A boy running a bicycle

जब दिल ना लगे दिलदार, गाँव की गलियों में आ जाना. .!!

इस दुनियाँ (अभी हमारी दुनिया भारतवर्ष से बाहर नहीं गई है) में दो तरह के लोग होते है. एक गाँव में रहने वाले और दूसरे शहर में रहने वाले. जहां शहर में सभी सुख - सुविधाएं आसानी से उपलब्ध होती हैं वहीं गाँव में कई मूलभूत सुविधाएं अपनी अस्तित्व तलाश रही होती है. शहर में तूफानी रफ़्तार में दौड़ती हुई गाड़ियों और उसी स्पीड से भागती हुई ज़िन्दगी जीने को लोग अपने लाइफ का थ्रिल मान बैठे है. जबकि वहीं दूसरी तरफ बगल से एक साईकल स्पीड में निकल जाए तो गाँव के लौंडे पकड़ के निचोड़ देते है.

अबे. . . तुम्हारी तरह हेलीकॉप्टर उड़ाने का शौक होता हमको तो हम यहाँ घूमते हुए चने फाँक रहे होते क्या. . !! जादे इस्टाइल मत मारो, तरीके से निकल जाओ. . . .

A boy running a bicycle

मानसिक तौर पर गाँववालों को लगता है की शहर वाले चोंचले होते है और वही दूसरी तरफ शहर वालों को लगता है की गाँव वाले थोड़े से आउटडेटेड होते है. चूँकि गाँववाले आउटडेटेड लगते है शहर वाले को तो वह उनसे बात करने को ज्यादा तवज्जो देते नहीं है. वहीं दूसरी तरफ गाँववाले बोलते है की इनसे तो बात करना ही बेकार है. फ़ालतू का इंग्लिश अखबार खोल के बैठ जाएगा. लेकिन जब एक शहर का बंदा माइकल गाँव आता है और फिर तरीके मुरारी भईया को अपना गाँव दिखने की विनती करते है, जब जाके शुरू होती है वो यात्रा, जिसकी हम तबसे इंतज़ार कर रहे है जबसे हेडिंग पढ़ी है.

गाँव के गलियाँ पूछ रही है, कहाँ रहे तुम इतने दिन
निम्मो की तो शादी हो गयी, हार गयी थी दिन गीन-गीन
- इरशाद कामिल

मुरारी दिल का बहुत अच्छा है, पर दिमाग का बहुते गरम. इतना गरम की मानो तत्काल तो वो पकौड़ा भी तल दे. जीवन में करना बहुत कुछ चाहता है लेकिन आज तक कभी भी करने का मूड नहीं हुआ है. बोलता है, जब करने का मूड होगा, देखा जाएगा. अभी तक तो सब ठीके-ठाक चल ना रहा है. एक शानदार कद - काठी का मालिक मुरारी कभी पिच्चर में हीरो बनना चाहता था. लेकिन फिर बोला की उसके लिए बम्बई कौन जाए. बोलता है की जिस दिन हमको हीरो बनना होगा उस दिन डायरेक्टर खुदे बम्बई ये यहां आकर हमको ले जाएगा. लेकिन खुशकिस्मती से आज तक वो दिन नहीं आया और अपना मुरारी गाँव में ही रह गया.

ज़िंदादिली का जीता-जागता सबूत मुरारी आज माइकल को गाँव दिखाने जब चूड़ीदार पायजामा पर उजला कुरता डालकर घर से निकला तो एकदम हीरो लग रहा है. दोनों कन्धों से झूलता हुआ गुलाबी गमछा उसके आत्मविश्वास को दर्शा रहा है. वो जो भी है, उसे अपने आप पर गुरूर है, और यह गमछा उस गुरूर पर पड़ने वाले धुल को रोकता है. माइकल को लेकर निकला मुरारी अब कोने पर पान वाले काका के पास रुक गया और भर मुँह पान खाया. अब वह कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं था. माइकल का काम अब थोड़ा मुश्किल हुआ. क्योंकि अब सब कुछ उसे सिर्फ इशारों में समझना है.

people in farm field

घर से निकलते ही माइकल का सामना धुल फांकती कच्ची सड़क से हुआ, जो अब बैसाख के धुप में और भी ज्यादा कठोर हो गई थी. पानी का नामो-निशान नहीं था तो एक भी धुल सड़क से चिपक नहीं रही थी. पास ही में एक तालाब पड़ता है. जिसके मुहाने पर पर चारों तरफ कुछ शीशम के पेड़ लगे है. बड़े - बुजुर्ग बताते है की यहां एक पीपल का पेड़ भी हुआ करता था. जो इस गाँव के सबसे धनाढ्य व्यक्ति के बुजदिली का शिकार हो गया. लेकिन अब भी जो है कुछ कम नहीं है. तालाब में पानी भरपूर है. यह कभी सूखती नहीं है. आधा तालाब जलकुम्भी से पटा हुआ है और बाकी में 4-5 के झुण्ड में कुछ बत्तख तैर रहे है. दोपहर होने की वजह से बाकी जगह गर्म हवा चल रही थी लेकिन तालाब के मुहाने पर माइकल को जब ठंढी हवा लगी तो उसके मुंह से निकला - मिरैकल. . !!

मुरारी ने पलट कर देखा तो पाया की माइकल वहीं दुब पर बैठ गया है और मुंह को खोलकर वहाँ का पूरा हवा वो अपने अंदर खिंच लेना चाहता है. मनो जैसे दुबारा फिर उसको ऐसी हवा नहीं मिलने वाली.

मुरारी - अबे इसे सिलेंडर में भरने की कउनो ज़रूरत नहीं है बे. यहां ऐसी ही हवा मिलती है.

माइकल ने अपना मुँह बंद किया और फिर धीरे से मुस्कुराया. लगा जैसे पहली बार उसके फेफड़ों का ऐसी हवा से संपर्क हुआ है. दिल सुकून से ऐसे भरा की उसकी आँखे बंद हो गई. लेकिन अभी तो बस शुरुआत थी. अभी माइकल को कहाँ पता चलने वाला था की उसका ये सफर कितना खूबसूरत होने वाला है. और जब साथ में मुरारी भी है तो बात ही क्या.

children playing on trees down in river

वहाँ से निकलते ही दोनों आम के बगीचे में आ बैठे. यहां पहले से ही कुछ बच्चे मिट्टी में लकीर बनाकर खेलने में व्यस्त थे. माइकल को देखकर सब अचानक रुक गए. क्योंकि इस तरह कंधे पर बैग लेकर कोई भी इंसान आज तक आम के बगीचे में नहीं आया था. बच्चों के उत्सुकता को मुरारी ने भांप लिया.

लपककर बोला - एक्को अपने जगह से हिला तो देह तोड़ देंगे.

माइकल ने आज तक अपने जीवन में सिर्फ पका हुआ आम ही देखा था. जब उसने टिकुला को देखा तो वह खो गया. जिस टिकुला को खाने में बच्चे ज़रा सी भी नहीं हिचकते, वो टिकुला माइकल को क्यूट लग रहा था. वह उसे मैंगो बेबी बुला रहा था. मुरारी की भी मुस्कान छूट गई. ज़रा सी मुस्कान और फिर खो गया. लगा जैसे एक जमाने में उसे भी कोई क्यूट कहती थी. वैसे मुरारी है तो खुशमिज़ाज आदमी, लेकिन कच्ची उमर का प्यार कहाँ किसी को छोड़ता है.

फिर माइकल ने मुरारी के इशारा करने पर एक टिकुला तोड़कर अपने दांत के निचे दबाया और झटपटाहट से थू . .थू. . करके फेंक दिया. उसे कहाँ पता था की मैंगो बेबी में दूध होता है जिसे खाया नहीं जाता. उधर मुरारी और बच्चे बेतहाशा हँसे जा रहे थे. माहौल पूरी तरह से खुशनुमा हो चला था.

आम के बगीचा के बीचो - बिच बने मचान पर दोनों बैठ कर सुकून से बतिया रहा था. मचान खुला हुआ था तो बांस की बल्लियां माइकल को लग रही थी. मुरारी को फरक नहीं पड़ता था. इन सब चीजों से दोस्ती थी उनकी. दिन अपने ढलान पर था. मुरारी माइकल को लेकर आगे निकला. खेतों की पगडंडियों से होते हुए उसे मुख्य सड़क पर ले आया. फिर वहाँ से दोनों बाते करते हुए आगे बढे जा रहे थे. बातें भी वैसी हो रही थी जैसी आम आदमियों की नहीं होती है. क्योंकि मुरारी अपने आप को आम आदमी मानता नहीं था और शायद माइकल की ज़िन्दगी भी बदलने जा रही थी. दोनों की बातें सासमान को छू रही थी. दोनों मगन थे. गोधूलि बेला हो आयी थी. चरवाहे अपने मवेशियों के साथ अपने - अपने गंतव्य को लौट रहे थे. उसी रास्ते से मवेशियों का एक झुण्ड निकल रहा था. गोबरों के गंध से मुरारी को सख्त नफरत है. वह अपने गाय को भी चारा डालते समय मुंह को गमछा से लपेटना नहीं भूलता. मगर यहां माइकल शायद उस गंध को भी महसूस करना चाहता था. उसे लगता था की यह भी शायद कुछ वैसा हो जो शहर में नहीं है. कुछ आगे निकल जाने के बाद माइकल ने धीरे से कहा - इट्स फार बेटर दैन स्ट्रीट काऊज.

मुरारी मन ही मन मुस्कुराया. उसे शायद एहसास हो रहा है की उसका गुरुर झूठा नहीं है. दोनों वहीं पर बने एक पुलिया पर जाके बैठ जाते है. उसे शायद कुछ और बातें करनी है. या फिर हो सकता है माइकल इस ढलती शाम को और करीब से देखना चाहता हो. सड़कों पर पुलिया इसीलिए बना दिया जाता है की बाढ़ में इस तरफ का पानी इस तरफ जा सके. मुरारी ने माइकल को बताया. तो माइकल ने बाढ़ में फिर से आने की इच्छा जताई. मुरारी फिर से मुस्कुरा बैठा. उसकी मुस्कान उसके गुरुर को दिखता है. हर घड़ी, हर पहर. दोनों वहाँ से उठ कर चल देते है. चलते-चलते बातों का दौर फिर से शुरू हो जाता है. अब शायद आखरी पड़ाव आ जाये. क्योंकि सूरज अब डूब चुका है. घरों में दिया-बाती शुरू हो चुकी है. बिजली का अभी भी अभाव है.

road and small bridge

वापस आने के बाद मुरारी पूरी श्रद्धा से माइकल को अपने घर रखता है और रात को भर पेट भोजन और सुकून भरी नींद के बाद सुबह शहर के लिए विदा करता है. माइकल रास्ते भर यही सोचता है की भारत सच में गाँवों का ही देश है. शहर में तो लोग बस ज़िन्दगी काटते है, लेकिन ज़िन्दगी को जिया कैसे जाता है यह बात मुरारी जैसे लोग सीखा जाते है.

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