उरी फिल्म देखनी क्यों जरूरी है हर भारतीय के लिए ?
बीते 11 जनवरी 2019 को एक फिल्म आयी है उरी – द सर्जिकल स्ट्राईक. अभी देश का माहौल ऐसा कुछ है कि लोग हर चीज को राजनीती से जोड़कर देखने लग जाता है. बात चाहे शुरू कहीं से भी हो, खतम नरेंद्र मोदी पर ही होता है. ऐसा इससे पहले या फिर पिछली बार कब हुआ था कि देश कि सभी राजनैतिक पार्टियाँ किसी एक पार्टी के पीछे मानो ऐसे पड़ी हो, जैसे मोदी और अमित शाह ने सबकी भैंस खोल ली हो. वर्तमान की विपक्षी पार्टियों का कहना है कि उरी और द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर जैसी फिल्म एनडीए गवर्नमेंट की चाल है कांग्रेस को निचा दिखाने की. अरे मेरे भाई, इसमें चाल जैसी क्या बात आ जाती है. उरी एक सर्जिकल स्ट्राइक था, जिसके द्वारा पड़ोसी देश में पनप रहे आतंकवाद और फियादीन को मुहंतोड़ जवाब दिया गया. लेकिन कुछ महानुभाव को इसका भी सबूत चाहिए था. लेकिन जो तथाकथित “अच्छी राजनीति” करने आया था, वो तो राजनीती के गटर का सबसे गन्दा कीड़ा निकला. कम से कम अब तक तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है. लोकपाल से नाम से दौड़ता हुआ घोड़ा कब मोदी विरोधी हो गया, पता ही नहीं चला. जिनके खिलाफ लड़ा और जीता उनको तो भूल ही गए महाशय.
क्यों अभी के माहौल में हर बात का आरोप सत्तारूढ़ पार्टी पर लगाया जा रहा है? पार्टी की बात तो छोड़िये, सिर्फ एक या दो राजनेता को टारगेट किया जा रहा है. ऐसा क्यों है यह तो वही लोग जाने. लेकिन एक फैक्ट तो यह भी है कि बीते साढ़े चार में एक भी स्कैम सामने नहीं आया है. जो लोग राफेल पर अपनी छाती पीट रहे हैं, ये वही लोग हैं जिसने इतने बड़े डील या फिर सरकारी काम को बिना घोटाले के होते हुए नहीं देखा है. जीएसटी और नोटबंदी से पहले भारत कि आधी आबादी निरक्षर थी, लेकिन जैसे ही जीएसटी और नोटबंदी आया हर घर से एक इकोनॉमिस्ट पैदा हो गया. ठीक वैसे ही जैसे फिल्म मोहनजोदड़ो के विवाद के बाद निर्देशक आशुतोष गोवारिकर ने कहा था कि हमारे फिल्म के आते ही हर घर में एक इतिहासकार पैदा हो गया था.
चलिए अब मेन टॉपिक पर आते हैं
आपको थोड़ा अतीत में में लेकर चलते हैं. साल 1964 में इंडो-चाइना वार पर आधारित फिल्म “हकीकत” रिलीज हुई और फिर साल 1973 में भारत-पाक युद्ध पर आधारित फिल्म “हिन्दुस्तान की कसम”. तब तो ऐसी कोई हंगामें वाली बात नहीं हुई थी, लेकिन अब ये क्यों हो रहा है, यह समझ से बाहर है. उरी – द सर्जिकल स्ट्राइक एक विशुद्ध मसाला फिल्म है. एक मनोरंजक फिल्म जितना कुछ दे सकता है, वो सब इस फिल्म से दर्शकों को मिल जाती है और यही कारण भी है कि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर काफी अच्छी बिजनेस भी कर रही है. बिजनेस इतना अच्छा कि यह इस साल यानी कि 2019 की पहली सौ करोड़ कमाने वाली फिल्म बन गयी.
जिस तरह से किसी अन्य घटनाओं से प्रेरित कई फिल्में बनती है और अच्छी कमाई भी करती है ठीक उसी तरह यह फिल्म भी एक घटना से प्रेरित है. मसलन आरुषि मर्डर केस, जेसिका लाल हत्याकांड, निठारी काण्ड जैसे घटनाओं पर आधारित फिल्में बनी है और वह कामयाब भी हुई है. उरी – द सर्जिकल स्ट्राइक भी एक फिल्म मात्र है, जिसमें भारतीय जवानों के बहादुरी और साहस का बस एक नमूना मात्र दिखाया गया है. इस फिल्म को किसी पोलिटिकल एजेंडे के रूप में नहीं बनाया और रिलीज किया गया है. बल्कि फिल्म के लेखक और निर्देशक आदित्य धर को यह स्टोरी अपीलिंग लगी और लगा कि ऐसे विषयों को लोग पसंद कर सकते है अगर इसको सही से बनाया जाए. अगर बात फिल्म के प्रोड्यूसर रोनी स्क्रूवाला की बात करें तो वो एक विशुद्ध फिल्ममेकर हैं, जिसे अबतक किसीने भी किसी बाहरी मुद्दे पर अपनी राय देते नहीं देखा या सुना.
यह फिल्म देखनी ज़रूरी क्यों है?
जैसा की मैंने पहले ही कहा कि यह एक फिल्म मात्र है जिसे देखी जानी चाहिए भरपूर मनोरंजन और इंडियन आर्मी के साहस और बलिदान के लिए. जेपी दत्ता साहब के बाद किसी ने भी बॉलीवुड में वार फिल्म बनाने की हिम्मत नहीं की. जिसने थोड़ी बहुत की भी उसे निराशा ही हाथ लगी. उदहारण के तौर पर साल 2007 में रिलीज हुई मनोज बाजपेयी और रवि किशन स्टारर फिल्म “1971” को लिया जा सकता है.
यह वार फिल्म तो नहीं थी लेकिन इंडियन आर्मी के साहस से जरूर हमारा परिचय करवाती थी. वैसे तो इस फिल्म को बेस्ट हिंदी फीचर फिल्म का नेशनल अवार्ड भी मिल चुका है, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म फ्लॉप साबित हुई थी. अगर ऐसा ही रहा तो कोई भी फिल्म निर्माता – निर्देशक कभी भी इस तरह की स्टोरी को नहीं कहना चाहेगा. तो इसीलिए भी ज़रूरी है कि उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक को देखा जाए और सराहा जाए. क्योंकि यह फिल्म डिजर्व करती है.
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