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सुमित्रानंदन पंत जी की कविता 'आते कैसे सूने पल'

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दिल्ली से कुछ 500 किमी दूर उत्तराखंड के अल्मोड़ा (अब बागेश्वर) जिले के कौसानी नामक गाँव में 20 मई 1900 को सुमित्रानंदन पंत का जन्म हुआ था. जन्म के छह घंटे बाद ही उनकी माँ का निधन हो गया. उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया. उनका नाम गोसाईं दत्त रखा गया. वह गंगादत्त पंत की आठवीं संतान थे. 1990 में शिक्षा प्राप्त करने गवर्नमेंट हाईस्कूल अल्मोड़ा गये. यहीं उन्होंने अपना नाम गोसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रनंदन पंत रख लिया.

1998 में मँझले भाई के साथ काशी गये और क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे. वहाँ से हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण कर म्योर कालेज में पढ़ने के लिए इलाहाबाद चले गए. 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के संपर्क में आए. महात्मा गाँधी के सान्निध्य में उन्हें आत्मा के प्रकाश का अनुभव हुआ.

1958 में 'युगवाणी' से 'वाणी' काव्य संग्रहों की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन 'चिदम्बरा' प्रकाशित हुआ, जिसपर 1968 में उन्हें 'भारतीय ज्ञानपीठ' पुरस्कार प्राप्त हुआ. 1960 में 'कला और बूढ़ा चाँद' काव्य संग्रह के लिए 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' प्राप्त हुआ. 1961 में 'पद्मभूषण' की उपाधि से विभूषित हुये. वह जीवन-पर्यन्त रचनारत रहे. अविवाहित पंत जी के ह्रदय में नारी और प्रकृति के प्रति आजीवन सौन्दर्यपरक भावना रही. उनकी मृत्यु 21 दिसम्बर 1977 को हुई. हिंदी साहित्य पंत जी के रचनाओं से हमेशा सुशोभित होता रहेगा. आइए यहाँ आज उनके रचित कविता आते कैसे सूने पल पढ़ते है.

आते कैसे सूने पल

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आते कैसे सूने पल
जीवन में ये सूने पल!
जब लगता सब विशृंखल,
तृण, तरु, पृथ्वी, नभ-मंडल।

खो देती उर की वीणा
झंकार मधुर जीवन की,
बस साँसों के तारों में

सोती स्मृति सूनेपन की।
बह जाता बहने का सुख,
लहरों का कलरव, नर्तन,
बढ़ने की अति-इच्छा में
जाता जीवन से जीवन।

आत्मा है सरिता के भी,
जिससे सरिता है सरिता;
जल जल है, लहर लहर रे,
गति गति, सृति सृति चिर-भरिता।

क्या यह जीवन? सागर में
जल-भार मुखर भर देना!
कुसुमित-पुलिनों की क्रीड़ा-
ब्रीड़ा से तनिक ने लेना?

सागर-संगम में है सुख,
जीवन की गति में भी लय;
मेरे क्षण-क्षण के लघु-कण
जीवन-लय से हों मधुमय।

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