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कहानी – पंचलाइट (पंचलैट)

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पिछले पंद्रह महीने से दंड-जुर्माने के पैसे जमा करके महतो टोली के पंचों ने पेट्रोमेक्स खरीदा है इस बार, रामनवमी के मेले में । गाँव में सब मिलाकर आठ पंचायतें हैं । हरेक जाति की अलग अलग ‘सभाचट्टी ‘ है । सभी पंचायतों में दरी, जाजिम , सतरंजी और पेट्रोमेक्स हैं – पेट्रोमेक्स, जिसे गाँव वाले पंचलैट कहते हैं ।

पंचलैट खरीदने के बाद पंचो ने मेले में ही तय किया – दस रुपये जो बच गए हैं, इससे पूजा सामग्री खरीद ली जाए – बिना नेम टेम के कल-कब्जे वाली चीज़ का पुन्याह नहीं करना चाहिए । अँगरेज़ बहादुर के राज में भी पुल बनाने के पहले बलि दी जाती थी ।

मेले में सभी दिन-दहाड़े ही गाँव लौटे; सबसे आगे पंचायत का छडीदार पंचलैट का डिब्बा माथे पर लेकर और उसके पीछे सरदार, दीवान, और पंच वगैरह । गाँव के बाहर ही ब्रह्मण टोली के फुटंगी झा ने टोक दिया – कितने मे लालटेन खरीद हुआ महतो ?

. . . .देखते नहीं हैं, पंचलैट है! बामन टोली के लोग ऐसे ही बात करते हैं । अपने घर की ढिबरी को भी बिजली-बत्ती कहेंगे और दूसरों के पंचलैट को लालटेन ।

टोले भर के लोग जमा हो गए । औरत-मर्द, बूढ़े-बच्चे सभी कामकाज छोड़कर दौड़ आये – चल रे चल ! अपना पंचलैट आया है, पंचलैट ! छड़ीदार अगनू महतो रह- रहकर लोगों को चेतावनी देने लगा – हाँ, दूर से, जरा दूर से ! छू-छा मत करो, ठेस न लगे ।

सरदार ने अपनी स्त्री से कहा- सांझ को पूजा होगी; जल्द से नहा-धोकर चौका-पीढ़ा लगाओ ।

टोले की कीर्तन-मंडली के मूलगैन ने अपने भगतिया पच्च्को को समझा कर कहा- देखो, आज पंचलैट की रौशनी मे कीर्तन होगा । बेताले लोगों से पहले ही कह देता हूँ , आज यदि आखर धरने में डेढ़-बेड़ हुआ, तो दूसरे दिन से एकदम बैकाट ।


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औरतों की मंडली मे गुलरी काकी गोसाईं का गीत गुनगुनाने लगी । छोटे-छोटे बच्चों ने उत्साह के मारे बेवजह शोरगुल मचाना शुरू किया ।

सूरज डूबने के एक घंटा पहले ही टोले भर के लोग सरदार के दरवाजे पर आकर खड़े हो गए- पंचलैट, पंचलैट !
पंचलैट के सिवा और कोई गप नहीं, कोई दूसरी बात नहीं । सरदार ने गुड़गुड़ी पीते हुआ कहा- दुकानदार ने पहले सुनाया, पूरे पांच कौड़ी पांच रुपया । मैंने कहा की दुकानदार साहेब मत समझिये की हम एकदम देहाती हैं । बहुत बहुत पंचलैट देखा है । इसके बाद दुकानदार मेरा मूंह देखने लगा । बोला, लगता है आप जाती के सरदार हैं । ठीक है, जब आप सरदार होकर खुद पंचलैट खरीदने आये हैं तो जाइए, पूरे पांच कौड़ी में आपको दे रहे हैं ।

दीवान जी ने कहा — अलबत्ता चेहरा परखने वाला दूकानदार है । पंचलैट का बक्सा दूकान का नौकर देना नहीं चाहता था । मैंने कहा, देखिये दूकानदार साहेब, बिना बक्सा पंचलैट कैसे ले जायेंगे । दूकानदार ने नौकर को डांठते हुए कहा, क्यों रें ! दीवान जी की आँख के आगे ‘धुरखेल’ करता है ; दे दो बक्सा ।

टोले के लोगो ने अपने सरदार और दीवान को श्रद्धा-भरी निगाहों से देखा । छड़ीदार ने औरतों की मंडली को सुनाया – रास्ते मे सन्न-सन्न बोलता था पंचलैट ।

लेकिन . . . . ऐन मौके पर ‘लेकिन’ लग गया ! रुदल साह बनिए की दूकान से तीन बोतल किरासन तेल आया और सवाल पैदा हुआ, पंचलैट को जलाएगा कौन ?

यह बात पहले किसी के दिमाग में नहीं आई थी । पंचलैट खरीदने के पहले किसी ने न सोचा । खरीदने के बाद भी नहीं । अब पूजा की सामग्री चौकी पर सजी हुई है, किर्तनिया लोग खोल-ढोल-करताल खोल कर बैठे हैं, और पंचलैट पड़ा हुआ है । गाँव वालो ने आज तक कोई ऐसी चीज़ नहीं खरीदी, जिसमे जलाने-बुझाने की झंझट हो । कहावत है न, भाई रे, गाय लूं ? तो दुहे कौन ? . . . . लो मजा ! अब इस कल-कब्जे वाली चीज़ को कौन बाले ?

यह बात नहीं की गाँव भर मे कोई पंचलैट जलाने वाला नहीं । हरेक पंचायत मे पंचलैट है, उसके जलाने वाले जानकार हैं । लेकिन सवाल है कि पहली बार नेम-टेम करके, शुभ-लाभ करके, दूसरी पंचायत के आदमी की मदद से पंचलैट जलेगा? इससे तो अच्छा है कि पंचलैट पड़ा रहे । ज़िन्दगी भर ताना कौन सहे ! बात-बात मे दूसरे टोले के लोग कूट करेंगे — तुम लोगों का पंचलैट पहली बार दूसरे के हाथ ।।।।।! न, न ! पंचायत की इज्जत का सवाल है । दूसरे टोले के लोगो से मत कहिये ।

चारों ओर उदासी छा गयी । अन्धेरा बढ़ने लगा । किसी ने अपने घर मे आज ढिबरी भी नहीं जलाई थी । . . . . . आखिर पंचलैट के सामने ढिबरी कौन बालता है ।

सब किये-कराये पर पानी फिर रहा था । सरदार, दीवान और छड़ीदार कि मुंह मे बोली नहीं । पंचों के चेहरे उतर गए थे । किसी ने दबी आवाज़ मे कहा — कल-कब्जे वाली चीज़ का नखरा बहुत बड़ा होता है ।

एक नौजवान ने आकर सूचना दी — राजपूत टोली के लोग हसतें- हसतें पागल हो रहे हैं । कहते हैं, कान पकड़ कर पंचलैट के सामने पांच बार उठो-बैठो, तुरंत जलने लगेगा ।

पंचों ने सुनकर मन-ही-मन कहा — भगवान् ने हसने का मौका दिया है, हसेंगे नहीं ? एक बूढ़े ने लाकर खबर दी — रूदल साह बनिया भारी बतंगड़ आदमी है । कह रहा है पंचलैट का पम्पू ज़रा होशियारी से देना ।

गुलरी काकी की बेटी मुनरी के मुंह में बार-बार एक बात आकर मन में लौट जाती है । वह कैसे बोले ? वह जानती है कि गोधन पंचलैट बालना जानता है । लेकिन, गोधन का हुक्का-पानी पंचायत से बंद है । मुनरी कि माँ ने पंचायत से फरियाद की थी कि गोधन रोज उसकी बेटी को देखकर ‘सलम-सलम’ वाला सलीमा का गीत गाता है – हम तुमसे मोहब्बत करके सलम । पंचों की निगाह पर गोधन बहुत दिन से चढ़ा हुआ था। दूसरे गाँव से आकर बसा है गोधन, और अब तक टोले के पंचों को पान-सुपारी खाने के लिए भी कुछ नहीं दिया । परवाह ही नहीं करता । बस, पंचों को मौका मिला । दस रुपया जुर्माना । न देने से हुक्का-पानी बंद । ।।।।आज तक गोधन पंचायत से बाहर है । उससे कैसे कहा जाए ! मुनरी उसका नाम कैसे ले ? और उधर जाती का पानी उतर रहा है ।

मुनरी ने चालाकी से अपनी सहली कनेली के कान में बात दाल दी — कनेली ! ।।।चिगो, चिध, -s -s , चीन. . . .

कनेली मुस्कराकर रहा गयी –गोधन।।।तो बंद है । मुनरी बोली –तू कह तो सरदार से ।

‘गोधन जानता है पंचलैट बालना ।’ कनेली बोली ।

कौन, गोधन ? जानता है बालना ? लेकिन . . . .

सरदार ने दीवान की ओर देखा और दीवान ने पंचों की ओर । पंचों ने एक मत होकर हुक्का-पानी बंद किया है । सलीमा का गीत गाकर आँख का इशारा मारने वाले गोधन से गाँव भर के लोग नाराज़ थे । सरदार ने कहा — जाति की बंदिश क्या, जबकि जाति की इज्जत ही पानी में बही जा रही है ! क्यों जी दीवान ?

दीवान ने कहा — ठीक है ।

पंचों ने भी एक स्वर में कहा — ठीक है । गोधन को खोल दिया जाय ।

सरदार ने छड़ीदार को भेजा । छड़ीदार वापस आकर बोला — गोधन आने को राज़ी नहीं हो रहा है । कहता है, पंचों की क्या परतीत है ? कोई कल-कब्ज़ा बिगड़ गया तो मुझे ही दंड जुर्माना भरना पड़ेगा ।

छड़ीदार ने रोनी सूरत बना कर कहा — किसी तरह से गोधन को राज़ी करवाइए, नहीं तो कल से गाँव मे मुंह दिखाना मुश्किल हो जाएगा ।

गुलरी काकी बोली — ज़रा मैं देखूं कहके ।

गुलरी काकी उठ कर गोधन के झोपड़े की ओर गयी और गोधन को मना लाई । सभी के चेहरे पर नयी आशा की रोशनी चमकी । गोधन चुपचाप पंचलैट में तेल भरने लगा । सरदार की स्त्री ने पूजा सामग्री के पास चक्कर काटती हुई बिल्ली को भगाया । कीर्तन-मंडली के मूलगैन मुरछल के बालों को संवारने लगा । गोधन ने पूछा — इस्पिरिट कहाँ है ? बिना इस्पिरिट के कैसे जलेगा ?

. . . . लो मजा ! अब यह दूसरा बखेड़ा खड़ा हुआ । सभी ने मन ही मन सरदार, दीवान और पंचों की बुद्धि पर अविश्वास प्रकट किया — बिना बूझे-समझे काम करते हैं यह लोग । उपस्थित जन-समूह में फिर मायूसी छा गई । लेकिन, गोधन बड़ा होशियार लड़का है । बिना इस्पिरिट के ही पंचलैट जलाएगा । ।।।।थोडा गरी का तेल ला दो । मुनरी दौड़कर गई और एक मलसी गरी का तेल ले आई । गोधन पंचलैट में पम्प देने लगा ।

पंचलैट की रेशमी थैली मे धीरे-धीरे रौशनी आने लगी । गोधन कभी मुंह से फूंकता, कभी पंचलैट की चाबी घुमाता । थोड़ी देर के बाद पंचलैट से सनसनाहट की आवाज़ निकालने लगी और रोशनी बढती गई । लोगों के दिल का मैल दूर हो गया । गोधन बड़ा काबिल लड़का है ।

अंत में पंचलैट की रोशनी से सारी टोली जगमगा उठी, तो कीर्तनिया लोगों ने एक स्वर में, महावीर स्वामी की जय-ध्वनि के साथ कीर्तन शुरू कर दिया । पंचलैट की रोशनी में सभी के मुस्कराते हुए चेहरे स्पष्ट हो गए । गोधन ने सबका दिल जीत लिया । मुनरी ने हरकत-भरी निगाह से गोधन की ओर देखा । आँखें चार हुई और आँखों ही आँखों मे बातें हुई – कहा सुना माफ़ करना ! मेरा क्या कसूर ?

सरदार ने गोधन को बहुत प्यार से पास बुला कर कहा — तुमने जाति की इज्जत रखी है। तुम्हारे सात खून माफ़ । खूब गाओ सलीमा का गाना ।

गुलरी काकी बोली — आज रात में मेरे घर में खाना गोधन।

गोधन ने एक बार फिर मुनरी की ओर देखा। मुनरी की पलके झुक गई ।

कीर्तनिया लोगो ने एक कीर्तन समाप्त कर जयध्वनि की — जय हो ! जय हो! ।।।।पंचलैट के प्रकाश में पेड़-पौधों का पत्ता-पत्ता पुलकित हो रहा था।

वीडियो: देखिए रबीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी “भिखारिन”

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1 thought on “कहानी – पंचलाइट (पंचलैट)

  1. its in my book same to samegood

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