योग आपको कैसे एक बेहतर इंसान बनाता है. भाग - 2
पहले भाग में जहाँ हमने योग के परिचय के बारे में जाना था, वहीं इस आर्टिकल में हम जानेंगे योग की परिभाषा, प्रकार, सूर्य नमस्कार, बंध एवं मुद्राएँ और कुछ महत्वपूर्ण आसान और उनसे होने वाले लाभ के बारे में.
योग की परिभाषा
योग एक ऐसी पद्धति है जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी अंदर की शक्तियों को संतुलित रूप से विक्सित कर सकता है. योग पूर्ण स्वानुभूति कराने के साधन प्रदान करता है. संस्कृत में योग का शाब्दिक अर्थ जोड़ना है. वैसे ही आत्मा को सर्वव्यापी परमात्मा से जोड़ने के साधन के रूप में योग को परिभाषित किया जा सकता है. महर्षि पतंजलि ने योग को मन के अंदर होने वाले क्लेश का निरोध बतलाया है.
योग के प्रकार
योग के प्रकार को हम इस तरह से पाँच भागों में बाँट सकते है:
जप योग - लगातार स्मरण तथा लगातार नामोच्चारण द्वारा अपने मन को किसी एक पवित्र नाम या अक्षर पर केंद्रित करना जैसे ॐ, राम, अल्लाह, ईश्वर, वाहेगुरु इत्यादि.
कर्म योग - कर्म योग हमें फल के इच्छा किये बिना काम करना सिखाता है. इस साधना के अंतर्गत योगी अपने कर्त्तव्य का पालन सभी इच्छाओं को पृथक कर, ईश्वर का आदेश समझ कर करता है.
ज्ञान योग - ज्ञान योग हमें आत्मा और अनात्मा में भेद करना, आप्त पुरुषों के वचनों और धर्म ग्रंथों के अध्ययन से अंतरात्मा का ज्ञान प्राप्त करना, संतों की संगति और ध्यान का अभ्यास करना सिखाता है.
भक्ति योग - भक्ति योग ईश्वर के प्रति पूर्ण श्रद्धा भाव के साथ समर्पण करने की पद्धति है. भक्ति योग के सच्चे अनुयायी अहंकार, निरादर और संसार से अछूते रहते है.
राज योग - राज योग जो अष्टांग योग के नाम से लोकप्रिय है, से मनुष्य अपना सर्वांगीण विकास करता है. इसमें याम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि आते है.
सूर्य नमस्कार
सूर्य नमस्कार यौगिक क्रियाओं में सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण है जो आसन, प्राणायाम और मुद्राओं का लाभ एक साथ प्रदान करता है. इसमें बारह अवस्थाएँ होती है जो प्रातः काल उगते हुए सूर्य के समक्ष की जाती है.
सूर्य नमस्कार शरीर के सम्पूर्ण तंत्रिका-ग्रंथि और तंत्रिका मांसपेशीय तंत्र को ऊर्जावान बनाता है तथा इसका नियमित अभ्यास पुरे शरीर में शुद्ध रक्त का संतुलित संचार और सभी प्रणालियों में पूर्ण समन्वयन प्रदान करता है. इस प्रकार यह साधक को सम्पूर्ण मानसिक और शारीरिक पुष्टता प्रदान करता है.
बंध एवं मुद्रायें
ये शरीर में अनैच्छिक पेशियों की संकोचन स्थितियाँ है. ये महत्वपूर्ण अंगों में अधिक रक्त को कम करके, ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करके शारीरिक स्वास्थ्य में सहायता व भावनात्मक संतुलन बनाये रखती है. प्राणायामों में उपयोग के आधार पर मुद्राओं व बंधों में भेद किया जाता है. जो मुद्रायें साधारणतया प्राणायाम में प्रयुक्त होती है उन्हें बंध कहा जाता है क्योंकि वे किसी तंत्र की गतिविधि को एक दिशा या स्थान में बाँधने व नियंत्रित करने का कार्य करते है. जालंधर बंध, उड्डियान बंध तहा मूलबन्ध कुछ महत्वपूर्ण बंध है.
हमें पता है आप पढ़कर उक्त चुके है, लेकिन ये योगा के सन्दर्भ में कुछ बहुत ही महत्ववूर्ण जाकारी थी जो आपको देनी बहुत ज़रूरी थी. चलिए अब ऍम आखिर में आ गए है.
कुछ महत्वपूर्ण आसन और उनके लाभ
1. पद्मासन - शारीरिक, मानसिक और स्पिरिचुअल बैलेंस के लिए काफी ज़रूरी है ये.
2. वज्रासन - भोजन करने के बाद ५ से १० मिनट का नियमित अभ्यास पाचन को बढ़ा दता है. यह अनिद्रा और बेचैनी में खासी लाभदायक है.
3. मंडूकासन - पाचन को तेज करता है. यह कब्ज, अपच और गैस्ट्रिक को दूर करता है.
4. उत्तानमंडूकासन - श्वसनी शोध एवं डायबिटीज के ट्रीटमेंट में लाभदायक
5. सिंहासन - नासिका और कान से सम्बंधित विकारों को रोकता है.
6. सर्वांङ्गासन - रीढ़ में लचीलापन लाता है और सांस की नालियों में होने वाले विकारों को रोकता है.
7. चक्रासन - सभी ग्रंथियों के स्रोतों को एकरूप करता है, मोटापा घटाता है और डायबिटीज के उपचार में भी काफी सहायक है.
8. पश्चिमोत्तानासन - शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए उपयोगी है.
9. ऊर्ध्व-हस्तोत्तानासन - कटि पीड़ा, तमक श्वास एवं पाचन विकारों में उपयोगी है. मोटापा घटाता है और लम्बाई बढ़ाने में सहायक है.
10. कोणासन - लम्बाई बढ़ाने में उपयोगी है. पाचन एवं श्वसन तंत्र तथा ह्रदय को ऊर्जावान बनाता है.
दोस्तों, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के इस खास सीरीज का ये दूसरा भाग यहीं ख़तम होता है. इसके अगले और आखिरी भाग में हम जानेंगे ऊपर बताए गए आसनों की करने की विधियाँ. वो भी पुरे विस्तार से. तब तक आप हमारे इस खास सीरीज का हिस्सा बने रहिए.
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