सियाचिन ग्लेशियर: ये है कहाँ और इसका विवाद क्या है?
दुनिया में कई ऐसे दुर्गम जगह हैं जहाँ इंसान नहीं जा सकते। जाने की चाहत रखते हुए भी पर्याप्त साधन और सेक्युरिटी के मद्देनज़र वहां नहीं जाया जा सकता है। हिंदुस्तान में एक ऐसी ही जगह है – सियाचिन ग्लेशियर। न्यूज सोर्स की माने तो अब सियाचिन ग्लेशियर को आम आदमी के लिए भी खोला जाएगा लेकिन इससे पहले तो यहाँ पर सिर्फ इंडियन आर्मी ही रहते आयी है। कितना कठिन है वहाँ का जीवन और कैसे रहते हैं हमारे जवान वहाँ पर और साथ ही क्या विवाद रहा है इस ग्लेशियर पर पाकिस्तान के साथ यह सबकुछ हम देखने वाले हैं।
सियाचिन ग्लेशियर का भूगोल और वहाँ सैनिकों की तैनाती। – Know the Geography of Siachen Glacier.
सियाचिन ग्लेशियर – पूर्वी कराकोरम/हिमालय, में स्थित है। यह भारत-पाक नियंत्रण रेखा यानी की एलओसी के पास स्थित है। सियाचिन ग्लेशियर को पूरी दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित युद्ध स्थल के रूप में जाना जाता है। क्यों जाना जाता है यह आपको आगे पता चलेगा। समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई लगभग 17,770 फीट है। सियाचिन ग्लेशियर का कुल क्षेत्रफल लगभग 78 किमी है। सियाचिन, काराकोरम के पांच बड़े ग्लेशियरों में सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है। विश्व का जो पहला सबसे बड़ा ग्लेशियर है, वो है ताजिकिस्तान का फेदचेंको ग्लेशियर।
सियाचिन, जो कि दुनिया का सबसे ऊंचा रणक्षेत्र है, जहां दुश्मन की गोली से ज्यादा बेरहम और क्रूर वहाँ का मौसम होता है। सियाचिन में भारतीय फौजियों की तैनाती का यह एक कड़वा सच है। इस बर्फीले रेगिस्तान में जहां कुछ नहीं उगता, वहां सैनिकों की तैनाती का एक दिन का खर्च 4 से 8 करोड़ रुपए आता है। क्योंकि यह देश की सुरक्षा का सवाल है। पिछले तीन दशकों से यहां भारतीय सेना पाकिस्तान के नापाक इरादों को नाकाम करती आयी है। एक रिपोर्ट की माने तो सियाचिन की रक्षा करते हुए 1984 से अब तक 869 सैनिकों की मौत हो चुकी है।
इनमें से एक जवान हनुमंतप्पा कोप्पाड जो कि हिमस्खलन के कारण बर्फ के निचे दब गया था, उनको 6 दिनों के बाद जिंदा तो निकाल लिया गया मगर कई अंगों के काम नहीं करने के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय फौज की करीब 150 पोस्ट हैं, जिनमें करीब 10 हजार फौजी तैनात रहते हैं। अनुमान है कि सियाचिन की रक्षा पर साल में 1500 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। यहाँ पर अक्सर दिन में तापमान शून्य से 40 डिग्री नीचे और रात में माइनस 70 डिग्री तक चला जाता है। तो आप यहाँ पर जीवन का बस अंदाजा ही लगा सकते हैं। लेकिन भारतीय जवान वहाँ रहते और लड़ते हैं।
सियाचिन में भारतीय फौजों की किलेबंदी इतनी मजबूत है कि पाकिस्तान चाहकर भी इसमें सेंध नहीं लगा सकता। दरअसल, यह सफलता है 1984 के उस मिशन मेघदूत की है, जिसे भारतीय सेना ने सियाचिन पर कब्जे के लिए शुरू किया था। शह और मात के इस खेल में भारत ने पाकिस्तान को जबरदस्त शिकस्त दी। हम मिशन मेघदूत के बारे में आपसे यहाँ पर ज्यादा बात नहीं करेंगे। क्योंकि यह बहुत लंबा हो जाएगा।
विवाद क्या रहा है सियाचिन ग्लेशियर का? – Know about the Siachen Conflict.
1949 के कराची समझौते और 1972 के शिमला समझौते में भारत और पाकिस्तान के बीच यह तय हुआ था कि प्वाइंट NJ 9842 के आगे के दुर्गम इलाके में कोई भी देश नियंत्रण की कोशिश नहीं करेगा। तब तक उत्तर में चीन की सीमा की तरफ प्वाइंट NJ 9842 तक ही भारत पाकिस्तान के बीच सीमा चिन्हित थी, लेकिन पाकिस्तान तो पाकिस्तान है। जिसकी नीयत हमेशा नापाक ही रही है। उसने इस इलाके में पर्वतारोही दलों को जाने की इजाजत देनी शुरू कर दी। अब जब वहाँ पाकिस्तान ने दखल देना शुरू कर दिया तो भारत को भी चौकन्ना होने पर मजबूर होना पड़ा।
जैसा कि हमने आपको पहले बताया सियाचिन ग्लेशियर के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है तो दूसरी तरफ चीना की सीमा अक्साई चीन इस इलाके में है। इसीलिए दोनों देशों पर नजर रखने के लिए सुरक्षा के दृष्टिकोण से यह क्षेत्र भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है। भारत इस बात को हमेशा से समझता रहा था। भारत को सियाचिन में पाकिस्तान के दखल का संदेह पहले से ही हो रहा था। इसीलिए बर्फीले जीवन के अनुभवों के लिए साल 1982 में भारत ने अपने कुछ जवानों को विशेष ट्रेनिंग के लिए अंटार्कटिका भेजा। साल 1984 में पाकिस्तान ने लंदन की एक कंपनी को बर्फ में काम आने वाले साजो-सामान की सप्लाई का ठेका दिया।
इन सब घटनाक्रम को देखते हुए भारत ने 13 अप्रैल 1984 को सियाचिन पर कब्जा करने के लिए ऑपरेशन मेघदूत शुरू कर दिया। हालांकि पाकिस्तान 17 अप्रैल से सियाचिन पर कब्जे का ऑपरेशन शुरू करने वाला था। लेकिन भारत ने तीन दिन पहले ही कार्रवाई कर उसे हैरान कर दिया, लेकिन ये ऑपरेशन आसान नहीं था। ज्ञातव्य है कि अगर ये सूट पाकिस्तान सेना को पहले मिल जाते तो पाकिस्तान की सेना इस जगह पर पहले पहुँच जाती। और फिर सियाचिन की जो छोटी आज हमारे पास है वो हमारे पास नहीं होती।
पाकिस्तान की सेना ने फिर भी 25 अप्रैल 1984 को इस जगह पर चढ़ने की कोशिश की लेकिन ख़राब मौसम और बिना तैयारी के कारण उसे वापस लौटना पड़ा। फिर बाद में जाकर 25 जून, 1987 को पाकिस्तान ने 21 हजार फुट की ऊँचाई पर क्वैड पोस्ट (Quaid post) नामक पोस्ट बनाने में सफलता प्राप्त कर ली थी क्योंकि भारत की सेना के पास गोला-बारूद ख़त्म हो गया था। चूंकि भारत की सेना ने यहाँ पर पहले से कब्ज़ा कर लिया था इसलिए इस ग्लेशियर के ऊपरी भाग पर फिलहाल भारत और निचले भाग पर पाकिस्तान का कब्जा है। सियाचिन ग्लेशियर के 15 किमी पश्चिम में सलतोरो रिज शुरू होता है। सलतोरो रिज तक के इलाके पर भारतीय सेना का नियंत्रण है। सलतोरो रिज के पश्चिम में ग्योंग ग्लेशियर से पाकिस्तानी सेना का नियंत्रण शुरू होता है। भारत यहाँ पर मजबूत स्थिति में बैठा हुआ है।
वर्ष 2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम संधि हो गई। उस समय से इस क्षेत्र में फायरिंग और गोलाबारी होनी बंद हो गई है लेकिन दोनों ओर की सेना तैनात रहती है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी भी दिवाली में सियाचिन जाकर जवानों की हौसला आफजाई करते रहते हैं।
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