कहानी – डिमॉन्सट्रेशन

मेज पर ड्रामे की हस्तलिपि पड़ी हुई थी। ड्रामेटिस्ट ने उसे उठा लिया। गुरुप्रसाद ने दीन नेत्रों से विनोद की ओर देखा, विनोद ने अमर की ओर, अमर ने रसिक की ओर, पर शब्द किसी के मुँह से न निकला। सेठजी ने मानो, सभी के मुँह-सी दिये हों। ड्रामेटिस्ट साहब किताब लेकर चल दिये। पूरा पढ़ें...

कहानी – डिमॉन्सट्रेशन