बिना हिन्दू-मुस्लिम एंगल के रेप का कवरेज मीडिया से नहीं संभव है क्या ?
बिहार के मुजफ्फरपुर में हुए बालिका गृह काण्ड की जिस तरह से रिपोर्टिंग की गयी है वह काफी हद तक ये दिखाता है कि मीडिया ने किस कदर इस काण्ड को सिरे से ढ़ँकने की कोशिश की है. कहते हैं कि सरकार तो आती जाती रहती है लेकिन असल में राज्य और देश को तो उसके ब्यूरोक्रेट्स और अधिकारी ही चलाते हैं. एक बार के लिए जब नेता भ्रष्ट हो जाए तो राज्य फिर भी बच सकता है (अभी तक तो बचा हुआ है) लेकिन जब कोई ब्यूरोकेट्स या फिर अधिकारी अगर भ्रष्ट हो जाए तो नुकसान का अंदाज़ा लगाना नामुमकिन हो जाएगा. ये पूरा काण्ड एक अधिकारी के सूझबुझ से ही सामने आया है और वो हैं श्री अतुल प्रसाद. बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग के मुख्य सचिव अतुल प्रसाद के आदेश पर ही पूरे प्रदेश के 38 जिलों की 110 संस्थाओं का सोशल ऑडिट हुआ था, जिसमें पता चला था कि मुजफ्फरपुर में बच्चियों के साथ नृशंसता हुई है. इस सोशल ऑडिट को मुंबई की संस्था टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के द्वारा करवाया गया था. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की कोशिश टीम ने इस ऑडिट को पूरा किया था. इसके हेड थे असिस्टेंट प्रोफ़ेसर श्री मो. तारिक. मो. तारिक के देख रेख में ही पूरी ऑडिट की गयी थी.
एक इंटरव्यू में श्री तारिक बता रहे थे कि हमारी टीम कोशिश ने मई के पहले सप्ताह में बिहार सरकार को ऑडिट की पूरी रिपोर्ट कम्पाइल करके सौंप दी थी. और साथ में यह भी ब्रीफ दे दिया गया था कि फलाने जगह पर किसी बड़े घटना की होने की आशंका है. खैर सरकार चाहती तो आसानी से इस पुरे रिपोर्ट को बंद डिब्बे में डाल सकती थी. क्योंकि किसी को भी ये नहीं पता था कि ये कब हुआ और ये होता क्या है. पब्लिकली इस सोशल ऑडिट के बारे में अधिकतर लोगों के पास कोई जानकरी नहीं थी. लेकिन यहाँ पर सरकार ने अपना काम किया और एक जाँच टीम को काम पर लगा दिया. जाँच टीम जब छानबीन करना शुरू की तब पत्ते परत दर परत खुलती गयी और एक एक करके सारी गुथ्थी सुलझती गयी. लेकिन जब तक गुथ्थी सुलझती तब तक बहुत देर हो चुकी थी. 34 मासूम बच्चियों की अस्मत लूटी जा चुकी थी. वो बच्ची जिसकी उम्र 7 से 14 साल के बीच है. जिस उम्र में उन मासूमों के हाथ में खिलौना होना चाहिए था उस उम्र में कुछ दरिंदे उन बच्चियों को नरक में धकेल चुका था.
अब तक आये रिपोर्ट के अनुसार:
- स्पेशल पोस्को कोर्ट के सामने दर्ज हुए बयान में एक बच्ची बोली कि उनके साथ मारपीट की जाती थी, ड्रग्स के इंजेक्शन दिए जाते थे और लगभग हर रात उनका रेप होता था.
- जैसे ही शाम होती थी हम सब डर जाते थे. पुरे शेल्टर होम का माहौल आतंकित रहता था.
- यहाँ रात को कई और लोग आते थे. फिर उनके द्वारा किए गए किसी भी शिकायत पर हंटर वाले अंकल हमें छड़ी से खूब पीटते थे.
- दस साल की एक बच्ची का बयान यह था कि उसके रेप से पहले उसे नशीली दवाई (ड्रग्स) दी जाती थी जिससे उसे कुछ भी पता नहीं चलता था. सुबह जब आँख खुलती थी तो प्राइवेट पार्ट में काफी दर्द होता था और घाव कि निशान होते थे.
- जब हममें से कोई भी रेप या किसी भी तरह के दुर्व्यवहार का विरोध करते थे तो हमें बुरी तरह से पीटा जाता था और फिर हमें खाना नहीं दिया जाता था. फिर हमें हंटर वाले अंकल से माफ़ी मांगनी होती थी.
- हमें खाने के साथ कुछ और भी खिला दिया जाता था जिससे हमें कुछ अजीब सा महसूस होता था और फिर हमें किसी दूसरे कमरे में सोने के लिए भेज दिया जाता था. सुबह उठने पर मेरे कपड़े जमीन पर परे मिलते थे.
- हंटर वाले अंकल लगभग हर दिन किसी न किसी को अपने ऑफिस में बुलाते थे और हमारी प्राइवेट पार्ट को सहलाते थे. ये इतना बुरा और घिनौना था कि कई बार घाव हो जाती थी.
- हमें रात को नंगे सोने पर मज़बूर किया जाता था.
- यह सब इतना ज्यादा हो चुका था कि बयान देते हुए एक बच्ची को जब उसका फोटो दिखाया गया तब वो उस पर थूक दी.
- एक लड़की जब विरोध की थी तब उसे मार दिया गया और रिक्शा में ले जाकर कहीं दफना दिया गया.
34 बच्चियों से हुए रेप के मामले में पुलिस ने कोर्ट में 16 पन्नों की जो चार्जशीट दाखिल की है, उसमें कई ऐसी बातें लिखी हैं जिन्हें पढ़कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बालिका गृह नामक यातना गृह में उन 34 बच्चियों पर क्या गुजरी होगी. 28 जुलाई को कोर्ट में पेश चार्जशीट के मुताबिक इस बालिका गृह में एक कमरा ऐसा भी था, जो ऑपरेशन थियेटर था. बच्चियों से लगातार रेप होता था और अगर इस दौरान कोई बच्ची गर्भवती हो जाती थी, तो इस ऑपरेशन थियेटर में उसका गर्भपात कर दिया जाता था. पुलिस को इस बालिका गृह से 67 किस्म की नशीली दवाइयां भी मिली हैं, जिनका इस्तेमाल कर बच्चियों के साथ रेप किया जाता था. कहने को तो ऐसी कई घिनौनी और अमानवीय बातें है जिसको तो ना हम लिख सकते हैं और ना ही आप पढ़ सकते हैं. लेकिन एक बार दिमाग पर जोर डालकर उस इंसान के बारे में सोचा जाए जो इस तरह के कुकर्म को हद से ज्यादा आगे तक ले गया है. और इस पूरी घटना के मास्टरमाइंड है ब्रजेश ठाकुर (शेल्टर होम की बच्चियों की लिए हंटर वाले अंकल). ब्रजेश ठाकुर मुजफ्फरपुर में ही तीन अख़बारों का मालिक है. हिंदी में प्रातः कमल, अंग्रेजी में न्यूज नेक्स्ट और उर्दू में हालात-ए-बिहार. इसमें अंग्रेजी में छपने वाले दैनिक न्यूज नेक्स्ट की एडिटर इन चीफ है इन्हीं की बेटी निकिता आनंद.
इन्हीं सब बलबूते पर ब्रजेश ने एक शेल्टर होम खोला. स्वयंसेवी संस्था सेवा संस्थान संकल्प एवं विकास समिति नामक इस शेल्टर होम को पहली बार 31 अक्टूबर 2013 को काम मिला था. नियम कहता है कि हर तीन साल में ऐसी संस्था का ऑडिट होता है और उसके बाद ही फंड जारी किया जाता है. लेकिन इस संस्था का ऑडिट नहीं किया गया और लगातार फंड जारी होता रहा. हर छह महीने पर इस संस्था को 19 लाख रुपये का फंड दिया जाता रहा. हर साल इस संस्था को 50 बच्चों के रखरखाव के लिए लगभग 14 लाख रुपये का फंड दिया जाता रहा. इसके अलावा इस संस्था के कर्मचारियों और अधिकारियों को वेतन के लिए हर साल लगभग 14.50 लाख रुपये मिलते रहे हैं. इस पूरी संस्था के ऑडिट का जिम्मा रवि रोशन के पास था, जो बिना ऑडिट के ही इस संस्था को पैसे दिला देता था. रवि रोशन गिरफ्तार हो चुका है. मुजफ्फरपुर की पूरी बाल कल्याण समिति को भंग किया जा चुका है.
क्योंकि ब्रजेश कोई आम आदमी नहीं था सो उसकी पहुँच भी खास लोगों तक थी. राजनीति में जाने का सपना पालने वाले ब्रजेश का राजनितिक पहुँच इतना ज्यादा था कि नब्बे के दशक में इनका उठना-बैठना टॉप बाहुबली नेता आनंद मोहन और अशोक सम्राट तक से था. कहते हैं कि आनंद मोहन को उम्रकैद की सजा के बावजूद ब्रजेश उनसे बेरोकटोक मिलता रहा. तो इस तरह से सरकारी तंत्र के अंदर भी उनकी गहरी पैठ थी. उसके जिस अखबार को दो हज़ार लोग भी नहीं पढ़ते हैं उसे लाखों का सरकारी विज्ञापन मिलता था. ब्रजेश ठाकुर इन्हीं सब चीजों का नाजायज फायदा उठाकर अपने कुकर्म को दिन प्रतिदिन बढ़ाता जा रहा था. हालाँकि इस मामले में मुजफ्फरपुर की एसएसपी हरप्रीत कौर काफी तत्परता दिखा रही है और वो खुद हर तरह के एक्टिविटी को मॉनिटर कर रही है.
अब यहाँ से बात आती है मीडिया के नजरिये पर. मई में रिपोर्ट सबमिट होने के बाद जब जाँच शुरू होती है तब सबसे पहले उसके असिस्टेंट डायरेक्टर सस्पेंड होते हैं. और फिर ब्रजेश ठाकुर समेत आठ लोगों की गिरफ़्तारी होती है. शेल्टर होम में ताला लग जाता है और 44 बच्चे को शिफ्ट कर दिया जाता है. इतना कुछ होने के बावजूद वहाँ के अखबारों में एक छोटी सी खबर छपती है और यही खबर पटना के अखबारों में एक कॉलम में सिमट जाती है. दिल्ली और मुंबई तक तो खबर पहुँच ही नहीं पाती है. फिर शिफ्ट किए गए बच्चियों का जब अलग-अलग जगहों पर मेडिकल करवाया जाता है तो पता चलता है कि उनके साथ रेप हुआ है. वो खबर मुजफ्फरपुर में तो कवरेज पाती है लेकिन पटना में फिर से नहीं. फाइनली पीएमसीएच की मेडिकल रिपोर्ट कि बाद यह एक नेशनल न्यूज बन पाती है कि मुजफ्फरपुर के एक शेल्टर होम में 29 बच्चियों के साथ रेप हुआ है. तब जाकर सरकार की भी नींद खुलती है और वो सीबीआई जाँच की आदेश देती है.
इस मास रेप केस पर सारी मीडिया इतनी चुप क्यों है यह समझ से परे है. लगभग 40 बच्चियों के साथ रेप हो गया और कहीं भी कोई कैंडल मार्च नहीं दिखा. कोई सोशल मीडिया आउटरेज नहीं और ना ही हाथों में प्लेकार्ड्स लिए कथित एक्टिविस्ट्स. और तो और मुजफ्फरपुर और पटना की लोकल मीडिया भी बिलकुल खामोश बैठी है.
क्या कारण हो सकता है, क्या ब्रजेश ठाकुर का मीडिया कनेक्शन? या फिर यह रेप किसी आश्रम, मदरसा या फिर मिशनरी में नहीं हुआ है? या फिर इसमें कोई हिन्दू-मुस्लिम वाला कोना नहीं है तो मीडिया को कुछ मसाला नहीं मिल पा रहा है? या फिर पोलिटिकल ड्रामा नहीं है? या फिर इन सभी बच्चियों का अनाथ होना इनका गुनाह है? हम एक समाज के तौर पर नाकामयाब हो रहे हैं जब हम ऐसी परिस्थिति में पीड़ितों के लिए न्याय के पक्ष में खड़े नहीं होते हैं. वास्तव में सच तो यह है कि हम भी एक समाज के तौर पर अब हर विषय में एक धार्मिक और राजनैतिक एंगल की तलाश कर ही लेते हैं. ना मिले तो चुप ही रहते हैं. लेकिन अब तो कुछ करना ही होगा. हमें अपने अंदर झाँकना ही होगा. तब एक निर्भया थी और यहाँ तो निर्भया की पूरी फ़ौज है.
न्याय के इंतज़ार में. . .
एक जिम्मेदार नागरिक.