Beyond the Clouds poster

फिल्म रिव्यू: बियॉन्ड द क्लाउड्स

एक चीज होती है स्टीरियोटाइप. मतलब ये कि किसी भी चीज के बारे में आप एक कॉमन अवधारणा बना लेते है. कुछ ऐसी चीजें वो वाकई में है ही नहीं. या फिर बाहर ही कम है. या फिर वो उतना महत्त्व नहीं रखता है. ये सब बातें यहाँ क्यों हो रही है ये आपको आगे पता चलेगा. तो चलिए आते है फिल्म पर.

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कहानी:

मुंबई के एक स्लम (झोपड़पट्टी) में दो भाई-बहन रहता है. उनके माँ-बाप नहीं है. बहन बड़ी है और भाई छोटा. बहन का पति बेवड़ा टाइप का आदमी होता है जो दोनों भाई बहन के साथ हमेश मार-पीट कर रहा होता है. जैसे कि स्लम के लड़कों से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है, वैसे ही आमिर (ईशान खट्टर) भी अपने एक दोस्त अमित के साथ मिलकर ड्रग्स के धंधे में आ जाता है. वह दोनों मिलकर मुंबई के चिन्दी लोगों को ड्रग्स सप्लाय कर रहा होता है. रटी-रटाई कहानी है. धंधे में खटपट होता है. पुलिस को खबर होती है और फिर दोनों गायब.

दूसरी तरफ तारा (मालविका मोहनन) है जो कि अपने पति को छोड़ चुकी है पर गरीबी के कारण गर्त में जा गिरी है. जीवन जीने के लिए उसे खुद को बेचना पड़ रहा है. इसी तरह कुछ एक्टिविटी में एक हादसा होता है. तारा के हाथ से एक आदमी घायल हो जाता है और कोमा में चला जाता है. अब जब तक वो आदमी अपना बयान दर्ज नहीं कराएगा, तारा जेल में ही रहेगी. अब आगे क्या भाई, जो खुद पुलिस से भाग रहा है अपनी बहन को बचाता है. इसी की कहानी है बियॉन्ड द क्लाउड्स (हिंदी में बादलों के उस पार).

लेखन - निर्देशन:

ईरानी फिल्ममेकर माजिद मजीदी हिंदुस्तान आकर एक फिल्म बनाना चाहते थे. क्योंकि वो हिंदुस्तानी फिल्मों के लीजेंड सत्यजीत रे के बहुत बड़े वाले फैन रहे है. उनकी ये हार्दिक इच्छा थी कि रे की ही तरह वो अपनी फिल्मों में हिंदुस्तानी कल्चर को दिखाए. ऐसा उन्होंने अगस्त २०१६ में बोले जब वो मुंबई आए. मगर अफसोस कि उनको हिंदुस्तानी कल्चर में सिर्फ गरीबी ही दिखा.

निर्देशक माजिद मजीदी
निर्देशक माजिद मजीदी

खैर, फिल्म की बात करते है. लेखन अपनी जगह पर बहुत ही सुन्दर है. हर किरदार पर बारीकी से काम किया गया है. क्योंकि स्टोरीलाइन बहुत ही छोटी है तो किरदार पर मेहनत करना लेखक की पहली प्राथमिकता थी. क्लाइमैक्स जैसी कोई चीज फिल्म में है नहीं तो स्क्रीनप्ले कमजोर होने की कोई गुंजाइश नहीं दिखती है. ईरान के ही मेहरान कशानी ने स्क्रीनप्ले लिखा है. निर्देशन बहुत ही परिपक्व है. यहाँ भी बारीकियों का पूरा ख्याल रखा गया है.

मेकिंग:

वर्ल्ड क्लास लोग जब फिल्म बनाते है तो ऐसी फिल्म बनाना उनके लिए हमेशा आसान होता है. अनिल मेहता कैमरे के पीछे बहुत दिनों बाद दिखे है. उनकी सिनेमैटोग्राफी परदे पर देखते ही बनती है.

चाहे वो मुंबई का स्लम हो या फिर डॉक एरिया. सिमटी हुई समंदर का कीचड़ हो या फिर भीड़ भरा बाजार. और फिर स्लम और गगनचुम्बी इमारतों का मास्टर शॉट. अद्भुत. शहर में रहने वाले और ना रहने वाले, दोनों इससे खुद को कनेक्ट करते हुए पाए जायेंगे.

अनिल मेहता का मास्टर शॉट्स
अनिल मेहता का मास्टर शॉट्स

एडिटिंग भी शानदार है. फिल्म कहीं भी धीमी नहीं होती है. बोर नहीं करती है. रहमान साहब का बैकग्राउंड स्कोर. इससे बेहतर इस फिल्म में कुछ और नहीं हो सकता था.

एक्टिंग:

ईशान खट्टर ने शहीद कपूर के भाई होने का कहीं पर भी प्रेशर नहीं लिया है. उनकी अभिनय की खूबसूरती ये है कि वो बहुत ही सहज है. कहीं भी कोई उतावलापन या फिर एक्टिंग करने का ढोंग जैसा कुछ भी नहीं है. परफेक्ट लगे है किरदार में. जिया है उसने किरदार को. पहली ही फिल्म में सराहनीय अभिनय किया है ईशान ने. बात मालविका की हो तो जैसे लगता है कि सिर्फ उनके लिए ही तारा का किरदार गढ़ा गया है. बहुत ही उम्दा परफॉर्मेंस. सह कलाकार में शारदा और तनिष्ठा भी है जो कहानी के अनुकूल फिट है.

दोनों दोस्त आमिर और अमित
दोनों दोस्त आमिर और अमित

क्यों देखें: यदि आप स्लमडॉग मिलयनेयर और पार्च्ड जैसी फिल्मों के शौकीन है तो यह फिल्म आपके लिए एक ट्रीट साबित हो सकती है. आर्ट को हर रंगों में रंगा है माजिद मजीदी ने. एक्टिंग के साथ ही बाकी विधाओं का भी यहां पर आपको क्लास देखने को मिलेगा.

क्यों ना देखें: थियेटर के अंदर कूदते हुए अगर आप फिल्मों के रोमांच लेने वालो में से है तो ये फिल्म आपको पसंद नहीं आएगी.

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