फिल्म रिव्यू: मनमर्जियाँ
अनुराग कश्यप फिल्म इंडस्ट्री में 20 साल से हैं और अब जाकर वो अपना फिल्ममेकिंग का फ्लेवर चेंज किये हैं, वैसे तो थोड़ा सा रिस्क वो बॉम्बे वेलवेट के साथ भी लिए ही थे लेकिन उस फिल्म के साथ क्या हुआ ये बताने की ज़रूरत नहीं है. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी थी और निर्माताओं को खासा नुकसान उठाना पड़ा था. अब फिर से अनुराग अपने फ्लेवर से हटके लव स्टोरी फिल्म लाये हैं मनमर्ज़ियाँ, जिसका हिसाब-किताब निचे किया गया है.
बात शुरू करते हैं कहानी से
अमृतसर की रूमी (तापसी पन्नू) एक आज़ाद ख़यालों वाली लड़की है और सामजिक परिवेश से परे उसका अपना खुद का पर्सनालिटी है. वह विक्की (विक्की कौशल) से बेहद मोहब्बत करती है. पहले प्यार का जूनून दोनों पर ऐसा होता है कि वो दोनों ही बेडरूम से बाहर आने को तैयार नहीं है. रूमी एक स्ट्रॉन्ग माइंडेड लड़की है और उसके माता-पिता बचपन में ही गुज़र चुके हैं जिसका फायदा वो घर में उठाती है. एक बार जब दोनों रूमी के कमरे में पकड़े जाते हैं तब घरवाले बोलते हैं कि शादी ही कर लो. लेकिन विकी शादी के लिए अभी तैयार नहीं है और उसे डीजे भी बनना है तो वो पीछे हट जाता है.
लेकिन अब शादी तो करनी ही है सो एक लड़के का जुगाड़ किया जाता है. लड़का है रोब्बी (अभिषेक बच्चन) जो लन्दन में बैंकर है और वो भी अमृतसर आया है खास कर के शादी करने के लिए ही. अब लाख जुगाड़ के बाद रोब्बी की शादी रूमी से हो तो जाती है लेकिन रूमी ना तो अपना प्यार को भूल पायी है और ना ही शादी को अपना पायी है. यहाँ से रोब्बी की परेशानी बढ़ जाती है और फिल्म एक लव ट्राएंगल का एंगल लेकर आगे बढ़ती है. इससे ज्यादा एक शब्द और बताना स्पॉइलर हो जाएगा जो कि मुझे पसंद नहीं है और बेशक आपको भी नहीं होगा.
लेखन-निर्देशन-मेकिंग
फिल्म को लिखी हैं कनिका ढिल्लोन ने. कनिका लम्बे समय से शाहरुख़ खान की कंपनी रेड चिलीज एंटरटेनमेंट से जुड़ी हुई है. रेड चिलीज के लिए वो रा.वन और ऑलवेज कभी कभी का स्क्रिप्ट लिखी है. इस फिल्म को वो कब लिखी है इस बात को तो मैं नहीं जानता लेकिन एक बात मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि इस फिल्म को बनने में देर हो गयी है. अगर स्क्रीनप्ले की बात करें तो पहला हाफ बहुत फास्ट जाता है. इतना फास्ट की लगता है फिल्म आगे बहुत मजा देने वाली है. पहला हाफ के लिखावट में बहुत ही बारीकी से काम किया गया है जो परदे पर दिखता भी है. वहीं सेकण्ड हाफ आते आते फिल्म हाँफने लग जाती है और लगता ही नहीं है कि फिल्म को लिखा भी गया है या नहीं.
निर्देशन में अनुराग कश्यप का थोड़ा बहुत फ्लेवर दिखने को मिल जाता है जो ज़रूरी तो नहीं लगता है लेकिन एक निर्देशक अपने फिल्मों में अपना ट्रेडमार्क तो रखना ही चाहता है. इससे फिल्म को कुछ फायदा-नुकसान नहीं होने वाला है. सूत्रों की माने तो इस फिल्म को पहले समीर शर्मा निर्देशित करने वाले थे जो 2012 में आयी फिल्म लव शव ते चिकन खुराना को डायरेक्ट किये थे. कहा तो ये भी जाता है कि वो इस फिल्म के कुछ शुरूआती पोर्शन शूट भी कर चुके थे लेकिन वो फुटेज निर्माता आनंद राय को पसंद नहीं आया और वो बरेली की बर्फी फेम निर्देशिका अश्विनी अय्यर तिवारी को फिल्म डायरेक्ट करने का ऑफर दिए लेकिन वो डेट्स की वजह से मना कर दी. तब जाकर अनुराग खुद निर्देशन की कमान अपने हाथों में लिए.
फिल्म की एडिटर हमेशा की तरह आरती बजाज ही है जो उम्मीद से बेहतर काम की है लेकिन जब तक फिल्म सही से लिखा ना गया हो तब तक कोई कुछ कर नहीं सकता. इस तरह की कहानी से लोग आज से 20 साल पहले हम दिल दे चुके सनम देखकर ही किनारा कर चुके थे. सिल्वेस्टर फोंसेका का कैमरा अमृतसर की गलियों में घूमता हुआ अच्छा लगता है. स्टोरीटेलिंग का जो थीम फिल्म में इस्तेमाल किया गया है वो इंटरेस्टिंग है.
अभिनय
विक्की कौशल समय के साथ अपना पैर जमा रहे हैं और तेजी से इंडस्ट्री में आगे बढ़ रहे हैं. एस्पायरिंग डीजे के रोल में वो बहुत जमे है और यह फिल्म उनके एक्टिंग के लिहाज से सही है. तापसी पन्नू पंजाबी कुड़ी का रोल कितनी आसानी से कर सकती है यह बात किसी से भी छिपा हुआ नहीं है. हमेशा की तरह अच्छी लगी है. बात अब अभिषेक की करें तो वो इस तरह के इंटेंस किरदार को बड़ी आसानी से कर ले जाते है. बाकी के सपोर्टिंग कास्ट भी मज़ेदार है. कास्टिंग में लूपहोल नहीं दिखता.
गीत - संगीत
थियेटर से बाहर निकलने के बाद अगर एक भी गीत जुबान पर रह जाए तो मेरा नाम बदल देना. सभी गीत फिल्म के साथ फ्लो में ही बहती रह जाती है. रोमांटिक गाने के नाम पर एक दो गीत हैं जो सिचुएशन के साथ ही खतम हो जाती है. अमित त्रिवेदी का औसत काम है और शैली ने एक भी गीत गुनगुनाने लायक नहीं दिया है.
और अंत में: फिल्म के सेकण्ड हाफ में आपके सोने की गारंटी पूरी है तो देखने जाने का कुछ खास फायदा है नहीं. विकी कौशल के फैन बन रहे हैं तो फिल्म देखने जा सकते हैं नहीं तो वीकेंड पर कुछ और प्लान किया जा सकता है. बात फिल्म की बिजनेस की करें तो यह अपना लागत निकाल ले वही बहुत है.