Tag: हिंदी कहानी
शंखनाद – प्रेमचंद की कहानी
भानु चौधरी अपने गाँव के मुखिया थे। गाँव में उनका बड़ा मान था। दारोगा जी उन्हें टाट बिना जमीन पर न बैठने देते। मुखिया साहब की ऐसी धाक बँधी हुई थी कि उनकी मरजी बिना गाँव में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता था। पूरा पढ़ें...
विश्वास – प्रेमचंद की कहानी
उन दिनो मिस जोसी बम्बई सभ्य-समाज की राधिका थी। थी तो वह एक छोटी सी कन्या पाठशाला की अध्यापिका पर उसका ठाट-बाट, मान-सम्मान बड़ी-बडी धन-रानियों को भी लज्जित करता था। पूरा पढ़ें...
विजय – प्रेमचंद की कहानी
शहज़ादा मसरूर की शादी मलका मख़मूर से हुई और दोनों आराम से ज़िन्दगी बसर करने लगे। मसरूर ढोर चराता, खेत जोतता, मख़मूर खाना पकाती और चरखा चलाती। पूरा पढ़ें...
वासना की कड़ियाँ – प्रेमचंद की कहानी
बहादुर, भाग्यशाली क़ासिम मुलतान की लड़ाई जीतकर घमंउ के नशे से चूर चला आता था। शाम हो गयी थी, लश्कर के लोग आरामगाह की तलाश मे नज़रें दौड़ाते थे, पूरा पढ़ें...
वफ़ा का खंजर – प्रेमचंद की कहानी
जयगढ़ और विजयगढ़ दो बहुत ही हरे-भ्ररे, सुसंस्कृत, दूर-दूर तक फैले हुए, मजबूत राज्य थे। दोनों ही में विद्या और कलाद खूब उन्न्त थी। दोनों का धर्म एक, रस्म-रिवाज एक पूरा पढ़ें...
लैला – प्रेमचंद की कहानी
यह कोई न जानता था कि लैला कौन है, कहां है, कहां से आयी है और क्या करती है। एक दिन लोगों ने एक अनुपम सुंदरी को तेहरान के चौक में अपने डफ पर हाफिज की एक गजल झूम-झूम कर गाते सुना – पूरा पढ़ें...
राष्ट्र का सेवक – प्रेमचंद की कहानी
राष्ट्र के सेवक ने कहा—देश की मुक्ति का एक ही उपाय है और वह है नीचों के साथ भाईचारे का सुलूक, पतितों के साथ बराबरी को बर्ताव। दुनिया में सभी भाई हैं, कोई नीचा नहीं, कोई ऊंचा नहीं। पूरा पढ़ें...
रामलीला – प्रेमचंद की कहानी
इधर एक मुद्दत से रामलीला देखने नहीं गया। बंदरों के भद्दे चेहरे लगाये,आधी टाँगों का पाजामा और काले रंग का ऊँचा कुरता पहने आदमियों को दौड़ते, हू-हू करते देख कर अब हँसी आती है पूरा पढ़ें...
राजहठ – प्रेमचंद की कहानी
दशहरे के दिन थे, अचलगढ़ में उत्सव की तैयारियॉँ हो रही थीं। दरबारे आम में राज्य के मंत्रियों के स्थान पर अप्सराऍं शोभायमान थीं। धर्मशालों और सरायों में घोड़े हिनहिना रहे थे। पूरा पढ़ें...
र्स्वग की देवी – प्रेमचंद की कहानी
भाग्य की बात! शादी-विवाह में आदमी का क्या अख्तियार! जिससे ईश्वर ने, या उनके नायबों- ब्राह्मणों ने तय कर दी, उससे हो गयी। बाबू भारतदास ने लीला के लिए सुयोग्य वर खोजने में कोई बात उठा नहीं रखी। पूरा पढ़ें...