Category: कहानियाँ
कहानी पढ़ना जीवन में किये गए सबसे उत्तम कामों में से एक होता है और बेजोड़ जोड़ा आपको यह काम करवाने में मदद कर रहा है. पुण्य तो मिलनी ही चाहिए.
ज्योति – प्रेमचंद की कहानी
विधवा हो जाने के बाद बूटी का स्वभाव बहुत कटु हो गया था। जब बहुत जी जलता तो अपने मृत पति को कोसती-आप तो सिधार गए, मेरे लिए यह जंजाल छोड़ गए । पूरा पढ़ें...
घमण्ड का पुतला – प्रेमचंद की कहानी
शाम हो गयी थी। मैं सरयू नदी के किनारे अपने कैम्प में बैठा हुआ नदी के मजे ले रहा था कि मेरे फुटबाल ने दबे पांव पास आकर मुझे सलाम किया कि जैसे वह मुझसे कुछ कहना चाहता है। पूरा पढ़ें...
घरजमाई – प्रेमचंद की कहानी
हरिधन जेठ की दुपहरी में ऊख में पानी देकर आया और बाहर बैठा रहा। घर में से धुँआ उठता नज़र आता था। छन-छन की आवाज भी आ रही थी । पूरा पढ़ें...
गुल्ली डंडा – प्रेमचंद की कहानी
हमारे अंग्रेजी दोस्त मानें या न मानें मैं तो यही कहूंगा कि गुल्ली-डंडा सब खेलों का राजा है। अब भी कभी लड़कों को गुल्ली-डंडा खेलते देखता हूँ, तो जी लोट-पोट हो जाता है कि इनके साथ जाकर खेलने लगूँ। पूरा पढ़ें...
कहानी – ग़ैरत की कटार
कितनी अफ़सोसनाक, कितनी दर्दभरी बात है कि वही औरत जो कभी हमारे पहलू में बसती थी उसी के पहलू में चुभने के लिए हमारा तेज खंजर बेचैन हो रहा है। पूरा पढ़ें...
आत्माराम – प्रेमचंद की कहानी
वेदों-ग्राम में महादेव सोनार एक सुविख्यात आदमी था। वह अपने सायबान में प्रात: से संध्या तक अँगीठी के सामने बैठा हुआ खटखट किया करता था। पूरा पढ़ें...
आत्म-संगीत – प्रेमचंद की कहानी
आधी रात थी। नदी का किनारा था। आकाश के तारे स्थिर थे और नदी में उनका प्रतिबिम्ब लहरों के साथ चंचल। एक स्वर्गीय संगीत की मनोहर और जीवनदायिनी... पूरा पढ़ें...
कहानी – आख़िरी मंज़िल
आह ? आज तीन साल गुजर गए, यही मकान है, यही बाग है, यही गंगा का किनारा, यही संगमरमर का हौज। यही मैं हूँ और यही दरोदीवार। मगर इन चीजों से दिल पर कोई असर नहीं होता। पूरा पढ़ें...
कहानी – आख़िरी तोहफ़ा
सारे शहर में सिर्फ एक ऐसी दुकान थी, जहॉँ विलायती रेशमी साड़ी मिल सकती थीं। और सभी दुकानदारों ने विलायती कपड़े पर कांग्रेस की मुहर लगवायी थी। मगर अमरनाथ की प्रेमिका की फ़रमाइश थी, उसको पूरा करना जरुरी था। पूरा पढ़ें...
कहानी – अलग्योझा
भोला महतो ने पहली स्त्री के मर जाने बाद दूसरी सगाई की, तो उसके लड़के रग्घू के लिए बुरे दिन आ गए। रग्घू की उम्र उस समय केवल दस वर्ष की थी। चैन से गॉँव में गुल्ली-डंडा खेलता फिरता था। पूरा पढ़ें...