ख़ुदी – प्रेमचंद की कहानी

मुन्नी जिस वक्त दिलदारनगर में आयी, उसकी उम्र पांच साल से ज्यादा न थी। वह बिलकुल अकेली न थी, माँ-बाप दोनों न मालूम मर गये या कहीं परदेस चले गये थे। पूरा पढ़ें...

ख़ुदी – प्रेमचंद की कहानी

जेल – प्रेमचंद की कहानी

मृदुला मैजिस्ट्रेट के इजलास से जनाने जेल में वापस आयी, तो उसका मुख प्रसन्न था। बरी हो जोने की गुलाबी आशा उसके कपोलों पर चमक रही थी। पूरा पढ़ें...

जेल – प्रेमचंद की कहानी

ज्योति – प्रेमचंद की कहानी

विधवा हो जाने के बाद बूटी का स्वभाव बहुत कटु हो गया था। जब बहुत जी जलता तो अपने मृत पति को कोसती-आप तो सिधार गए, मेरे लिए यह जंजाल छोड़ गए । पूरा पढ़ें...

ज्योति –  प्रेमचंद की कहानी

घमण्ड का पुतला – प्रेमचंद की कहानी

शाम हो गयी थी। मैं सरयू नदी के किनारे अपने कैम्प में बैठा हुआ नदी के मजे ले रहा था कि मेरे फुटबाल ने दबे पांव पास आकर मुझे सलाम किया कि जैसे वह मुझसे कुछ कहना चाहता है। पूरा पढ़ें...

घमण्ड का पुतला – प्रेमचंद की कहानी

घरजमाई – प्रेमचंद की कहानी

हरिधन जेठ की दुपहरी में ऊख में पानी देकर आया और बाहर बैठा रहा। घर में से धुँआ उठता नज़र आता था। छन-छन की आवाज भी आ रही थी । पूरा पढ़ें...

घरजमाई – प्रेमचंद की कहानी

गुल्ली डंडा – प्रेमचंद की कहानी

हमारे अंग्रेजी दोस्त मानें या न मानें मैं तो यही कहूंगा कि गुल्ली-डंडा सब खेलों का राजा है। अब भी कभी लड़कों को गुल्ली-डंडा खेलते देखता हूँ, तो जी लोट-पोट हो जाता है कि इनके साथ जाकर खेलने लगूँ। पूरा पढ़ें...

गुल्ली डंडा – प्रेमचंद की कहानी

कहानी – ग़ैरत की कटार

कितनी अफ़सोसनाक, कितनी दर्दभरी बात है कि वही औरत जो कभी हमारे पहलू में बसती थी उसी के पहलू में चुभने के लिए हमारा तेज खंजर बेचैन हो रहा है। पूरा पढ़ें...

कहानी – ग़ैरत की कटार

आत्माराम – प्रेमचंद की कहानी

वेदों-ग्राम में महादेव सोनार एक सुविख्यात आदमी था। वह अपने सायबान में प्रात: से संध्या तक अँगीठी के सामने बैठा हुआ खटखट किया करता था। पूरा पढ़ें...

आत्माराम – प्रेमचंद की कहानी

आत्म-संगीत – प्रेमचंद की कहानी

आधी रात थी। नदी का किनारा था। आकाश के तारे स्थिर थे और नदी में उनका प्रतिबिम्ब लहरों के साथ चंचल। एक स्वर्गीय संगीत की मनोहर और जीवनदायिनी... पूरा पढ़ें...

आत्म-संगीत – प्रेमचंद की कहानी

कहानी – आख़िरी मंज़िल

आह ? आज तीन साल गुजर गए, यही मकान है, यही बाग है, यही गंगा का किनारा, यही संगमरमर का हौज। यही मैं हूँ और यही दरोदीवार। मगर इन चीजों से दिल पर कोई असर नहीं होता। पूरा पढ़ें...

कहानी – आख़िरी मंज़िल