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योग आपको कैसे एक बेहतर इंसान बनाता है. भाग - 1

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योग: एक परिचय

योग का प्रादुर्भाव भारत में हज़ारों साल पहले हुआ. यह हमारे ऋषि - मुनियों की देन है. योग तर्क का नहीं, बल्कि साक्षात्कार का विषय है. इसीलिए हमें यह बात तो पहले ही समझ लेनी चाहिए कि इसका सही से व्याख्या नहीं हो सकता. लेकिन फिर भी हमारे ऋषि मुनियों ने जो कुछ साक्षात्कार किया और अनुभव किया उसे सभी के लिये उपयोगी बनाने के लिये क्रमिक अभ्यास की विधियों सहित इसे तार्किक और सुदृढ़ ढंग से प्रतिपादित किया. उनका ये प्रतिपादन आज के वैज्ञानिक युग में भी खासी लोकप्रिय हो रही है. आज योग मात्र आश्रमों और साधुओं तक ही सीमित नहीं रह गया है बल्कि, यह देश और दुनिया के लोगों के दैनिक जीवन में अपना स्थान बना लिया है. योग विज्ञान और इसकी विधियों को अब आधुनिक समाज के जीवन में समावेश करने का प्रयास किया जा रहा है. आज के भौतिक युग में जहाँ लोग तनावपूर्ण और भाग-दौड़ वाली ज़िन्दगी जी रहे है वहीं योग इन सबके लिए एक जीवन अमृत से कम कुछ भी नहीं है. योग का अभ्यास मुख्यतः नैतिक और आध्यात्मिक विकास के लिये है, परन्तु जन साधारण द्वारा विशेष रूप से मानसिक और शारीरिक विकारों / रोगों से बचने और व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार लाने व तनावपूर्ण स्थितियों को दूर करने के लिये किया जाता है.

International Yoga Day 21 June

दर्शन के छः पद्धतियों में से योग एक है. "महर्षि पतंजलि" ने अपने योग सूत्रों में योग के विभिन्न पहलुओं को प्रतिपादित किया है. उन्होंने मानव जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए योग के आठ अंगों का प्रतिपादन किया जो "अष्टांग योग" के नाम से लोकप्रिय हैं. ये आठ इस प्रकार है:

1. यम (आत्मसंयम)

Yogasan - Yum Aatmsanyam
PC - Dharmalay

यम का अभ्यास मन की शुद्धि (स्वच्छता) और धैर्य का मार्ग प्रसस्त करता है और एकाग्रता को बढ़ाता है. ये निम्नलिखित है:

अहिंसा - किसी को कष्ट ना पहुँचाना
सत्य - हमेशा सच बोलना
अस्तेय - चोरी नहीं करना
ब्रह्मचर्य - काम संयम
अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक संग्रह ना करना

2. नियम (आत्मशोधन के नियमों का पालन)

ये कुल पांच नियम आते है:

शौच - बाहरी तथा आतंरिक शुद्धि
संतोष - अवांक्षित आकांक्षाओं से बचना, जो प्राप्त है उससे संतुष्ट रहना
तप - अनेक बाधाओं के बिच भी लक्ष्य के प्राप्ति के लिए सतत प्रयास करना
स्वाध्याय - आत्मा और परमात्मा के सही ज्ञान के लिए प्रामाणिक ग्रंथों और शास्त्रों का अध्ययन करना
ईश्वर प्रणिधान - दिव्य शक्ति के समक्ष पूर्ण समर्पण करना

3. आसन (शारीरिक मुद्राएँ)

Yogasan - Shaaririk Mudraein
PC – artofliving.org

ये विशेष प्रकार की शारीरिक मुद्राएँ है जो मन और शरीर को स्थैतिक खिंचाव के द्वारा स्थिरता प्रदान करती है. आसनों को करने के दो मुलभुत सिद्धांत है - सुखानुभूति और स्थिरता. प्रत्येक आसन को सहजता के साथ क्षमता के अनुसार करना चाहिए. आसनों को करने में किसी प्रकार का झटका या थकावट नहीं होनी चाहिए. आसनों को तीन वर्गों में बाँटा गया गया है:

A) ध्यानात्मक आसन - यह आसन बैठ कर किये जाने वाले आसन है जो शरीर को स्थिर एवं सुखमय अवस्था में रखते है. हाथों व पैरों के विभिन्न संयोजनों से अलग - अलग ध्यानात्मक आसन किये जाते है. इन आसनों में मुख्यतः सिर, गर्दन और रीढ़ को सीधा रखना चाहिए.

B) संवर्धनात्मक आसन - इन आसनों में स्थिर अवस्था में माँसपेशियों को खिंचाव दिया जाता है जो उनमें आवश्यक सुधार लाता है. ये रीढ़ की हड्डी और माँसपेशियों को लचकदार व पीठ वाले भाग को मज़बूत बनाते है. ऐसे बहुत से संवर्धनात्मक आसन है जो बैठकर, लेटकर या खड़े होकर किये जाते है.

C) विश्रामात्मक आसन - इन आसनों की संख्या कम है. ये सभी लेटकर किये जाते है जिनका उद्देश्य शरीर और मन को आराम पहुँचाना है.

4. प्राणायाम (श्वास - प्रश्वास का नियमन)

Pranayam
PC – Patanjali Yoga School

इसका अभ्यास श्वास सम्बन्धी आवेगों पर नियंत्रण प्रदान करता है. श्वास को सुविधापूर्वक अधिक समय तक रोकना प्राणायाम की अनिवार्य तकनीक है. प्राणायाम का मुख्य उद्देश्य स्वायत्त तंत्रिका तंत्र पर नियंत्रण प्राप्त करना तथा इसके प्रभाव से मन का नियंत्रण करना है. यह ध्यान क उच्चस्तरीय अभ्यास के लिए उपयोगी है.

5. प्रत्याहार (इन्द्रियों को उसके विषय से रोकना)

यह चित्त को नियंत्रित करने की एक विधि है. यह इन्द्रियों को उनके विषयों के हटाने का अभ्यास है. यह मन को अस्वस्थ विचारों में उलझने से रोकने की प्रक्रिया है. जिसे एक मनोवैज्ञानिक अभ्यास माना जा सकता है.

6. धारणा (चिंतन)

चित्त को शरीर के किसी आतंरिक अथवा बाह्य वस्तु, विचार, या शब्द पर एकाग्र करना धारणा है. इससे एकाग्रता, स्मरणशक्ति और मेधाशक्ति में सुधार होता है.

7. ध्यान (तल्लीनता)

Yoga - Dhyan
PC – Osho Arena

चित्त की एकाग्र अवस्था में चित्त का उसी दिशा में निर्विघ्न निरंतर प्रवाह ध्यान कहलाता है. ध्यान के लगातार अभ्यास से गहन एकाग्रता की शक्ति प्रदान होती है, जिसके परिणामस्वरूप शारीरिक ऊर्जा, मानसिक क्षमता, स्मृति, बुद्धिमत्ता, आत्मरक्षा और अंतर्दृष्टि में बढ़ोतरी होती है. ध्यान का लक्ष्य आतंरिक जागरूकता का विकास करना है.

8. समाधी (पूर्ण आत्मतन्मयता)

Yoga - Samadhi
PC – Azad Gurukul

समाधी का शाब्दिक अर्थ "पूर्ण एकाकार" होता है. इसे पूर्णता भी कहा जाता है. मतलब ये की इसके आगे कुछ भी नहीं होता. यह चेतना की वह उच्चतम अवस्था है जहाँ ध्याता, ध्यान तथा ध्येय तीनों एक ही रूप हो जाते हैं. यह परमात्मा के साथ एकाकार और आनंद की अवस्था है. समाधी योगाभ्यास की चरम स्थिति है. इसीलिए महर्षि पतंजलि ने इसे सबसे आखिरी में रखा है. इस स्थिति में दिव्य ज्ञान की समझ पेड हो जाती है, जिससे मोक्ष प्राप्ति संभव है. यही योग साधना का लक्ष्य भी है.

दोस्तों, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के इस खास सीरीज का ये पहला भाग यहीं ख़तम होता है. इसके अगले भाग में हम जानेंगे कुछ ख़ास क्रियाएँ, मुद्राएँ, आसन और उससे होने वाले लाभ के बारे में. तब तक आप हमारे इस खास सीरीज का हिस्सा बने रहिए.

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