ब्राजील का क्राइस्ट द रिडीमर – Christ The Redeemer in Brazil

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क्राइस्ट द रिडीमर ब्राज़ील के रियो डी जेनेरो में स्थापित ईसा मसीह की एक प्रतिमा है जिसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आर्ट डेको स्टैच्यू माना जाता है। यह प्रतिमा 130 फीट लंबी और 98 फीट चौड़ी है। दोनों तरफ फैलाए गए बाहों की लम्बाई 92 फीट है। इसका वजन 635 मेट्रिक टन है। यह तिजुका फोरेस्ट नेशनल पार्क में कोर्कोवाडो पर्वत की चोटी पर स्थित है जहाँ से पूरा शहर दिखाई पड़ता है। यह दुनिया में अपनी तरह की सबसे ऊँची मूर्तियों में से एक है। वैसे बोलीविया के कोचाबम्बा में स्थित क्राइस्टो डी ला कोनकोर्डिया की प्रतिमा इससे थोड़ी अधिक ऊँची है। ईसाई धर्म के एक प्रतीक के रूप में क्राइस्ट द रिडीमर की यह प्रतिमा रियो और ब्राजील की एक पहचान बन गयी है। साल 1922 और 1931 के बीच इस प्रतिमा को बनाया गया था। यह एक मजबूत कांक्रीट और सोपस्टोन से बनी है हुई है।

इस प्रतिमा के बनने के इतिहास को देखें तो कोर्कोवाडो की चोटी पर एक विशाल प्रतिमा खड़ी करने का विचार पहली बार 1850 के दशक के मध्य में सुझाया गया था जब कैथोलिक पादरी पेड्रो मारिया बॉस ने राजकुमारी ईसाबेल से एक विशाल धार्मिक स्मारक बनाने के लिए फंड देने का आग्रह किया था। राजकुमारी ईसाबेल ने इस विचार पर अधिक ध्यान नहीं दिया और ब्राजील के एक गणतंत्र बन जाने के बाद 1889 में इसे खारिज कर दिया गया। अब ब्राजील के क़ानून में चर्च और राज्य को अलग-अलग रखने की अनिवार्यता थी। मतलब धर्म अपनी जगह और लोकतंत्र अपनी जगह। इस मामले में राष्ट्रहित का पूरा ख्याल रखा गया था।

अलग-अलग मौकों पर इस प्रतिमा पर लाइट्स जलाकर समर्थन / विरोध प्रकट किया जाता है।

कोर्कोवाडो पर्वत की चोटी पर एक अभूतपूर्व प्रतिमा स्थापित करने का दूसरा प्रस्ताव रियो के कैथोलिक सर्कल द्वारा साल 1921 में लाया गया। इस समूह ने प्रतिमा के निर्माण के समर्थन में दान राशि और हस्ताक्षर जुटाने के लिए सेमाना डू मोनुमेंटो यानी कि “मोनुमेंट वीक” नाम का एक कार्यक्रम का आयोजन किया। दान ज्यादातर ब्राजील के कैथोलिक समुदाय से ही आए। “ईसा मसीह की प्रतिमा” के लिए चुने गए डिजाइनों में ईसाई क्रॉस का एक प्रतिनिधित्व, अपने हाथ में पृथ्वी को लिए ईसा मसीह की एक मूर्ति और विश्व का प्रतीक एक चबूतरा शामिल था। आए गए कई प्रस्तावों और डिजाइनों में से खुली बाहों के साथ क्राइस्ट द रिडीमर की प्रतिमा को चुना गया। यह शांति का एक प्रतीक भी है, ऐसा तर्क चयन कमिटी के द्वारा दिया गया था।

क्राइस्ट द रिडीमर की इस प्रतिमा को कोई एक शख्स ने नही डिजाइन किया है बल्कि इसके पीछे कई सारे लोगों की मेहनत है। ब्राजील के लोकल इंजीनियर हीटर डा सिल्वा कोस्टा ने अलबर्ट कैकट के साथ मिलकर प्रतिमा को रूपांकित किया, प्रतिमा का ढांचा फ्रांसीसी मूर्तिकार पॉल लैंडोव्स्की द्वारा तैयार किया और रोम के प्रसिद्ध मूर्तिकार जॉर्ज लियोनिडा ने इस मूर्ति के चेहरे को बनाया। इंजीनियरों और तकनीशियनों के एक ग्रुप ने लैंडोव्स्की द्वारा की गयी प्रेजेंटेशन का स्टडी किया और पत्थर की बजाय संरचना को कंक्रीट से तैयार करने का निर्णय लिया गया, जो क्रॉस के स्वरूप की प्रतिमा के लिए अधिक उपयुक्त था।

इस प्रतिमा की ऊँचाई से पूरा शहर दिखता है।

क्राइस्ट द रिडीमर की बाहरी परतें सोपस्टोन की बनी हुई है, जिसे इसके लम्बे चलने वाले गुण और इस्तेमाल में आसानी के कारण चुना गया था। निर्माण में 1922 से 1931 तक नौ साल लग गए और इसकी लागत उस समय लगभग 250,000 अमेरिकी डॉलर था। स्मारक को 12 अक्टूबर 1931 को आम जनता के लिए खोल दिया गया था। इस प्रतिमा के उदघाटन समारोह की भी एक दिलचस्प कहानी है। हुआ ये था कि इसको शॉर्टवेव रेडियो के इन्वेंटर गुग्लियेल्मो मार्कोनी द्वारा फ्लडलाइटों की बैटरी के द्वारा प्रकाशित किया जाना था। जिसका रिमोट 9,200 किमी दूर रोम में स्थित था। लेकिन खराब मौसम ने इस ऐतिहासिक उद्घाटन पर पानी फेर दिया क्योंकि खराब मौसम में रिमोट का सिग्नल काम नहीं कर रहा था और ऐसा नहीं सका। फिर बाद में इसे रियो डी जेनेरियो में ही स्थानीय कर्मियों द्वारा प्रकाशित किया गया।

साल 2006 के अक्टूबर महीने में प्रतिमा की 75वीं सालगिरह के अवसर पर रियो कार्डिनल यूसेबियो ऑस्कर शील्ड के आर्कबिशप ने प्रतिमा के नीचे एक चैपल की स्थापना की। यह कैथोलिक धर्म के लोगों को वहाँ नामकरण और शादियों का आयोजन करने की अनुमति देता है।

10 फ़रवरी 2008, रविवार को एक प्रचंड बिजली के तूफ़ान के दौरान प्रतिमा पर बिजली गिरने से इसकी उंगलियों, सिर और भौहों को कुछ नुकसान पहुँचा था। सोपस्टोन की कुछ बाहरी परतों को बदलने और प्रतिमा पर लगायी गयी बिजली की छड़ों की मरम्मत के लिये रियो डी जेनेरो की राज्य सरकार और आर्कडायोसीज द्वारा एक जीर्णोद्धार का प्रयास किया गया।

क्राइस्ट द रिडीमर की प्रतिमा तक पहुँचने के लिए विशेष ट्रेन चलाई जाती है।

क्राइस्ट द रिडीमर के प्रतिमा को लेकर एक विवाद भी हुआ। 15 अप्रैल साल 2010 को प्रतिमा के सिर और दाहिने हाथ पर ग्रेफिटी का स्प्रे कर दिया गया। दीवारों पर बनाए गए आरे-टेढ़े चित्रों को गैफिटी कहा जाता है। इसके बाद वहां के तात्कालीन मेयर एडुआर्डो पेस ने इस काम को “राष्ट्र के विरुद्ध एक अपराध” करार दिया और इन असभ्य लोगों को जेल भेजने की कसम खाई। जब इनलोगों की गिरफ्तारी और पहचान नहीं हो रही थी तब इनकी गिरफ़्तारी का कारण बनने वाली किसी भी सूचना के लिये 10,000 रोमन डॉलर के ईनाम की घोषणा की गयी। इस घोषणा के कुछ ही दिनों बाद मिलिट्री पुलिस ने अंततः इस बर्बरतापूर्ण कार्य के लिये संदिग्ध के रूप में हाउस पेंटर पाउलो सूजा डोस सैन्टोस की पहचान की। उसे गिरफ्तार गया गया और उस पर उचित कार्रवाई हुई।

क्राइस्ट द रिडीमर की प्रतिमा के आसपास प्लेटफ़ार्म तक पहुँचने की सुविधा के लिये सीढ़ियों, पैदल रास्तों और एलिवेटर्स  के एक सेट का निर्माण किया गया है। यह विश्व में ईसा मसीह की सबसे बड़ी मूर्ति है। यह भी एक दिलचस्प फैक्ट है कि पक्षियों के इस पर बैठने से रोकने के लिए प्रतिमा के शीर्ष पर छोटी-छोटी कीलें भी लगाई गयी हैं। आपके लिए यह जानना जरुरी है कि इसे अबतक वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल नहीं किया है। जबकि ब्राजील के नेशनल हिस्टोरिक हेरिटेज में इसे साल 2001 में सम्मिलित किया गया था।

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