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तिरसूल – प्रेमचंद की कहानी
अंधेरी रात है, मूसलाधार पानी बरस रहा है। खिड़कियों पर पानीके थप्पड़ लग रहे हैं। कमरे की रोशनी खिड़की से बाहर जाती है तो पानी की बड़ी-बड़ी बूंदें तीरों की तरह नोकदार, लम्बी, मोटी, गिरती हुई नजर आ जाती हैं। पूरा पढ़ें...