ऑस्ट्रेलिया में हजारों ऊँटों को मारा जा रहा है, वजह भयावह है।
जहाँ पूरी दुनिया ऑस्ट्रेलिया में लगे भीषण आग से चिंतित है वहीं एक विचित्र खबर वहां से आ रही है। ऑस्ट्रेलिया के स्थानीय सरकार ने वहां के 10000 ऊंटों को गोली मारने का आदेश दिया है। लेकिन यह पहली बार नहीं है जब इस तरह की घटना को अंजाम दिया जा रहा है। इससे पहले भी साल 2013 में हजारों ऊंटों को मार डाला गया था। ऑस्ट्रेलियाई सरकार के इस फैसले की वैश्विक आलोचना भी हो रही है।
ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में हाल ही के दिनों में भीषण आग लगी है जिसमें लगभग 30 इंसानों की और लाखों जानवरों की मौत हो चुकी है। इस आग को ऑस्ट्रेलियन बुशफायर नाम दिया गया है। यहाँ ना सिर्फ जंगली जानवरों का नुकसान हुआ है बल्कि आस-पास रहने वाले लगभग डेढ़ हजार लोगों का घर भी आग में जलकर राख हो चूका है।
इस कत्लेआम का कारण क्या है?
ऑस्ट्रेलिया में औसतन 60 सेमी वर्षा होती है। साथ ही 35% से अधिक भौगोलिक क्षेत्र मरुस्थल है। जिसके कारण ग्राउंडवाटर वहाँ कम है। वहाँ पहले से ही पानी का आभाव था, उसके बाद यह भीषण आग ने जल की आपूर्ति को बुरी तरह से बाधित किया है। जिसके कारण यहाँ के लोगों के पास अब पिने का पानी भी नहीं है।
स्थिति इतनी खड़ब हो चुकी है कि लोग ऐसी से निकले पानी को एकत्रित कर रहे हैं जो ऊँट के पीने के काम आ रहा है। लेकिन हम सब जानते हैं कि यह पर्याप्त नहीं है। पानी पीने के साथ – साथ यह ऊँट आवास की तलाश में लोगों के घरों में घुस रहे हैं, जिसके कारण मानव – पशु संघर्ष बढ़ रहा है। आग और तपिश ज्यादा होने के कारण ऊंटों को पानी की आवश्यकता ज्यादा से ज्यादा पड़ रही है, जो कि पूरा नहीं हो पा रहा है। वहाँ का तापमान अभी देखा जाय तो 44 से लेकर 49 डिग्री सेल्सियस रहती है। इससे आप गर्मी का अंदाजा लगा सकते हैं।
यहाँ पर एक ध्यान देने वाली बात है कि एक समय ऑस्ट्रेलिया में ऊंटों की कमी थी और उसके लिए ऊंटों को बाहर से मंगाया गया था, और इसका उद्देश्य था आदमी और सामानों की आवाजाही को मरुस्थल में आसान बनाना। लेकिन फिर 1920 के दशक में गाड़ियों का उपयोग बढ़ा और ऊँटों का इस्तेमाल कम हो गया। जिसके बाद लोगों ने इन ऊँटों को जंगलों में छोड़ दिया था।
अभी ऊँटों को मारने का एक और कारण दिया जा रहा है कि ऊँटों के द्वारा ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। क्योंकि यह मीथेन गैस का उत्सर्जन करते हैं। यह मीथेन उत्सर्जन हर साल एक टन कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के बराबर है।
तो इसका मतलब तो साफ है कि जिस बेजुबान जानवर को मारा जायेगा उसकी गलती कहाँ है? इनको मारा जाएगा पानी की समस्या के उबरने के लिए, जबकि मनुष्य खुद ही पानी की समस्या का सबसे बड़ा कारण है। इस खबर के माध्यम से तो बस इतना ही कहना चाहेंगे कि आगे भविष्य में हमारी गलतियों का सजा किसी भी बेजुबान को ना मिले इसीलिए पानी को बचाना बेहद जरुरी है। आज हम शक्तिशाली है, इसीलिए उनको मार रहे हैं। कल कोई कोई हमसे भी ताकतवर आएगा जो पानी के लिए हमें भी मार सकता है।
पानी के दुरूपयोग को रोकें, वर्षा जल को जितना हो सके एकत्रित करने का प्रयास करें और एकत्रित करें भी। जिससे कि वो पानी हमारे ग्राउंडवाटर को बरकरार रखे और हमें भविष्य में कभी भी जल संकट काम सामना नहीं करना पड़े।
इस स्टोरी को उमेश कुमार साह लिखे हैं। उमेश मधुबनी, बिहार में रहते हैं। वो इतिहास के छात्र रहे हैं और अभी सिविल सर्विसेस की तैयारी में लगे हुए हैं। राजनीति में किसी भी मुद्दे पर गहरी जानकारी रखते हैं और सामयिक घटनाओं पर लिखते रहते हैं। उनसे जुड़ने के लिए आप उनके सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर संपर्क कर सकते हैं।
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