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राष्ट्र का सेवक – प्रेमचंद की कहानी
राष्ट्र के सेवक ने कहा—देश की मुक्ति का एक ही उपाय है और वह है नीचों के साथ भाईचारे का सुलूक, पतितों के साथ बराबरी को बर्ताव। दुनिया में सभी भाई हैं, कोई नीचा नहीं, कोई ऊंचा नहीं। पूरा पढ़ें...
राजहठ – प्रेमचंद की कहानी
दशहरे के दिन थे, अचलगढ़ में उत्सव की तैयारियॉँ हो रही थीं। दरबारे आम में राज्य के मंत्रियों के स्थान पर अप्सराऍं शोभायमान थीं। धर्मशालों और सरायों में घोड़े हिनहिना रहे थे। पूरा पढ़ें...
र्स्वग की देवी – प्रेमचंद की कहानी
भाग्य की बात! शादी-विवाह में आदमी का क्या अख्तियार! जिससे ईश्वर ने, या उनके नायबों- ब्राह्मणों ने तय कर दी, उससे हो गयी। बाबू भारतदास ने लीला के लिए सुयोग्य वर खोजने में कोई बात उठा नहीं रखी। पूरा पढ़ें...
मोटेराम जी शास्त्री – प्रेमचंद की कहानी
पण्डित मोटेराम जी शास्त्री को कौन नहीं जानता! आप अधिकारियों का रूख देखकर काम करते है। स्वदेशी आन्दोलन के दिनों मे आपने उस आन्दोलन का ख़ूब विरोध किया था। पूरा पढ़ें...
मिलाप – प्रेमचंद की कहानी
लाला ज्ञानचन्द बैठे हुए हिसाब–किताब जाँच रहे थे कि उनके सुपुत्र बाबू नानकचन्द आये और बोले- दादा, अब यहां पड़े –पड़े जी उसता गया, आपकी आज्ञा हो तो मौ सैर को निकल जाऊं दो एक महीने में लौट आऊँगा। पूरा पढ़ें...
माता का हृदय – प्रेमचंद की कहानी
माधवी की आँखों में सारा संसार अँधेरा हो रहा था। कोई अपना मददगार न दिखायी देता था। कहीं आशा की झलक न थी। उस निर्धन घर में वह अकेली पड़ी रोती थी पूरा पढ़ें...
मुबारक बीमारी – प्रेमचंद की कहानी
रात के नौ बज गये थे, एक युवती अंगीठी के सामने बैठी हुई आग फूंकती थी और उसके गाल आग के कुन्दनी रंग में दहक रहे थ। उसकी बड़ी-बड़ी आंखें दरवाजे की तरफ़ लगी हुई थीं। पूरा पढ़ें...
मनावन – प्रेमचंद की कहानी
बाबू दयाशंकर उन लोगों में थे जिन्हें उस वक्त तक सोहबत का मजा नहीं मिलता जब तक कि वह प्रेमिका की जबान की तेजी का मजा न उठायें। पूरा पढ़ें...
मंदिर और मस्जिद – प्रेमचंद की कहानी
चौधरी इतरतअली ‘कड़े' के बड़े जागीरदार थे। उनके बुजुर्गों ने शाही जमाने में अंग्रेजी सरकार की बड़ी-बड़ी खिदमतें की थीं। उनके बदले में यह जागीर मिली थी। पूरा पढ़ें...
मंत्र – प्रेमचंद की कहानी
संध्या का समय था। डाक्टर चड्ढा गोल्फ खेलने के लिए तैयार हो रहे थे। मोटर द्वार के सामने खड़ी थी कि दो कहार एक डोली लिये आते दिखायी दिये। डोली के पीछे एक बूढ़ा लाठी टेकता चला आता था। पूरा पढ़ें...