पंचतंत्र की प्रमुख कहानियाँ
पंचतंत्र है क्या?
पंचतंत्र एक विश्वविख्यात कथा ग्रन्थ है, जिसके रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा है. इस ग्रन्थ में प्रतिपादित राजनीति के पाँच तंत्र (भाग) हैं. इसी कारण से इसे 'पंचतंत्र' नाम प्राप्त हुआ है. भारतीय साहित्य की नीति कथाओं का विश्व में महत्त्वपूर्ण स्थान है. पंचतंत्र उनमें प्रमुख है. उपदेशप्रद भारतीय पशुकथाओं का संग्रह, जो अपने मूल देश तथा पूरे विश्व में व्यापक रूप से प्रसारित हुआ. यूरोप में इस पुस्तक को 'द फ़ेबल्स ऑफ़ बिदपाई' के नाम से जाना जाता है. इसका एक संस्करण वहाँ 11वीं शताब्दी में ही पहुँच गया था. इसमें जानवरों को पात्र बनाकर शिक्षाप्रद बातें लिखी गई हैं.
पंचतंत्र लिखे जाने का इतिहास
पंचतंत्र की कहानियों की रचना का इतिहास भी बड़ा ही रोचक है. लगभग 2000 साल पहले पूर्व भारत के दक्षिणी हिस्से में महिलारोग्य नामक नगर में राजा अमरशक्ति का शासन था. उसके तीन पुत्र बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनंतशक्ति थे. राजा अमरशक्ति जितने उदार प्रशासक और कुशल नीतिज्ञ थे, उनके पुत्र उतने ही मुर्ख और अहंकारी थे.
राजा ने उन्हें व्यवहारिक शिक्षा देने की बहुत कोशिश की, परन्तु किसी भी प्रकार से बात नहीं बनी. हारकर एक दिन राजा ने अपने मंत्रियो से मंत्रणा की. राजा अमरशक्ति के मंत्रिमंडल में कई कुशल, दूरदर्शी और योग्य मंत्री थे, उन्हीं में से एक मंत्री सुमति ने राजा को परामर्श दिया की पंडित विष्णु शर्मा सर्वशास्त्रों के ज्ञाता और एक कुशल ब्राह्मण हैं, यदि राजकुमारों को शिक्षा देने और व्यवहारिक रूप से प्रशिक्षित करने का उत्तरदायित्व पंडित विष्णु शर्मा को सौंपा जाए तो उचित होगा, वे अल्प समय में ही राजकुमारों को शिक्षित करने की समर्थ रखते हैं.
राजा अमरशक्ति ने पंडित विष्णु शर्मा से अनुरोध किया और पारितोषिक के रूप में उन्हें सौ गाँव देने का वचन दिया. पंडीत विष्णु शर्मा ने पारितोषिक को तो अस्वीकार कर दिया, परन्तु राजकुमारों को शिक्षित करने के कार्य को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया. इस स्वीकृति के साथ ही उन्होंने घोषणा की, की में यह असंभव कार्य मात्र छ: महीनो में पूर्ण करूँगा, यदि में ऐसा न कर सका तो महाराज मुझे मृत्युदंड दे सकते हैं. पंडित विष्णु शर्मा की यह भीष्म प्रतिज्ञा सुनकर महाराज अमरशक्ति निश्चिन्त होकर अपने शासन-कार्य में व्यस्त हो गए और पंडित विष्णु शर्मा तीनो राजकुमारों को अपने आश्रम में ले आए.
पंडित विष्णु शर्मा ने राजकुमारों को विविध प्रकार की नीतिशास्त्र से सम्बंधित कथाए सुनाई. उन्होंने इन कथाओं में पात्रों के रूप में पशु-पक्षिओ का वर्णन किया और अपने विचारों को उनके मुख से व्यक्त किया. पशु-पक्षिओ को ही आधार बनाकर उन्होंने राजकुमारों को उचित-अनुचित आदि का ज्ञान दिया और इसके साथ ही राजकुमारों को व्यवहारिक रूप से प्रशिक्षित करना आरंभ किया. राजकुमारों की शिक्षा समाप्त होने के पश्चात पंडित विष्णु शर्मा ने इन कहानियों पंचतंत्र कहानी संग्रह के रूप में संकलित किया. मनोविज्ञान, व्यवहारिकता तथा राजकाज के सिद्धांतों से परिचित कराती ये कहानियाँ सभी विषयों को बड़े ही रोचक तरीके से सामने रखती है तथा साथ ही साथ एक सीख देने की कोशिश करती है।
पंचतंत्र का अन्य भाषाओ में अनुवाद
छठी शताब्दी (550 ई.) में जब ईरान सम्राट ‘खुसरू’ के राजवैद्य और मंत्री ने ‘पंचतंत्र’ को अमृत कहा. ईरानी राजवैद्य बुर्ज़ों ने किसी पुस्तक में यह पढ़ा था कि भारत में एक संजीवनी बूटी होती है, जिससे मूर्ख व्यक्ति को भी नीति-निपुण किया जा सकता है. इसी बूटी की तलाश में वह राजवैद्य ईरान से चलकर भारत आया और उसने संजीवनी की खोज शुरू कर दी. उस वैद्य को जब कहीं संजीवनी नहीं मिली तो वह निराश होकर एक भारतीय विद्वान् के पास पहुंचा और अपनी सारी परेशानी बताई. तब उस विद्वान् ने कहा - ‘देखो मित्र! इमसें निराश होने की बात नहीं, भारत में एक संजीवनी नहीं, बल्कि संजीवनियों के पहाड़ हैं उनमें आपको अनेक संजीवनियां मिलेंगी. हमारे पास ‘पंचतंत्र’ नाम का एक ऐसा ग्रंथ है जिसके द्वारा मूर्ख अज्ञानी लोग नया जीवन प्राप्त कर लेते हैं.’’ ईरानी राजवैद्य यह सुनकर अति प्रसन्न हुआ और उस विद्वान् से पंचतंत्र की एक प्रति लेकर वापस ईरान चला गया, उस संस्कृत कृति का अनुवाद उसने पहलवी में करके अपनी प्रजा को एक अमूल्य उपहार दिया. हालांकि यह कृति भी अब खो चुकी है.
लेरियाई भाषा में अनुवाद
यह था पंचतंत्र का पहला अनुवाद जिसने विदेशों में अपनी सफलता और लोकप्रियता की धूम मचानी प्रारंभ कर दी. इसकी लोकप्रियता का यह परिणाम था कि बहुत जल्द ही पंचतंत्र का ‘लेरियाई’ भाषा में अनुवाद करके प्रकाशित किया गया, यह संस्करण 570 ई. में प्रकाशित हुआ था.
अरबी में अनुवाद
आठवीं शताब्दी (760 ई.) में पंचतंत्र की पहलवी अनुवाद के आधार पर ‘अब्दुलाइन्तछुएमुरक्का’ ने इसका अरबी अनुवाद किया जिसका अरबी नाम ‘मोल्ली व दिमन’ रख गया. आश्चर्य और खुशी की बात तो यह है कि यह ग्रन्थ आज भी अरबी भाषा के सबसे लोकप्रिय ग्रन्थों में एक माना जाता है.
यूरोपीय अनुवाद
इसका सीरियाई अनुवाद, में इसे दो सियारों की पहली कहानी के आधार पर "कलिलाह वा दिमनाह" के नाम से जाना जाता है. "कलिलाह वा दिमनाह" का दूसरा सीरियाई संस्करण और 11 वीं शताब्दी का यूनानी संस्करण स्टेफ़्नाइट्स काई इचनेलेट्स समेत कई अन्य संस्करण प्रकाशित हुए, जिनके लैटिन एवं विभिन्न स्लावियाई भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ. लेकिन अधिकांश यूरोपीय संस्करणों का स्त्रो 12 वीं शताब्दी में रैबाई जोएल द्वारा अनुदिन हिब्रू संस्करण है.
इटैलियन, फ्रेंच भाषा में
1552 ई. में पंचतंत्र का जो अनुवाद इटैलियन भाषा में हुआ, इसी से 1570 ई. में सर टामस नार्थ ने इसका पहला अनुवाद तैयार किया, जिसका पहला संस्करण बहुत सफल हुआ और 1601 ई. में इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ. यह बात तो बड़े-बड़े देशों की भाषाओं की थी. फ्रेंच भाषा में तो पंचतंत्र के प्रकाशित होते ही वहां के लोगों में एक हलचल सी मच गई. किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई लेखक पशु-पक्षियों के मुख से वर्णित इतनी मनोरंजक तथा ज्ञानवर्धक कहानियां भी लिख सकता है.
जर्मन भाषा में
1260 में ई. में इटली के कपुआ नगर में रहने वाले एक यहूदी विद्वान् ने जब पंचतंत्र को पढ़ा तो लैटिन भाषा में अनुवाद करके अपने देशवासियों को उपहार स्वरूप यह रचना भेंट करते हुए उसने कहा, ‘साहित्य में ज्ञानवर्धन, मनोरंजक व रोचक रचना इससे अच्छी कोई और हो ही नहीं सकती. इसी अनुवाद से प्रभावित होकर 1480 में पंचतंत्र का ‘जर्मन’ अनुवाद प्रकाशित हुआ, जो इतना अधिक लोकप्रिय हुआ कि एक वर्ष में ही इसके कई संस्करण बिक गए. जर्मन भाषा में इसकी सफलता को देखते हुए ‘चेक’ और ‘इटली’ के देशों में भी पंचतंत्र के अनुवाद प्रकाशित होने लगे.
पंचतंत्र की लोकप्रियता
पंचतंत्र का अरबी अनुवाद होते ही पंचतंत्र की लोकप्रियता बहुत तेजी से बढ़ने लगी. अरब देशों से पंचतंत्र का सफर तेजी से बढ़ा और ग्यारहवीं सदी में इसका अनुवाद यूनानी भाषा में होते ही इसे रूसी भाषा में भी प्रकाशित किया गया. रूसी अनुवाद के साथ पंचतंत्र ने यूरोप की ओर अपने क़दम बढ़ाए, यूरोप की भाषाओं में प्रकाशित होकर पंचतंत्र जब लोकप्रियता के शिखर को छू रहा था तो 1251 ई. में इसका अनुवाद स्पैनिश भाषा में हुआ, यही नहीं विश्व की एक अन्य भाषा हिश्री जो प्राचीन भाषाओं में एक मानी जाती हैं, में अनुवाद प्रकाशित होते ही पंचतंत्र की लोकप्रियता और भी बढ़ गई.
हितोपदेश
इसका 15 वीं शताब्दी का ईरानी संस्करण अनवर ए सुहेली पर आधारित है. पंचतंत्र की कहानियाँ जावा के पुराने लिखित साहित्य और संभवत: मौखिक रूप से भी इंडोनेशिया तक पहुँची. भारत में 12 वीं शताब्दी में नारायण द्वारा रचित "हितोपदेश", जो अधिकांशत: बंगाल में प्रसारित हुआ, पंचतंत्र की साम्रगी की एक स्वतंत्र प्रस्तुति जान पड़ता है.
सफलता और संस्करण
इसी प्रकार से पंचतंत्र ने अपना सफर जारी रखा, नेपाली, चीनी, ब्राह्मी, जापानी, भाषाओं में भी जो संस्करण प्रकाशित हुए उन्हें भी बहुत सफलता मिली. रह गई हिन्दी भाषा, इसे कहते हैं कि अपने ही घर में लोग परदेसी बन कर आते हैं. 1970 ई. के लगभग यह हिन्दी में प्रकाशित हुआ और हिन्दी साहित्य जगत् में छा गया. इसका प्रकाश आज भी जन-मानस को नई राह दिखा रहा है और शायद युगों-युगों तक दिखाता ही रहे.
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उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि जब इस ग्रंथ की रचना पूरी हुई, तब पंडित विष्णु शर्मा की उम्र 80 वर्ष के करीब थी. पंचतंत्र को पाँच तंत्रों (भागों) में बाँटा गया है: -
1. मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव)
2. मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ)
3. संधि-विग्रह/काकोलूकियम (कौवे एवं उल्लुओं की कथा)
4. लब्ध प्रणाश (मृत्यु या विनाश के आने पर; यदि जान पर आ बने तो क्या?)
5. अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें; हड़बड़ी में क़दम न उठायें)