जानिए उस महिला को जिसने भारत-नेपाल रिश्ते को जहरीला बना दिया है।
नेपाल और भारत के रिश्ते हमेशा से ऐसे नहीं थे। भारतीय और नेपाली नागरिक को कभी भी एक दूसरे के देश में जाने पर कोई वीजा-पासपोर्ट नहीं माँगा गया। द्वार दशकों से ऐसे ही खुले थे। इनफैक्ट जब नेपाल में राजशाही था तब तो बॉर्डर एरिया के लोगों को पता ही नहीं चलता था कि हम कब इंडिया से नेपाल और नेपाल से इंडिया आ गए। जबकि अब परिस्थिति कुछ और है। समय बदल चूका है। बिहार राज्य के सीतामढ़ी जिले से सटे नेपाल बॉर्डर पर कुछ दिनों पहले गोलाबारी भी हुई थी जिसमें तीन भारतीय नागरिक की मौत हो गयी थी। कुछ मिडिया रिपोर्ट्स की माने तो वहां पर अब वायर फेंसिंग का काम भी शुरू होने वाला है। स्थिति इतनी भयावह हो जाएगी ,यह किसने सोचा था। लेकिन यह सब हो रहा है। फरवरी 2018 में जब से केपी शर्मा ओली नेपाल के प्रधानमंत्री बने है तभी से भारत-नेपाल के रिश्तों में खटास बढ़ गयी है। इन खटास के पीछे एक महिला का नाम बहुत जोर-शोर से सामने आ रहा है और जिसे नकारा भी नहीं जा सकता है। वो महिला है हाउ यांकी। हाउ यांकी साल 2018 से ही नेपाल में चीनी राजदूत है। क्या केपी शर्मा ओली हनी ट्रैप में फँस चुके हैं? और क्या रही है इस महिला का इतिहास, आइए जानते हैं आज के इस कहानी में।
हाउ यांकी (Hou Yanqi) है कौन ?
मार्च 1970 में चीन के शांजी प्रान्त में जन्मीं हाउ यांकी पर्किंग यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट रही है। साल 1996 से वो चीन के विदेश मंत्रालय में कार्यरत हैं। चीन के विदेश मंत्रालय में वो साऊथ एशियन अफेयर्स की डेप्युटी डायरेक्टर जेनरल रह चुकी है। वो चीनी महकमे में साऊथ एशिया की सबसे अच्छी जानकार मानी जाती है। ये थी हाउ यांकी के बारे में कुछ बेसिक जानकारी।
चलिए अब वापस नेपाल पर चलते हैं।
हाल ही में नेपाल ने अपने पार्लियामेंट में अपना न्य नक्शा पास करवाया। इस नक्शा में उत्तराखंड के तीन जगह कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख को अपना हिस्सा बताया है। हालाँकि यह क्षेत्र कभी भी डिस्प्यूटेड नहीं रहा और भारत का इसपर एकाधिकार रहा है। जानकारों का मानना है कि नेपाल के नए विवादित नक्शे के पीछे चीन का हाथ है। खासकर नेपाल में चीन की राजदूत होऊ यांकी ने इसके लिए नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली को उकसाया है। इसके बाद ही ओली ने ऐसा नक्शा तैयार किया। इसे भारत के खिलाफ एक बड़े कदम की तरह देखा जा रहा है, जबकि नेपाल के साथ भारत के रिश्ते हमेशा से ही अच्छे रहे हैं।
हाउ यांकी (Hou Yanqi) का इतिहास भारत के लिए सही नहीं रहा है।
यांकी ने चीनी राजदूत के तौर पर पाकिस्तान में भी तीन साल बिताए। यांकी के कूटनीतिक दिमाग का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एकदम अलग संस्कृति वाले देश में मेलजोल बढ़ाने के लिए इस राजदूत ने उर्दू भाषा सीखी और राजनेताओं से मेलजोल के मौके पर फ्लूएंट उर्दू बोला करती थीं ताकि उन्हीं में से एक लगें। इंडियन इंटेलिजेंस एजेंसियों की मानें तो पाकिस्तान में राजदूत रहते हुए यांकी ने कई पाकिस्तानी नीतियों के लिए काम किया, जिसका असर कहीं ना कहीं भारत-पाक रिश्ते पर हुआ। पाकिस्तान जैसे जटिल देश में तीन साल काम करने के बाद यांकी को नेपाल भेजा गया। इसके पीछे एक राजदूत के तौर पर यांकी की सफलता ही मानी जाती है। इससे पहले भारत और नेपाल के बीच संबंध में कभी भी कूटनीतिक टकराव की नौबत नहीं आई थी। अब माना जा रहा है कि नेपाल के पीएम के विवादित नक्शा बनाने के पीछे यांकी का ही हाथ है। उन्होंने ही पीएम ओली और नेपाल की संसद को इसके लिए तैयार किया।
पहुँच अंदर तक है
जानकारी के मुताबिक यांकी का पीएम ओली के दफ्तर और यहां तक कि निवास पर भी लगातार आना-जाना था। इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस राजदूत की नेपाल की स्थानीय राजनीति में पकड़ मजबूत है। साथ ही नेपाल की सत्तासीन पार्टी का वो प्रतिनिधिमंडल, जो नक्शा बदलने के लिए संविधान संशोधन विधेयक बना रहा था, यांकी लगातार उनके संपर्क में भी रहीं। लिपुलेख में सड़क बाने के भारत के विरोध के पीछे भी नेपाल खुद नहीं, बल्कि चीन ही है। अब माना जा रहा है कि चीन की राजदूत ने इस विवादित नक्शे के लिए काम किया ताकि भारत की परेशानियां बढ़ें। नेपाल के सेनाध्यक्ष जनरल पूर्ण चंद्रथापा से लेकर प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के कार्यालय तक, काठमांडू में चीनी राजदूत होउ यांकी की पहुंच लगभग हर जगह है।
भारत के लिए यांकी का बयान
हाउ यांकी की एक प्रतिक्रिया भारतीय सेना प्रमुख मनोज नरवणे के सन्दर्भ में भी आया है। दरअसल, आर्मी चीफ ने चीन की ओर इशारा करते हुए कहा था कि नेपाल किसी ओर के इशारे पर काम कर रहा है। अब यान्की ने राइजिंग नेपाल को दिए इंटरव्यू में कहा, नेपाल की सरकार ने अपने संप्रभुता, क्षेत्रीय एकता की सुरक्षा को लेकर जनभावनाओं के तहत ये कदम उठाया। यान्की ने कहा, नेपाल के चीन के इशारे पर काम करने के आरोप बेबुनियाद हैं। ये गलत मंशा से लगाए गए हैं। ऐसे आरोप नेपाल की महत्वकांक्षाओं का ही अपमान नहीं करते, बल्कि चीन और नेपाल के संबंधों को भी नुकसान पहुंचाते हैं।
यांकी के इस प्रतिक्रिया के बारे में हम सभी जानते हैं कि इसमें कितनी सच्चाई है। वो क्या सोच रही है और चीन की कम्युनिस्ट सरकार उससे क्या करवा रही है। चीनी राजदूत हाउ यांकी नेपाल में काफी सक्रिय हैं। वे सिर्फ डिप्लोमेसी तक ही अपनी पहुंच सीमित नहीं रखती। वे नेपाल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेती हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर वे स्थानीय लड़कियों के साथ पारम्परिक कपड़ों में डांस करती भी नजर आई थीं। यान्की 2018 में नेपाल में चीन की राजदूत बनाई गई थीं। उसके बाद से चीन और नेपाल के संबंध लगातार बेहतर होते चले गए। इतना ही नहीं, यान्की नेपाल की राजनीति में भी काफी दखल देती हैं। वे कई बार ओली सरकार के लिए संकटमोचन भी बन चुकी हैं। हालिया घटना तो अप्रैल 2020 की ही है।
कोरोना मदद के बहाने अपना उल्लू सीधा करती रही
चीन से निकले कोरोना ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है। लेकिन इस संक्रमण के दौर में यान्की नेपाल की मदद के लिए आगे रहीं। उन्होंमने कोरोना के सहयोग के नाम पर सेना से लेकर सरकार और आम जनता तक सीधे पहुंच बनाई और संभव मेडिकल साम्रगी भी पहुंचाई। यान्की नेपाल के विभिन्न मंत्रालयों में नियमित देखी जाती हैं। वे सहयोग के नाम पर इन मंत्रालयों में दखल देती नजर आती हैं। इतना ही नहीं वे कोरोना लॉकडाउन के वक्त राजनीतिक दलों से भी संपर्क में रहीं। यान्की ने नेपाल में चुनाव से पहले दोनों कम्युनिस्ट पार्टी के गठबंधन में अहम भूमिका निभाई और जब ओली की पार्टी टूटने की कगार पर पहुंची तो उन्होंने इसे टूटने से बचाया। जाहिर है, इतना सब करके वो नेपाल को बताना चाहती है कि तुम्हारा असली दोस्त चीन ही है और भारत उतना तुम्हारे लिए कभी नहीं कर सकता जितना चीन ने किया है और करेगा।
एक राजदूत का किसी भी देश के अंदर इतना सक्रीय होना किसी भी प्रजातान्त्रिक राष्ट्र को सोचने पर मजबूर कर सकता है। लेकिन, नेपाल के कम्युनिस्ट प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली इस बात को समझते हुए भी नासमझ बनने की कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि उसको अपनी सत्ता के जाने का डर है। संभव है की चीनी सरकार के और से बन रहे दवाब के कारण केपी शर्मा ओली मजबूर से हो गए हैं। और संभव तो यह भी है कि वो हनी ट्रैप का शिकार हो गए हैं। यह कोई बड़ी बात नहीं है, चीनियों ने ऐसा पहले भी किया है।
अगस्त 2016 में सत्ता से निकले ओली की वापसी हुई फरवरी 2018 में। वो फिर से नेपाल के प्रधानमंत्री बने। ओली इस चुनाव को राष्ट्रवाद के मुद्दे पर लड़ा और जीता था। उनकी कम्यूनिस्ट पार्टी ने भारत-विरोधी अभियान पर ज़ोर दिया। नेपाल को चीन के करीब लाने का वायदा किया। ओली और चीन की आपसी अंडरस्टैंडिंग के कारण चीन ने नेपाल में हाथ खोलकर निवेश करना शुरू किया। इसका सबूत दिखा अक्टूबर 2019 में। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग नेपाल दौरे पर आए। साल 1996 में जियांग ज़ेमिन की नेपाल यात्रा के बाद ये पहली बार था, जब चीन के राष्ट्रपति ने नेपाल का दौरा किया था। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों में करीब 20 बड़े समझौते हुए। इनमें कनेक्टिविटी, सुरक्षा, सीमा प्रबंधन, द्विपक्षीय कारोबार, नेपाली सामान की चीनी बंदरगाहों तक पहुंच, शिक्षा और पर्यटन जैसी चीजें शामिल थीं। चीन ने कहा कि वो अगले दो साल में नेपाल को करीब 3,800 करोड़ रुपये देगा।
नेपाल में चीनी दखल इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि अब नेपाल के हर स्कूल में चीनी भाषा के किताब को कंपल्सरी कर दिया गया है। और यह सब तब से शुरू हुआ है जब से हाउ यांकी नेपाल में चीन की राजदूत बनी है। कथित तौर पर तो यह भी कहा जा रहा ही कि चीन के करीब जाने और भारत से दुश्मनी मोल लेना ओली को हाउ यांकी ने ही बताया। केपी शर्मा ओली यहाँ तक फ्रस्टेट हो गए कि उन्होंने तो वह ता कह डाला कि भारत की सरकार हमारी सरकार गिराना चाहती है।
पुष्प कमल दहल प्रचंड अपनी सक्रियता दिखा रहे हैं
यहाँ तक की ओली के ही पार्टी के वरिष्ठ नेता और भूतपूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने भी कहा है कि यह ओली सरकार काफी प्रो चाइना है जिससे भारत के साथ हमारे सम्बन्ध लगातार ख़राब होते जा रहे हैं। और नेपाल इस चीज को अफोर्ड नहीं कर सकता है। नेपाल के राजनीति में भी काफी उथल-पुथल मचा हुआ है। इस तरह से देखा जाए तो यह चीनी राजदूत हाउ यांकी ने नेपाल में एक तरह से गृह युद्ध शुरू करवा दिया है। प्रचंड कई बार कह चुके हैं कि पार्टी और सरकार के बीच समन्वय का आभाव है।
नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफा के सम्बन्ध में 4 जुलाई को पार्टी मीटिंग होनी थी लेकिन कुछ वजहों से यह मीटिंग स्थगित हकार अब 6 जुलाई को होगी। प्रचंड के प्रेस सलाहकार बिष्णु सपकोटा ने कहा, “स्थायी समिति की बैठक को आगे के लिए स्थगित कर दिया गया है क्योंकि दोनों कुर्सियों को आगे की चर्चा के लिए समय चाहिए।”
नक्शा विवाद के अलावा, हाल ही में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी एनसीपी के भीतर प्रतिद्वंद्वी गुट की अगुवाई में ओली के खिलाफ भड़की नाराजगी को दूर करने के लिए होउ यांकी ने सत्तारूढ़ एनसीपी के कुछ शीर्ष नेताओं से संपर्क किया। बीजिंग स्थिति विदेश नीति के रणनीतिकारों के सामंजस्य में काम करने वाली होउ को नेपाल में अब तक के सबसे प्रभावशाली चीनी राजनयिकों में से एक माना जा रहा है। होउ नेपाल में चीनी सरकार द्वारा किए गए प्रमुख निर्माण कार्यों की निगरानी भी करती हैं। नेपाली राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी उन्हें विशेष रात्रिभोज के लिए आमंत्रित करती हैं तो वहीं पर्यटन मंत्री योगेश भट्टराई, होउ के लिए विशेष आउटडोर फोटो शूट की सुविधा मुहैया करा देते हैं।
सोशल मिडिया से छवि साफ दिखाना चाहती है
यांकी सोशल मीडिया पर खासी एक्टिव रहती हैं। वो जहां भी जाती है वहां की तस्वीर वो जरूर पोस्ट करती हैं और सोशल मीडिया के जरिये अपने देश की कंडीशन को मजबूर देखने की कोशिश करती हैं। यांकी सोशल मीडिया में चीन की सांस्कृतिक और सामाजिक बातों का बढ़चढ़ कर बखान करती है। इसे सॉफ्ट पॉवर बढ़ाना कहा जाता है। हाउ यांकी अब नेपाली भाषा भी सिख चुकी है और लोगों से इंटरैक्ट करते वक्त वो नेपाली भाषा का ही इस्तेमाल करती है।
भारत और नेपाल की जो सीमाएँ आपस में मिलती है, खास कर के यु पी और बिहार की। वहां शादी-विवाह का रिश्ता भी सरहद पार वाला ही होता है। इसीलिए जिस तरह से नेपाल अपने आम को अनावश्यक ढंग से बढ़ा रहा है वो आपसी सामान्य को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
50 साल की इस चीनी महिला के वजह से नेपाल में आया राजनैतिक संकट किस मोर पर जाकर खत्म होता है यह तो अब समय ही बताएगा। वैसे आपकी आपकी जानकारी के लिए बताते चलें कि यांकी एक शादीशुदा महिला है और उनको एक बेटा भी है। देखते हैं आगे क्या होता है।
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