मदीहा गौहर: पाकिस्तान थियेटर की अनमोल धरोहर अब नहीं रही
कहते है कला की कोई सीमा नहीं होती. वह हर सरहद से परे होती है. जहां प्रेम हो वहाँ कला आ ही जाती है. गीत-संगीत, मनोरंजन, फिल्म्स, थियेटर, खेल, पेंटिंग्स आदि ये सब कुछ ऐसी विधाएँ है जो किसी की सरहद की मोहताज नहीं है. जहाँ सदियों से सुखाड़ पड़ा हो वहाँ से बारिश की आखिरी उम्मीद भी ख़त्म हो जाना तकलीफ देता है. पडोसी देश पाकिस्तान से कुछ ऐसी ह खबर आ रही है जो समस्त कला प्रेमियों के लिए अत्यंत दुखद है. बीते दिनों तब आसमां जहांगीर की मृत्यु हुई थी तब भी लोग सदमें में आ गए थे. और अब मदीहा गौहर. . .
विश्व-प्रसिद्ध रंगकर्मी तथा पाकिस्तान की अजोका थियेटर की संस्थापक और कलात्मक निर्देशक मदीहा गौहर का 62 वर्ष की आयु में कैंसर से तीन साल की लड़ाई के बाद बुधवार, 25 अप्रैल 2018 को लाहौर में निधन हो गया। 21 सितम्बर 1956 को जन्मी अभिनेता, निर्देशक, नाटककार और महिला अधिकार कार्यकर्ता मदीहा गौहर को थियेटर के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन के प्रति उनके जुनून और भारत-पाकिस्तान के बीच मैत्री एवं शांति को बढ़ावा देने के लिये किये गये उनके निरंतर अथक प्रयासों के लिये दोनों मुल्क़ों के लोगों द्वारा काफी सम्मान प्राप्त था। उन्होंने 1984 में अजोका थियेटर की स्थापना की और नियमित रूप से भारतीय कलाकारों के साथ सहयोग किया।
अजोका के नाटकों ने मानवाधिकारों से संबंधित मुद्दों को हमेशा बेहद मज़बूती के साथ उठाया है, ख़ास तौर से महिला साक्षरता, आॅनर किलिंग, बालिकाओं के अधिकार, स्वास्थ्य और परिवार नियोजन जैसे मुद्दों को लेकर उसके काम का एक व्यापक असर समाज पर पड़ा है, ऐसा माना जाता है।
टोबा टेक सिंह, एक थी नानी, बुल्हा, लेटर टू अंकल सैम, मेरा रंग दे बसंती चोला, दारा, कौन है ये ग़ुस्ताख़ और लो फिर बसंत आयी अजोका के सबसे यादगार नाटकों में से हैं। मदीहा के नाटकों में पश्चिमी रंग-पद्धतियों और युक्तियों के बजाय पाकिस्तान की ‘भाण्ड‘ और ‘नौटंकी‘ जैसी वाचिक परंपराओं के नाट्य-तत्वों का भरपूर उपयोग देखने में आता है।
अजोका ने भारत, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, ओमान, ईरान, मिस्र, हांगकांग, अमेरिका, इंग्लैण्ड और नॉर्वे समेत पूरे विश्व में समसामयिक ज्वलंत विषयों पर केन्द्रित अपने नाटकों का प्रदर्शन किया है।
धार्मिक कट्टरपंथ और राजनीतिक दबावों से निरंतर मुठभेड़ करते हुए अजोका थियेटर का नेतृत्व और सामाजिक बदलाव के लिये प्रतिबद्ध थियटर करने के लिये नीदरलैण्ड का प्रतिष्ठित प्रिंस क्लॉस अवॉर्ड पाने वाली पहली पाकिस्तानी रंगकर्मी और कलाकार मदीहा गौहर की सराहना पूरी दुनिया में की जाती रही है। 2005 में पाकिस्तान से नोबेल शांति पुरस्कार के लिए उन्हें नामित भी किया गया था।
मदीहा का विवाह प्रसिद्ध लेखक और निर्देशक शाहिद नदीम से हुआ था और वे जानी-मानी अभिनेता फरील गौहर की बड़ी बहन थीं। मदीहा अपने पीछे पति शाहिद नदीम और दो पुत्रों- सारंग और निर्वाण को छोड़ गयी हैं। रंगमंच को राजनीतिक सवालों से जोड़ने में और टीवी के लिये उनके योगदानों को कभी भूल पाना मुमकिन नहीं हो पायेगा। जनता की एक प्रतिबद्ध रंगकर्मी को सादर श्रद्धांजलि और सलाम!
मदीहा गौहर को श्रद्धांजलि देती कुछ ट्वीट्स:
पाकिस्तानी पत्रकार एवं कांग्रेस नेता शशि थरूर की कथित महिला मित्र मेहर तरार का ट्वीट
इस स्टोरी को कृष्ण मोहन जी ने किया है. मोहन जी थियेटर की पढाई कर रहे है. खुद लिखते भी है, निर्देशित भी करते है, और अभिनय भी. आजकल इलाहाबाद में डेरा जमाये हुए है. कृष्ण मोहन जी से व्यक्तिगत रूप से जुड़ने के लिए आप उनको फेसबुक पर फॉलो भी कर सकते है और उनको मेल भी. इसी तरह की बेजोड़ स्टोरी के लिए हमारे पेज को लाईक एवं शेयर करें.