कहानी – आख़िरी मंज़िल

आह ? आज तीन साल गुजर गए, यही मकान है, यही बाग है, यही गंगा का किनारा, यही संगमरमर का हौज। यही मैं हूँ और यही दरोदीवार। मगर इन चीजों से दिल पर कोई असर नहीं होता। पूरा पढ़ें...

कहानी – आख़िरी मंज़िल