Banner for kavita Kadamb Ka Ped written by Shubhadra Kumari Chauhan

कविता - कदम्ब का पेड़

सुभद्रा कुमारी चौहान (16 अगस्त 1904 - 15 फरवरी 1948) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी कविता के कारण है। उनका जन्म नागपंचमी के दिन इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में रामनाथसिंह के जमींदार परिवार में हुआ था। उनकी रचनाएँ राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान, चार बहने और दो भाई थे। उनके पिता ठाकुर रामनाथ सिंह शिक्षा के प्रेमी थे और उन्हीं की देख-रेख में उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी हुई। 1919 में खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह के साथ विवाह के बाद वे जबलपुर आ गई थीं। 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली वह प्रथम महिला थीं। वे दो बार जेल भी गई थीं।

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ये कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे

ले देती यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली
किसी तरह नीची हो जाती ये कदम्ब की डाली

तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता

वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता
अम्मा-अम्मा कह बंसी के स्वर में तुम्हें बुलाता

सुन मेरी बंसी को माँ तुम इतनी खुश हो जाती
मुझे देखने काम छोड़ तुम बाहर तक आती

तुमको आता देख बांसुरी रख मैं चुप हो जाता
पत्तो में छिपकर धीरे से फिर बांसुरी बाजाता

घुस्से होकर मुझे डाटती कहती नीचे आजा
पर जब मैं न उतरता हंसकर कहती मुन्ना राजा

नीचे उतरो मेरे भईया तुम्हे मिठाई दूँगी
नए खिलोने माखन मिसरी दूध मलाई दूँगी

मैं हंस कर सबसे ऊपर टहनी पर चढ़ जाता
एक बार ‘माँ’ कह पत्तों मैं वहीँ कहीं छिप जाता

बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता

तुम आँचल फैला कर अम्मा वहीं पेड़ के नीचे
ईश्वर से कुछ विनती करती बैठी आँखें मीचे

तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता

तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं

इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे.

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