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शोक का पुरस्कार – प्रेमचंद की कहानी
आज तीन दिन गुजर गये। शाम का वक्त था। मैं यूनिवर्सिटी हाल से खुश-खुश चला आ रहा था। मेरे सैंकड़ों दोस्त मुझे बधाइयॉँ दे रहे थे। मारे खुशी के मेरी बॉँछें खिली जाती थीं। पूरा पढ़ें...