उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा गैंगस्टर, जो 25 साल में मारा गया
बीते 22 दिसंबर को डिजिटल नेटवर्क ज़ी 5 ने एक वेब सीरीज लांच किया – रंगबाज़. रंगबाज़ उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला के जीवन पर आधारित है. श्रीप्रकाश शुक्ला नब्बे के आखिरी दशक में पुरे उत्तर प्रदेश समेत बिहार, दिल्ली, और नेपाल में सक्रीय था. वेब सीरीज के रिव्यू से पहले थोड़ा श्री प्रकाश शुक्ला के बारे में जान लेते हैं:
गोरखपुर में एक गांव है मामखोर. यहां के एक टीचर के घर बच्चा पैदा हुआ, जिसका नाम पड़ा श्रीप्रकाश शुक्ला. मारधाड़ की ओर दिलचस्पी थी, इसलिए गांव में ही पहलवानी करने लगा. उसका आपराधिक करियर शुरू हुआ उसके गांव से ही. राकेश तिवारी नाम के एक लड़के ने उसकी बहन सरे बाज़ार छेड़ दिया था. बदला लेने के लिए श्रीप्रकाश शुक्ला ने उसे गोली मार दी. तब उसकी उम्र कोई 19-20 साल थी. जब पुलिस पीछे पड़ी, तो राजनैतिक सह पाकर वो बचने के लिए बैंकॉक भाग गया. जब लौटा, तो उसके दिमाग में क्राइम ही क्राइम चल रहा था. लौटने के बाद वो बिहार के मोकामा क्षेत्र के विवादित और बाहुबली नेता सुरजभान सिंह के साथ जुड़ गया. धीरे-धीरे वो राजनीतिक गलियारों में भी हलचल पैदा करने लगा. कई तरह के गैरकानूनी धंधे करने लगा. अखबारों के पन्ने हर रोज उसी की सुर्खियों से रंगे होते. यूपी पुलिस हैरान-परेशान थी. नाम पता था लेकिन उसकी कोई तस्वीर पुलिस के पास नहीं थी. बिजनेसमैन से उगाही, किडनैपिंग, कत्ल, डकैती, पूरब से लेकर पश्चिम तक रेलवे के ठेके पर एकछत्र राज. बस यही उसका पेशा था.
जब उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता वीरेंद्र शाही का मर्डर किया श्रीप्रकाश ने
यूपी पुलिस की सिरदर्दी श्रीप्रकाश शुक्ला ने 1997 में बहुत बढ़ा दी, जब उसने नेता और यूपी अंडवर्ल्ड का हिस्सा रहे वीरेंद्र शाही को गोलियों से भून डाला. चरों तरफ सन्नाटा पसर गया, क्योंकि वीरेंद्र शाही तब बड़ा नाम हुआ करता था. नेताओं से उसके अच्छे रिश्ते थे. क्योंकि उसका इस्तेमाल नेता भी अपने “काम करवाने” के लिए करते थे. इन्हीं चक्करों में उसका पॉलिटिकल एंबिशन जाग गया. अब उसकी हिट लिस्ट में अगला नाम था यूपी के कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी का, जो गोरखपुर के चिल्लूपार सीट से विधायक थे.
अब श्रीप्रकाश को वो विधानसभा सीट चाहिए थी. 23-24 साल की उम्र का ये लड़का, उस विधायक का कत्ल करना चाहता था, जिसे 15 साल में चिल्लूपार सीट से कोई हिला नहीं पाया था.
जब बिहार में एंट्री हुआ श्रीप्रकाश का
मोकामा के बाहुबली विधायक सूरजभान सिंह के रूप में शुक्ला को एक गॉडफादर मिल गया. साल 1998 में श्रीप्रकाश शुक्ला अपने चरम पर था. मई मे उसने लखनऊ के एक बिजनेसमैन के बेटे को किडनैप कर लिया फिरौती मांगी पांच करोड़ रुपए. बेटे को बचाने आए बिजनेसमैन का श्रीप्रकाश शुक्ला ने हत्या कर दिया. मई में हुई किडनैपिंग कांड के ठीक एक महीने बाद एक और बड़ा कांड हुआ. बिहार के बाहुबली मंत्री थे बृज बिहारी प्रसाद. 13 जून 1998 को वो इलाज के लिए पटना के बेली रोड स्थित इंदिरा गांधी हॉस्पिटल पहुंचे थे. हॉस्पिटल के सामने वो अपनी लाल बत्ती वाली गाड़ी से उतरे ही थे कि एके-47 से लैस 4 बदमाश उन्हें गोलियों से भून दिया. वो चारों शुक्ला के ही लोग थे. इस कत्ल के साथ ही श्रीप्रकाश ने साफ कर दिया था कि अब पूरब से पश्चिम तक रेलवे के ठेकों पर उसी का एक छत्र राज है.
शुक्ला का आतंक इतना बढ़ गया था कि टीवी पर आने वाले मशहूर क्राइम शो इंडियाज़ मोस्ट वॉन्टेड में उसके ऊपर बेस्ड दो एपीसोड दिखाए गए. इस शो को होस्ट करते थे सुहैब इलयासी. एपिसोड के ऑन एयर जाने के बाद सुहैब को शुक्ला से धमकी भरे फोन आने शुरू हो गए. सुहैब को कुछ और कॉल्स आए, जिसे उन्होंने दिल्ली और उत्तर प्रदेश के पुलिस को दे दिया.
6 करोड़ में सीएम की सुपारी और श्रीप्रकाश शुक्ला का एनकाउंटर
1998 में साक्षी महाराज यूपी के फर्रुखाबाद से एमपी थे. साक्षी ने बिना सोर्स बताए ये खबर मिडिया को दे दिया कि श्रीप्रकाश शुक्ला ने यूपी के एम कल्याण सिंह को मारने की फिरौती छह करोड़ रुपए में ली है. ये सुनकर यूपी का पुलिस की सिरदर्दी और बढ़ गयी. अप्रैल 1998 में यूपी पुलिस ने 43 मोस्ट वॉन्टेड क्रिमिनल्स को मारने या पकड़ने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स बनाई. इस 43 क्रिमिनल्स में श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम सबसे ऊपर था.
श्रीप्रकाश शुक्ला को मोबाइल फोन्स का बहुत शौक था. गलत धंधे में होने के कारण वो अलग-अलग सिम कार्ड्स का इस्तेमाल करता था. वो कहते है न, “जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है”. ऐसा ही श्रीप्रकाश शुक्ला के केस में भी हुआ. उसने एक ही सिम लगातार एक हफ्ते तक इस्तेमाल किया. इससे श्रीप्रकाश शुक्ला को ट्रेस करना आसान हो गया. पुलिस ने दिल्ली में उसके वसंत कुंज वाले इलाके का पता लगा लिया था. लेकिन शुक्ला पकड़ में अब भी नहीं आया था.
पुलिस को पता चला कि वह वसंत कुंज के अपने ठिकाने से निकलकर अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने गाजियाबाद जाएगा. पुलिस ने उसकी वापसी के समय जाल बिछा दिया. दिल्ली-गाजियाबाद स्टेट हाइवे पर फोर्स लग गई. दोपहर में उसकी नीली सिएलो कार मोहननगर फ्लाइओवर के पास दिखी तो वहां पुलिस की 5 गाड़ियां तैनात थीं. गाड़ी वो खुद चला रहा था और उसके साथी पीछे बैठा था. उसे खतरा महसूस हुआ. उसने स्पीड बढ़ाई और पुलिस की पहली और दूसरी गाड़ी को चकमा दे दिया. तभी इंस्पेक्टर ने अपनी जिप्सी उसकी कार के आगे अड़ा दी. खतरे को सामने देख शुक्ला ने बाएं घूमकर गाड़ी तेजी से यूपी आवास विकास कालोनी की तरफ भगाई.
22 सितंबर 1998 को स्टेट हाइवे से एक किलोमीटर हटकर उसे घेर लिया गया. उसने भी रिवॉल्वर निकाल ली. उसने 14 गोलियां दागीं तो पुलिस वालों ने 45. बस कुछ ही समय बाद उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा गैंगस्टर अपने साथियों के साथ जमीन पर मुर्दा बनकर लेता हुआ था.
ज्ञात हो की साल 2005 में आयी अरशद वारसी अभिनीत फिल्म सहर भी श्रीप्रकाश शुक्ला के जीवन पर ही आधारित थी.
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