Category: कहानियाँ
कहानी पढ़ना जीवन में किये गए सबसे उत्तम कामों में से एक होता है और बेजोड़ जोड़ा आपको यह काम करवाने में मदद कर रहा है. पुण्य तो मिलनी ही चाहिए.
मोटेराम जी शास्त्री – प्रेमचंद की कहानी
पण्डित मोटेराम जी शास्त्री को कौन नहीं जानता! आप अधिकारियों का रूख देखकर काम करते है। स्वदेशी आन्दोलन के दिनों मे आपने उस आन्दोलन का ख़ूब विरोध किया था। पूरा पढ़ें...
मिलाप – प्रेमचंद की कहानी
लाला ज्ञानचन्द बैठे हुए हिसाब–किताब जाँच रहे थे कि उनके सुपुत्र बाबू नानकचन्द आये और बोले- दादा, अब यहां पड़े –पड़े जी उसता गया, आपकी आज्ञा हो तो मौ सैर को निकल जाऊं दो एक महीने में लौट आऊँगा। पूरा पढ़ें...
माता का हृदय – प्रेमचंद की कहानी
माधवी की आँखों में सारा संसार अँधेरा हो रहा था। कोई अपना मददगार न दिखायी देता था। कहीं आशा की झलक न थी। उस निर्धन घर में वह अकेली पड़ी रोती थी पूरा पढ़ें...
ममता – प्रेमचंद की कहानी
बाबू रामरक्षादास दिल्ली के एक ऐश्वर्यशाली क्षत्री थे, बहुत ही ठाठ-बाट से रहनेवाले। बड़े-बड़े अमीर उनके यहॉँ नित्य आते-आते थे। वे आयें हुओं का आदर-सत्कार ऐसे अच्छे ढंग से करते थे पूरा पढ़ें...
मुबारक बीमारी – प्रेमचंद की कहानी
रात के नौ बज गये थे, एक युवती अंगीठी के सामने बैठी हुई आग फूंकती थी और उसके गाल आग के कुन्दनी रंग में दहक रहे थ। उसकी बड़ी-बड़ी आंखें दरवाजे की तरफ़ लगी हुई थीं। पूरा पढ़ें...
मनावन – प्रेमचंद की कहानी
बाबू दयाशंकर उन लोगों में थे जिन्हें उस वक्त तक सोहबत का मजा नहीं मिलता जब तक कि वह प्रेमिका की जबान की तेजी का मजा न उठायें। पूरा पढ़ें...
मंदिर और मस्जिद – प्रेमचंद की कहानी
चौधरी इतरतअली ‘कड़े' के बड़े जागीरदार थे। उनके बुजुर्गों ने शाही जमाने में अंग्रेजी सरकार की बड़ी-बड़ी खिदमतें की थीं। उनके बदले में यह जागीर मिली थी। पूरा पढ़ें...
मंत्र – प्रेमचंद की कहानी
संध्या का समय था। डाक्टर चड्ढा गोल्फ खेलने के लिए तैयार हो रहे थे। मोटर द्वार के सामने खड़ी थी कि दो कहार एक डोली लिये आते दिखायी दिये। डोली के पीछे एक बूढ़ा लाठी टेकता चला आता था। पूरा पढ़ें...
मैकू – प्रेमचंद की कहानी
कादिर और मैकू ताड़ीखाने के सामने पहूँचे; तो वहॉँ कॉँग्रेस के वालंटियर झंडा लिए खड़े नजर आये। दरवाजे के इधर-उधर हजारों दर्शक खड़े थे। शाम का वक्त था। पूरा पढ़ें...
बोहनी – प्रेमचंद की कहानी
उस दिन जब मेरे मकान के सामने सड़क की दूसरी तरफ एक पान की दुकान खुली तो मैं बाग-बाग हो उठा। इधर एक फर्लांग तक पान की कोई दुकान न थी और मुझे सड़क के मोड़ तक कई चक्कर करने पड़ते थे। पूरा पढ़ें...