जानिए धारा 370 के बारे में सबकुछ, क्यों अलग है जम्मू कश्मीर बाकी राज्यों से?
जम्मू-कश्मीर राज्य को कुछ विशेष अधिकार मिले हैं और यह सब धारा 370 के कारण मुमकिन हुआ। क्या है धारा 370 और यह कैसे एक देश को दो हिस्सों में बांटती है? धारा 370 पर भारतीय राजनीति में उठा पटक होती रहती है पर अभी तक धारा 370 को हटाया नही गया, आखिर कब तक ऐसा चलेगा, आंतकवाद की तादाद बढ़ती जा रही है और हम हाथ पे हाथ क्यों रखे बैठे है? क्यों हम उन्हें विशेष अधिकार दे रखे है जबकि वो भी भारत का ही हिस्सा है। क्यों हम उस राज्य को राज्य विशेष अधिकार दिए हुए है? कश्मीर समस्या और आतंकवाद तब तक यथावत रहेगा, जब तक कठोर फैसला लेते हुए विशेष राज्य का दर्जा देने वाले धारा 370 खत्म नहीं कर दी जाती। 2014 के आम चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी जी ने कहा था कि आखिर इस धारा से आम कश्मीरियों को कितना फायदा पहुंचा, लोकसभा में चुनाव प्रचार के दौरान जम्मू की रैली में मोदी ने ही धारा 370 पर कम से कम बहस करने की बात कही थी। उस समय राष्ट्रवाद के पैरोकार उम्मीद करने लगे थे कि सत्ता में आने के बाद मोदी इस एजेंडे पर काम करेंगे। उनके कार्यकाल को लगभग 5 साल पुरे होने को आए लेकिन अब तक कुछ नही हुआ। इस पर रुख करने का समय आ गया है।
कई राजनीतिक दल इस धारा को हटाने की मांग करते रहे हैं। लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नही हुआ और अब समय आ गया है कि धारा 370 को जल्द से जल्द हटाया जाए ,भारत के ही एक राज्य को विशेषाधिकार देने का क्या मतलब है? ये धारा 370 हमारे देश को बांटने का कार्य करती है। पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी जी अपने पूरे कार्यकाल के दौरान इस बात पर अफ़सोस करते रहे कि बहुमत न होने के कारण धारा 370 पर कोई फ़ैसला नहीं ले पा रहे हैं। कम से कम ऐसी शिकायत मोदीजी को तो बिलकुल भी नहीं है, क्योंकि उनके पास लोकसभा में 280 सीट का पूर्ण बहुमत है। देश की जनता ने मोदी को बहुमत और एनडीए को 336 लोकसभा सदस्यों की शक्ति देकर यह संदेश दिया है कि भारत में सभी राज्यों को बराबर कर दीजिए। लिहाज़ा, मोदी के सत्ता में आते ही लोग धारा 370 को खत्म करने की चर्चा करने लगे थे।
यह सच है कि धारा 370 खत्म करने के लिए संसद में दो तिहाई बहुमत यानी लोकसभा में 367 सीट और राज्यसभा में 164 सीट की जरूरत है। यह काम केंद्र नहीं कर सकता क्योंकि उसके पास दो तिहाई बहुमत न तो लोकसभा में है न ही राज्यसभा में। लेकिन, चूंकि मोदीजी ने खुद चुनाव प्रचार के दौरान धारा 370 के औचित्य पर सवाल उठाया था और उन्हें उसी मुद्दे पर जनादेश भी मिला था। इन सब बातों को देखते हुए कम से कम सरकार को इस मुद्दे पर संसद में बहस की पहल तो करनी ही चाहिए थी। ताकि पूरा देश सुनता कि उनके कानून-निर्माता किसी राज्य विशेष को स्पेशल स्टैटस देने के बारे में क्या सोच रखते हैं।
भारतीय संविधान की धारा 370 जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करती है। धारा 370 भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद यानी धारा है, जो जम्मू-कश्मीर को भारत में अन्य राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार प्रदान करती है। भारतीय संविधान में अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध सम्बन्धी भाग 21 का अनुच्छेद 370 जवाहरलाल नेहरू के विशेष हस्तक्षेप से तैयार किया गया था। 1947 में विभाजन के समय जब जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू हुई तब जम्मू-कश्मीर के राजा हरिसिंह स्वतंत्र रहना चाहते थे। इसी दौरान तभी पाकिस्तान समर्थित कबिलाइयों ने वहां आक्रमण कर दिया जिसके बाद उन्होंने भारत में विलय के लिए सहमती दी। उस समय की आपातकालीन स्थिति के मद्देनजर कश्मीर का भारत में विलय करने की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी करने का समय नहीं था। इसलिए संघीय संविधान सभा में गोपालस्वामी आयंगर ने धारा 306-ए का प्रारूप पेश किया। यही बाद में धारा 370 बनी। जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों से अलग अधिकार मिले हैं।
1951 में राज्य को संविधान सभा को अलग से बुलाने की अनुमति दी गई। नवंबर 1956 में राज्य के संविधान का कार्य पूरा हुआ। 26 जनवरी 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया। धारा 370 के प्रावधानों के मुताबिक संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है। किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की सहमति लेनी पड़ती है। इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती। राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का भी अधिकार नहीं है। 1976 का शहरी भूमि कानून भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता। भारत के अन्य राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं। धारा 370 के तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का अधिकार है।
क्या विशेष अधिकार मिलता है जम्मू-कश्मीर को?
भारतीय संविधान की धारा 360 यानी देश में वित्तीय आपातकाल लगाने वाला प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता। जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय करना उस वक्त की बड़ी जरूरत थी। इस कार्य को पूरा करने के लिए जम्मू-कश्मीर की जनता को उस समय धारा 370 के तहत कुछ विशेष अधिकार दिए गए थे। इसी की वजह से यह राज्य भारत के अन्य राज्यों से अलग है। जम्मू-कश्मीर का झंडा अलग होता है। जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है। जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं है। यहाँ भारत की सर्वोच्च अदालत के आदेश मान्य नहीं होते। जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उस महिला की जम्मू-कश्मीर की नागरिकता खत्म हो जाएगी, वहीं यदि कोई कश्मीरी महिला पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी करती है, तो उसके पति को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती है। धारा 370 के कारण कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है।
जम्मू-कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल होता है, जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 साल होता है। भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के संबंध में बहुत ही सीमित दायरे में कानून बना सकती है। जम्मू-कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू है। जम्मू-कश्मीर में पंचायत के पास कोई अधिकार नहीं है। धारा 370 के कारण जम्मू-कश्मीर में सूचना का अधिकार (RTI) लागू नहीं होता। जम्मू-कश्मीर में शिक्षा का अधिकार (RTE) लागू नहीं होता है। यहां सीएजी (CAG) भी लागू नहीं है। जम्मू-कश्मीर में काम करने वाले चपरासी को आज भी ढाई हजार रूपये ही बतौर वेतन मिलते हैं। कश्मीर में अल्पसंख्यक हिन्दूओं और सिखों को 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता है।
एक आम भारतीय क्या चाहती है केंद्र सरकार से?
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी से आज पूरा देश यह अपील कर रहा है कि जल्द से जल्द इस कैंसर रूपी धारा 370 को खत्म करें, यही सभी समस्याओं का जड़ है। कश्मीर में जितने भी अलगाववादी संगठन और उसके नेता है वो सब इसी धरा कि उपज है। यासीन मलिक और उसके जैसे कई लोग आज़ाद कश्मीर कि मांग खुलेआम करते हैं। अगर अब भी भारत सरकार ने इस पर काम नहीं किया तो शायद फिर कभी नहीं हो पाएगा। दशकों बाद आज हिंदुस्तान में पूर्ण बहुमत कि सरकार है, जो किसी भी तरह के फैसले को लेने में सक्षम है। प्रधानमंत्री को चाहिए कि वो आपातकालीन बैठक बुलाएं इस मुद्दे पर और इसको जड़ से उखड फेंके। कब तक हमारे वीर सैनिकों के परिवार रोते रहेंगे। कबतक वीर शहीदों के बच्चे अनाथ होते रहेंगे और कब तक वीर शहीदों कि पत्नियां अपनी चूड़ियां तोड़ती रहेंगी। मोदीजी आप आगे बढ़िए, सारा देश आपके साथ है। जय जवान – जय किसान। भारत माता की जय. . . . .
इस स्टोरी को उमेश कुमार साह लिखे हैं। उमेश मधुबनी, बिहार में रहते हैं। वो इतिहास के छात्र रहे हैं और अभी सिविल सर्विसेस की तैयारी में लगे हुए हैं। राजनीति में किसी भी मुद्दे पर गहरी जानकारी रखते हैं और सामयिक घटनाओं पर लिखते रहते हैं। उनसे जुड़ने के लिए आप उनके सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर संपर्क कर सकते हैं।
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