बातें उस चुनावी जीत की, जिसके लिए जनता का विशेष आभार. .!!

साल 2019 का सत्रहवाँ लोकतंत्र का पर्व समाप्त हुआ। यानि की लोकसभा का चुनाव समाप्त हुआ और परिणाम अब सबके सामने है। भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली एनडीए (राष्ट्रिय जनतांत्रिक गठबंधन) ने तरीके से झाड़ू लगाया है जिसके चपेट में सब आ गए है। क्या कांग्रेस, क्या सपा-बसपा गठबंधन, क्या राष्ट्रिय जनता दल, क्या ममता और क्या महागठबंधन। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की करिश्माई जोड़ी के सामने सबको मुँह की खानी पड़ी है। इनमें से कोई भी ऐसा नहीं है जो पानी मांगने की स्थिति में भी है। एनडीए को 350 से ज्यादा सीटें मिली है जिनमे से 303 सिर्फ बीजेपी के हैं।

लेकिन यहाँ हम बात करेंगे उस खास सीटों के बारे में जहाँ पर कैंडिडेट को जिताकर भारतीय जनता ने यह सन्देश दिया है कि अब वह जात-पात वाला सिस्टम में भरोसा नहीं करते हैं और ना ही परम्परागत सीटों में। वोट देना है तो सिर्फ विकास पर और अच्छे नियत पर। देखिए ऐसे ही कुछ सीटों कि दास्तान।

1. बेगूसराय (बिहार)

“सोचते थे कि वो कितने मासूम हैं, क्या से क्या हो गए देखते-देखते”

इस एक लाइन के गाने में इस सीट के पुरे खेल को समराइज कर दिया गया है। यह सीट चर्चा में तब आया जब जेएनयू में देश विरोधी नारा लगाने वाला कन्हैया कुमार ने यहाँ से चुनाव लड़ने की बात कही। पहले तो उसे टिकट नहीं मिल पा रहा था फिर उसे किसी तरह सीपीआई का टिकट मिला। सीपीआई को भी लगा कि कन्हैया के बहाने ही सही लेकिन उसके उजड़ते सल्तनत के लिए शायद कोई सुलतान मिल जाए। यहाँ पर कन्हैया कुमार के पक्ष में प्रचार करने के लिए जेएनयू के टुकड़े-टुकड़े गैंग के सभी साथी पहुंचे थे। मसलन उमर खालिद, शहला राशिद और अन्य भी। लगे हाथ दलित का झंडा थामे जिग्नेश मेवानी भी पहुंचे और साथ में बॉलीवुड ऐक्ट्रेस स्वरा भास्कर और स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा भी। चुनाव प्रचार खत्म होते-होते सेलेब्रेटी स्टेटस रखने वाले जावेद अख्तर और प्रकश राज भी पहुँचे। इन लोगों के पहुँचने से बेगूसराय का माहौल लगभग बन ही गया था लेकिन कहानी में एक ट्विस्ट आनी बाकी थी। और बाकी था यहाँ पर दूसरे खेमे का प्रचार होना।

भारतीय जनता पार्टी के ओर से यहाँ आये बिहार के कद्दावर भाजपा नेता और वर्तमान के केंद्र सरकार में मंत्री गिरिराज सिंह। उनके आते ही विरोधी पार्टी पर पहाड़ टूट पड़ा। “दादा” के नाम से सम्बोधित होने वाले गिरिराज सिंह के बारे में कन्हैया ने कहा था कि वो उसे नानी याद दिला देंगे। सिर्फ दो से तीन जनसभाओं के बाद गिरिराज सिंह जनता का नब्ज़ पकड़ चुके थे। बाकी का काम मोदी जी के रैलियों ने कर दिया था। तीसरे नंबर पर रहे आरजेडी के कैंडिडेट डॉ तनवीर हसन की तो यहाँ पर बात ही नहीं हुई। जब नतीजे आये तो गिरिराज सिंह ने यहाँ पर चार लाख से ज्यादा के अंतर से जीत दर्ज की। इसी के साथ ही उन लोगों के मंसूबों पर भी पानी फेर दिया जिसने भारत को टुकड़े करने के ख्वाब पाल बैठे थे। अब ये शायद बेगूसराय में लेफ्ट का अंत है।

2. पटना साहिब (बिहार)

बेगूसराय के बाद बिहार का एक दूसरा वीआईपी सीट। यहाँ पर भाजपा के बागी नेता और सांसद शत्रुध्न सिन्हा ने पाला बदल कर कांग्रेस का दामन थम लिया और क्लेम करता रहा कि मैं यहाँ से निर्दलीय भी चुनाव जीत सकता हूँ। लेकिन उनको लगभग तीन लाख वोटों से हराकर जनता ने भाजपा के रविशंकर प्रसाद को जिताया और ये बतला दिया कि प्रजातंत्र में प्रजा ही सबकुछ होता है। वैसे भी शत्रुध्न सिन्हा सिर्फ भाजपा के बदौलत जीतते रहे हैं ये बात जगजाहिर है।

3. गुना (मध्य प्रदेश)

मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने वो शिकस्त देखी जैसी दशकों में नहीं मिली थी। भाजपा ने अपनी पिछली सभी 27 सीटें जीतीं, और गुना को भी ज्योतिरादित्य सिंधिया से झटक लिया। गुना में भाजपा कैंडीडेट 1 लाख 23 हज़ार वोट से जीते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया को हराने वाला कोई और नहीं बल्कि उनके पूर्व सहयोगी और सांसद प्रतिनिधि ही हैं। बीस साल से ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ काम करने वाले के पी यादव ने जब सिंधिया को एक सेल्फी के लिए रिक्वेस्ट किया तो उसने झिड़क दिया। यादवजी के आत्मसम्मान को ठेस लगा और वो अपनी बोरिया-बिस्तर समेटकर चल पड़े भाजपा के खेमे में।

ज्योतिरादित्य सिंधिया कि पत्नी प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया ने एक फोटो फेस्बुल पर डाली और लिखा कि जो कभी महाराज के साथ सेल्फी लेने की लाइन में रहते थे, उन्हें भाजपा ने अपना प्रत्याशी चुना है। ये एक आत्ममुग्ध पोस्ट था। बस इसी का हिसाब जनता ने इस राजकुमार से लिया है। अब तो इनको पांच साल तक किसी के साथ भी सेल्फी लेने लायक नहीं छोड़ा।

4. बंगलुरु सेन्ट्रल (कर्नाटक)

एक और लेफ्टी विचारधारा का कैंडिडेट यहाँ पर अपना पोलिटिकल सुसाइड करता नजर आया। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं साऊथ फिल्मों के एक्टर (जो अब बॉलीवुड में भी काम करते हैं) प्रकाश राज का। भाजपा के पी सी मोहन और कांग्रेस के रिजवान अरशद के बीच वो एक वोटकटवा से ज्यादा कुछ भी नहीं था। नतीजा वही हुआ जो सबने सोचा था। जब अपने कांस्टीच्वेंसी में तीन प्रतिशत वोट भी हासिल ना कर पाने वाले प्रधानमंत्री पद का सपना देखते हैं तो बुरा लगता है।

5. अमेठी (उत्तर प्रदेश)

यहाँ पर भाजपा ने जो किया है उसे कहते हैं किले में सेंध मारना। यकीनन स्मृति ईरानी नरेंद्र मोदी के विकास का नाम लेकर चुनाव लड़ी थी लेकिन वो लगातार पिछले पाँच सालों से अमेठी पर नजर बनाये हुई थी। उसे पता था कि जड़ें हिलानी है तो कुल्हाड़ी रोजाना ही मारना पड़ेगा। वो लगातार मेहनत की जिसे जनता से स्वीकारा और एक प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार से उसकी परंपरागत सीट छीन ली। बेचारा राहुल गाँधी। जनता को भी समझ आ गया था कि राहुल अब उसके भी किसी काम के नहीं हैं।

6. कन्नौज (उत्तर प्रदेश)

मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव और आजमगढ़ से अखिलेश यादव के जितने के बाद परिवार में एक और सीट बढ़ती नजर आ रही थी डिम्पल यादव की। डिम्पल यादव अखिलेश यादव की धर्मपत्नी है। कन्नौज से वो सिटिंग सांसद थी और इस बार भी उनकी दावेदारी मज़बूत थी लेकिन हर बार परिवारवाद काम कहाँ आता है। अब डिम्पल के लिए एक प्यारा सा मैसेज यही है कि पाँच साल तक बैठकर अपने घर में पसरे रायता को समेटे।

बाकी और भी कई सीटें ऐसी है जहाँ जनता का भरपूर प्यार मिला है नेताओं को और उससे भी ज्यादा विकास को। इस तरह का मैंडेट मिलना आज के समय में सचमुच बहुत बड़ी बात है। श्री नरेंद्र मोदी दुबारा भारत के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं और इस बार उनके सामने एक नए किस्म कि चुनैती होगी। देखते हैं आगे-आगे होता है क्या।

नोट: इलेक्शन रिजल्ट कि सभी तस्वीरें भारत निर्वाचन आयोग के वेबसाइट से

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