा न्यायिक व्यवस्था पर से भरोसा उठा क्या? नहीं उठा ना. .?? तो भाई साहब इतना लोड काहे का।
फिल्म मस्त बनी है। लेकिन जो लोग साऊथ वाली अर्जुन रेड्डी देखकर बैठे हैं उनको मजा नहीं आएगा। ठीक वैसे ही जैसे सैराट देखने वालों को धड़क देखने में मजा नहीं आया था। तो जाइये और फिल्म को एन्जॉय कीजिये।
आपको अपना समझ के एक सलाह भी दे देते है – परिवार नहीं, दोस्तों के साथ देखने वाली फिल्म है ये।
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